भारतीय बैंकों का डूबा हुआ कर्ज बढ़कर उनके बैलेंसशीट के 13 फीसदी तक पहुंच सकता है। रिजर्व बैंक ने फाइनेंशियल स्टेविनिटी रिपोर्ट के नए संस्करण में कहा है कि 30 सितम्बर, 2020 तक बैड लोन बढ़ कर बैंकों की बैंलेसशीय के 13.5 फीसदी पर पहुंच जाएगा। सितम्बर 2019 में यह 7.5 फीसदी था। बेहद खराब हालत में यह 14.8 फीसदी तक पहुंच सकता है। हालात खराब रहे तो यह स्थिति वित्त वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही में ही आ सकती है। अगर ऐसा होता है तो बैड लोन दो दशक की सबसे खराब हालत में पहुंच जाएगा। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी कोरोना वायरस के कारण उपजे संकट से बैंकों की वित्तीय स्थिति को लेकर आशंका व्यक्त करते हुए कहा है कि उपलब्ध आंकड़े इन वित्तीय संस्थानों के बही-खातों के वास्तविक दबाव को स्पष्ट नहीं करते। कोरोना काल के दौरान दी गई नियामकीय राहत वापिस होने के बाद बैंकों की सम्पत्ति को नुक्सान और पूंजी की कमी और साफ दिखने लगेगी। उन्होंने बैंकों से पूंजी आधार बढ़ाने को कहा है।
कोरोना संकट के बीच आरबीआई ने लोगों को राहत देने के लिए 6 माह की मोहलत दी थी, जो अगस्त में समाप्त हो गई। बाद में कम्पनियों को राहत देने के लिए एक बार फिर कर्ज पुनर्गठन की घोषणा की जो 31 दिसम्बर को पूरी हो चुकी है।
महामारी से देश की अर्थव्यवस्था को काफी नुक्सान पहुंचा है। आगे आर्थिक वृद्धि और इसके लिए वित्तीय स्थिरता होना जरूरी शर्त है। कोरोना की वैक्सीन लगाया जाना भी 16 जनवरी से शुरू हो रहा है। इससे भी अनिश्चिता के बादल छंटेंगे। आर्थिक वृद्धि में गिरावट और लॉकडाउन समेत विभिन्न कारकों की वजह से बाजार की मांग कम होने से बैंकों से ऋण वितरण भी कम ही हुआ है। इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्रेें के बैंकों को 20 हजार करोड़ रुपए की पूंजी मुहैया कराने की घोषणा सरकार पहले ही कर चुकी है।
पिछले तीन वर्षों में सरकार ने बैंकों काे लगातर पूंजी दी है, किन्तु यदि एनपीए की समस्या का समुचित समाधान नहीं हुआ तो बैंकों, विशेष रूप से छोटे और कमजोर बैंकों के लिए कर्ज देना मुश्किल हो जाएगा। माना जा रहा है कि आगामी मार्च तक पांच बैंक पूंजी की न्यूनतम स्तर को भी बरकरार नहीं रख पाएंगे। उस स्तिथ में सरकार को अतिरिक्त धन की व्यवस्था करनी पड़ सकती है। सरकार के सामने पहले ही सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए भी राहत पैकेज के तहत धन उपलब्ध कराने की चुनौती है।
बैड लोन या एनपीए से निपटने के उपाय के तौर पर फंसे हुए अधिकतर कर्जों को परिसम्पत्ति रिकंस्ट्रक्शन कम्पनियों को बेचा गया है, जिसके तहत वसूली की दर 10 से 12 प्रतिशत ही है। इस कारण से इस तरीके को बहुत ही कारगर नहीं माना जा सकता। भारतीय बैंक एसोसिएशन ने रिज़र्वर बैंक और वित्त मंत्रालय को सुझाव दिया था कि एनपीए को अलग कर एक अलग बैंक में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए ताकि बैंक दबाव मुक्त होकर काम कर सकें। लगातार सामने आ रहे बैंक घोटालों के बाद जब रिजर्व बैंक ने शिकंजा कसा तो बैंक फंसे हुए कर्जों की वापसी के लिए सक्रिय हुए थे और संकट से बचने के लिए भी प्रयासरत थे कि कोरोना वायरस की मार पड़ गई। घाटे में चल रहे बैंकों का लाभ वाले बड़े बैंकों में विलय किया गया। सभी कमर्शियल बैंकों का ग्रॉस एनपीए अनुपात मार्च 2020 में साढ़े आठ फीसदी से बढ़कर 2021 में 12.5 फीसदी तक हो सकता है। यह आकलन बेसलाइन स्थिति के आधार पर किया गया है। उन कम्पनियों और स्टार्टअप्स का भी बहुत बुरा हाल है, जिन्होंने बैंकों से काफी ज्यादा कर्ज लिया है, अब कर्जदारों के पास ईएमआई तक चुराने को पैसे नहीं बचे हैं। एनपीए में करीब 77 प्रतिशत हिस्सेदारी शीर्ष औद्योगिक घरानों के पास फंसे कर्ज हैं। सार्वजनिक बैंकों से अलग निजी क्षेत्र और विदेशी बैंकाें का सवाल एनपीए अनुपात 4.6 फीसदी और 2.5 फीसदी से बढ़कर क्रमशः 7.9 फीसदी और 5.4 फीसदी हो सकता है। बैंकों की खस्ता हालत आरबीआई और वित्त मंत्रालय के लिए बड़ी चुनौती है। इसके लिए उन्हें समूची व्यवस्था के लिए ठोस उपाय करने होंगे।