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बवाना उपचुनाव और वी वी पैट

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दिल्ली के बवाना उपचुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी की जीत से यह तथ्य पुनः उभर कर सामने आया है कि मतदाताओं को कोई भी पार्टी अपना बन्धक नहीं समझ सकती और उनकी समझदारी को अपने प्रचार से प्रभावित नहीं कर सकती। बेशक अर्ध राज्य दिल्ली में आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार प्रशासन के प्रायः हर मोर्चे पर असफल रही है मगर इसके बावजूद मतदाताओं में यह विश्वास है कि कहीं न कहीं उसके मार्ग में बाधाएं खड़ी की जा रही हैं लेकिन एक मोर्चे पर आप की सरकार ने लोगों का दिल जीता है कि वह राजधानी में शिक्षा के बाजारीकरण को रोकना चाहती है और इस मोर्चे पर ईमानदारी से काम कर रही है मगर इसका मतलब यह नहीं निकलता कि केजरीवाल एंड पार्टी ने राजनीति में नौटंकी करना छोड़ दिया है। उसकी यह बेढंगी चाल बवाना विजय के बावजूद जारी है। इस उपचुनाव में जीत को उसने मतदान में ईवीएम मशीनों के साथ वी वी पैट या रसीदी मशीन को जोड़ने को बताया है और कहा है कि जहां-जहां ये मशीनें लगाई जाएंगी वहां-वहां ही भाजपा की पराजय होगी। देश की स्वतंत्र चुनाव प्रणाली पर इस प्रकार की अनर्गल टिप्पणी करके इस पार्टी के नेताओं ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि उन्हें उन लोगों पर भी विश्वास नहीं है जिन्होंने उन्हें ही वोट दिया है। इसके साथ ही केजरीवाल ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता को पुनः एक बार निशाने पर रखने की धृष्टता की है।

बवाना के साथ ही गोवा की दो और आंध्र प्रदेश की एक विधानसभा सीट पर भी चुनाव हुए थे। इनमें भी वी वी पैट का उपयोग हुआ था मगर यहां भाजपा और उसके सहयोगी दल तेलगूदेशम की जीत हुई। इससे साफ जाहिर है कि आम आदमी पार्टी चुनावी प्रणाली पर शंका करके लोकतंत्र की इस व्यवस्था को ही सवाली घेरे में डालना चाहती है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि यह पार्टी जनमत की अपेक्षा च्मशीन मतज् को ज्यादा तरजीह देती है। यह इ​स तथ्य को स्वीकार करने को लेकर तैयार नहीं है कि इस वर्ष के शुरू में हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में उसकी जो करारी पराजय हुई वह जनमत की वजह से हुई। अपनी पराजय को वह रसीदी मशीन के आवरण में ढकना चाहती है क्योंकि पंजाब के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी जीत मिली थी और गोवा व मणिपुर में भी इस पार्टी की सीटें भाजपा से अधिक आई थीं जबकि गोवा में आम आदमी पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था और अधिसंख्य स्थानों पर इसकी जमानत जब्त हुई थी। पंजाब में भी ३३ सीटों पर वी वी पैट मशीनों का उपयोग हुआ था जिनमें से २० पर कांग्रेस व छह पर आम आदमी पार्टी जीती थी लेकिन गोवा की सभी ४० सीटों पर वी वी पैट का उपयोग किया गया था और सभी पर आप के प्रत्याशी ढेर रहे थे, लेकिन इस हकीकत के बावजूद देश के प्रमुख विपक्षी राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग व राष्ट्रपति को ज्ञापन देकर मांग की थी कि ईवीएम मशीनों के साथ चुनावों में वी वी पैट मशीनों का उपयोग किया जाना चाहिए। इससे देश के चुनाव आयोग के समक्ष विश्वसनीयता को बरकरार रखने की जिम्मेदारी गहरी हो गई थी।

हालांकि इसने अपने कार्यालय में अपनी ईवीएम मशीनों की जांच करने की चुनौती सभी राजनीतिक दलों को दी थी मगर इसके बावजूद संशय का वातावरण बनने में मदद मिली लेकिन चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर किसी भी प्रकार की आंच आने नहीं देना चाहता था जिसका प्रमाण सर्वोच्च न्यायालय में उसकी इस दलील से मिलता है कि वह भी चाहता है कि चुनावों में वी वी पैट मशीनों का उपयोग जरूरी किया जाए और इसके लिए केन्द्र सरकार पर्याप्त धन की व्यवस्था करे। न्यायालय ने सरकार को तीन हजार करोड़ रु. की धनराशि इस बाबत देने के आदेश भी दिये जिससे ये मशीनें खरीदी जा सकें। चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय की यह सोच भारत में लोकतंत्र को जनमूलक बनाये रखने की गरज से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि लोगों का एक वोट ही हमारे लोकतन्त्र का मूलाधार है। इसके इस्तेमाल से ही लोग अपनी मनोवांछित पार्टी या प्रत्याशी को चुनते हैं और सरकार बनाते हैं। जब इसके इस्तेमाल करते समय ही गड़बड़ी का अंदेशा पैदा कर दिया जाए तो चुनाव आयोग को सोचने पर मजबूर होना ही पड़ेगा कि उसकी उस निष्पक्ष कार्यप्रणाली पर शक किया जा रहा है जिसकी जिम्मेदारी संविधान ने उसे दी है। लोकतन्त्र में चुनाव आयोग को सभी शंकाओं से ऊपर रहना जरूरी है जिसकी वजह से उसने बार-बार कहा कि वी वी पैट मशीनों के इस्तेमाल से उसे कोई गुरेज नहीं है, सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसी नजरिये पर ध्यान दिया। यही वजह है कि इसने पिछले दिनों ही आदेश दिया कि गुजरात राज्य में होने वाले चुनावों में सभी विधानसभा सीटों पर वी वी पैट मशीनों का इस्तेमाल किया जायेगा। जरूरी यह है कि हमारी चुनाव प्रणाली सभी प्रकार के शक के घेरे से कम से कम उस दायरे में बाहर रहे जो चुनाव आयोग के सीधे अख्तियारों में है। क्योंकि भारत का लोकतंत्र दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र इसीलिए कहलाया जाता है कि इसकी कर्णधार संस्थाएं सत्ता से निरपेक्ष रहते हुए अपना काम करती हैं और निडर होकर करती हैं और अपने संवैधानिक दायित्वों को निभाती हैं।

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