बिक रहा है भगत सिंह का पुश्तैनी घर

बिक रहा है भगत सिंह का पुश्तैनी घर
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चर्चा थी पाकिस्तान में जि़ला फैसलाबाद (पहले लायलपुर) स्थित शहीदे आज़म भगत सिंह का पुश्तैनी मकान बिकाऊ है। इसे खरीदने के लिए लाहौर की संस्था भगत सिंह मैमोरियल फाउंडेशन आगे आई। 'फाउंडेशन' के अध्यक्ष एडवोकेट इत्मियाज़ रशीद कुरैशी के अनुसार इसका एक हिस्सा, जहां भगत सिंह पैदा हुए थे, गांव बंगा के नंबरदार जमात अली के पास है। मंगलवार को जमात अली और रशीद कुरैशी के बीच हुई मीटिंग में उक्त हिस्से को यादगार के लिए समर्पित करने पर सहमति बनी। कुरैशी के अनुसार, इस जगह की जो भी कीमत लगेगी, फाउंडेशन उसे देकर यहां भगत सिंह की यादगार बनाएगा। इस यादगार में अमृतसर के जलियांवाला बाग से भी मिट्टी लाई जाएगी।
पाकिस्तान के फैसलाबाद जिले के बंगा गांव में ही 27 सितंबर 1907 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म हुआ था। देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार भारत आ गया और उनका मकान व जमीन-जायदाद वहीं रह गई। बंटवारे के बाद भगत सिंह का परिवार नवांशहर जिले के खटकड़कलां गांव में बस गया था। पाकिस्तान स्थित बंगा गांव के नंबरदार जमात अली बताते थे कि इस समय भगत सिंह के पुश्तैनी मकान के तीन हिस्से हो चुके हैं और इसमें वह कमरा उनके पास था जिसमें भगत सिंह का जन्म हुआ था। अली कहते कि यह उनके लिए फख्र की बात होगी कि वह शहीद-ए-आजम की यादगार के लिए जमीन दे रहे हैं।
अब इसी फाउंडेशन ने शहीदे आज़म भगत सिंह के लिए 'निशान-ए-हैदर' देने की मांग उठाई है। साथ ही यह मांग भी की गई है कि लाहौर के शादमान चौक (जहां तीनों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी) का नाम भी शहीदे आज़म के नाम पर रखे जाने की मांग की गई है। राशिद कुरैशी कुछ वर्ष पूर्व चंडीगढ़ प्रैस क्लब में भी आए थे। उन्होंने तब भी यह बात कही थी कि स्वयं कायदे आज़म जिन्नाह ने भी जाना था इस पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में भगत सिंह जैसा बहादुर व्यक्ति कभी नहीं हुआ।
पड़ोसी देश पाकिस्तान में महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह को देश का सर्वोच्च वीरता सम्मान 'निशान-ए-हैदर' देने की मांग उठी थी। भगत सिंह मैमोरियल फाउंडेशन ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी ने भारतीय उपमहाद्वीप को आजाद कराने के लिए अपने प्राण की आहुति दे दी थी। ऐसे में वह सर्वोच्च सम्मान के हकदार हैं। फाउंडेशन ने इसको लेकर पंजाब सरकार के समक्ष आवेदन दिया है। इसमें भगत सिंह को देश का हीरो बताया गया है। अंग्रेजों ने भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर में 23 मार्च, 1931 में फांसी दे दी थी। बात करते हुए फाउंडेशन के अध्यक्ष और अधिवक्ता इम्तियाज राशिद कुरैशी ने कहा कि वह सरकार पर इस मांग को मनवाने के लिए लगातार दबाव डाल रहे हैं। सरकार को इसे स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
भगत सिंह फाउंडेशन ने अपने आवदेन में कहा, पाकिस्तान के संस्थापक कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्नाह ने कहा था कि इस उपमहाद्वीप में भगत सिंह जैसा बहादुर व्यक्ति कभी नहीं हुआ। निशान-ए-हैदर पाकिस्तान का सर्वोच्च वीरता सम्मान है। अदम्य साहस और बहादुरी का परिचय देने वाले जवानों को इससे नवाजा जाता है। फाउंडेशन ने पंजाब सरकार से बिना किसी विलंब के लाहौर के शादमन चौक का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने की भी अदालती लड़ाई लड़ी थी। साथ ही शहीद-ए- आजम की प्रतिमा लगाने का भी अनुरोध किया गया था। आवेदन में कहा गया था कि जिन राष्ट्रों ने अपने नायकों को भुलाया उसका इस पृथ्वी पर से नामोनिशान मिट गया है। फाउंडेशन के अनुसार, ऐसा करने से यह संदेश जाएगा कि पाकिस्तानी धर्म, नस्ल, रंग आदि के आधार पर भेद नहीं करते हैं।
मालूम हो कि जमात-उद-दावा का प्रमुख और वांछित आतंकी हाफिज सईद इस मांग का विरोध करता रहा था। वह शादमन चौक का नाम बदलने पर पूर्व में कड़ी प्रतिक्रिया भी जता चुका था। आतंकी ने इसको लेकर सिविल सोसाइटी को धमकी भी दे चुका है। हालांकि, भगत सिंह फाउंडेशन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। राशिद कुरैशी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के केस को फिर से खुलवाने के लिए लाहौर हाई कोर्ट में अर्जी भी दायर कर रखी है। यह मामला फिलहाल अधर में लटका है।

– डॉ. चन्द्र त्रिखा 

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