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भय बिन होत न प्रीत

कहते हैं जिन्दगी में ​किसी का डर होना बहुत जरूरी है। हमारी मां छोटे होते से कहती थीं तुम्हारे दोनों कंधों पर रजिस्टर लेकर दो ईश्वर के व्यक्ति बैठे हुए हैं, जो तुम्हें नहीं दिखाई देते।

कहते हैं जिन्दगी में ​किसी का डर होना बहुत जरूरी है। हमारी मां छोटे होते से कहती थीं तुम्हारे दोनों कंधों पर रजिस्टर लेकर दो ईश्वर के व्यक्ति बैठे हुए हैं, जो तुम्हें नहीं दिखाई देते। एक तुम्हारे अच्छे कर्म लिख रहा है, दूसरा तुम्हारे बुरे। अतः अच्छे अधिक होंगे तो स्वर्ग में जाओगे, बुरे ज्यादा होंगे तो नरक में जाओगे। छोटे होते हमारे लिए स्वर्ग जहां हम अच्छे से रहेंगे, सब सुविधाएं होंगी, खिलौने होंगे, अच्छे कपड़े, टाफियां होंगी और नरक जहां राक्षस होंगे, कीड़े-मकौड़े होंगे। तो इसी डर से हम अच्छे संस्कार, अच्छे काम के लिए बचपन से प्रेरित हुए।
ऐसे ही जैसे हमारे केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी जी ने ट्रैफिक के सख्त नियम किए तो लगा अब भय के साथ सब कुछ ठीक होगा, क्योंकि जब हम विदेशों में जाते हैं तो सब लोगों को कड़े ट्रैफिक नियमों काे स्वीकार करते देखते हैं, बड़ी सुचारू ट्रैफिक व्यवस्था होती है, जाम नहीं होता, दुर्घटनाएं नाममात्र होते देखते हैं। बहुत दिल करता था कि हमारे यहां ऐसा क्यों नहीं। एक बार हम कनाडा में अपने ​मित्र रंजू रमण के साथ थे। कोई एम्यूजमैंट पार्क देखने के लिए रुके, 2 मिनट गाड़ी खड़ी करके गाड़ी से बाहर निकले और जैसे ही वापस मुड़े गाड़ी पर टिकट लगी हुई थी। अश्विनी जी ने उन्हें मजाक में कहा- यार तुम्हारे को कोई टिकट मुफ्त में दे गया तो हमारे मित्र का मुंह एकदम लाल हो गया और कहा कि यह मुफ्त टिकट नहीं, मुझे भारी जुर्माना लग गया। 
हम हैरान थे, सिर्फ दो मिनट गलत पार्क करने पर इतनी सख्ती, परन्तु बाद में मालूम हुआ कि यहां ट्रैफिक नियम बहुत सख्त हैं। वाकई लंदन, अमरीका, कनाडा या और बाहर के देशाें में इतने कड़े नियम हैं कि कोई भी व्यक्ति आराम से गाड़ी चला सकता है। भारत में अक्सर लोग कहते हैं कोई रैड सिग्नल पार कर लेता है, कोई दाएं-बाएं मोड़ लेता है, वास्तव में ईश्वर ही है जो सबको बचाता है। वहां नियम इतने सख्त हैं कि कहां कितनी रफ्तार की अनुमति है, रैड लाइट पार कर सकते हैं, गलत टर्न नहीं ले सकते, शराब पीकर गाड़ी नहीं चला सकते, सीट बैल्ट बहुत जरूरी है। इन सब बातों का उल्लंघन  करने पर बहुत सजा और लाइसैंस भी रद्द हो जाता है। 
अब यही नियम गडकरी जी ने लागू किए तो मुझे बहुत ही खुशी हुई। अभी कि बहुत सख्त हैं, एक दम एडोप्ट करना बहुत मुश्किल है। इनता जुर्माना देना भी आम व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल है परन्तु वही बात भय बिन होत न प्रीत।अभी परसों की बात ले लो, हमारे बहुत ही प्यारे भाई सम्माननीय मित्र रजत शर्मा का समारोह था। पूर्व वित्त मंत्री स्व. अरुण जेतली जी के नाम पर फिरोजशाह कोटला स्टेडियम का नाम रखा जाना था। हमें कहा गया था कि  5ः45 पर आप समारोह में अपनी सीटों पर बैठ जाइये। मैं  घर से 5 बजे निकली थी, बिल्कुल टाइम से पहुंच जाऊंगी, पर कहीं रैड लाइट, कहीं ट्रैफिक जाम तो बहुत धीरे गाड़ी चल रही थी। हमारा बहुत ही अच्छा ड्राइवर अशोक रैड लाइट सिग्नल से पहले ही गाड़ी रोक देता, बहुत आराम से चल रहा था। 
मैंने उससे पूछा भाई तुमने मुझे समारोह में नहीं पहुंचाना? तो बेचारा बड़ी नम्रता से बोला- मैडम बहुत जुर्माना लग जाएगा अगर जरा सी गलती हो गई तो। मुझे बहुत अच्छा लगा। देखो ​कितना समझदार है। मुझे लगा अगर सड़क पर चलने वाला हर ड्राइवर यह समझ गया तो समझो भारत भी विदेशी देशों के मुकाबले आगे हो जाएगा।
ये बंबई शहर हादसों का शहर है, यहां रोज-रोज सड़कों पर होता है कोई न कोई हादसा…।
जब यह गीत लिखा गया था तब यह बम्बई था और आज इसका नाम मुंबई  है लेकिन एक महानगर में ट्रैफिक की बढ़ती भीड़भाड़ और दुर्घटनाओं को लेकर यह गीत अगर केंद्रित किया गया है तो हम समझते है कि दिल्ली में आए दिन ऐसे हादसे या फिर अन्य महानगरों के साथ-साथ छोटे शहरों में भी रोज हो रहे हैं। आखिरकार सरकार अब जागी है कि बढ़ते हादसे लोगों की मौत का कारण बन रहे हैं। लोगों की मौत को टालने के लिए अगर मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन करते हुए जुर्माने की राशि दस गुना कर दी जाये तो क्या हादसे रुक जायेंगे? 
यह हम नहीं जानते लेकिन सोशल मीडिया आजकल हर घंटे हो रहे नए-नए चालान को लेकर जो चीजें वायरल कर रहा है और जिस तरह से चालान की बढ़ती रकम को लेकर अखबारों में सुर्खियां बनाने की होड़ मची हुई है वह सचमुच चौंकाने के लिए काफी है। वहीं जो सियासत चल रही है उसके बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने नवंबर से ऑड-ईवन लागू करने का ऐलान कर दिया है हम उसका भी स्वागत करते है, परन्तु यह व्यवहारिक नहीं है कब तक? और सड़कों पर हमारी इच्छा तो यही कि नियम लागू हों और लोग उसका पालन करें लेकिन सोशल मी​िडया पर वायरल हो रहा है कि ट्रैफिक का कॉकटेल बन चुका है, जवाब सरकार से लो। 
खबरों के अनुसार एक स्कूटी वाले का चालान तेईस हजार रुपये का एनसीआर में हुआ। इसके बाद एक बाइक सवार का चालान तीस हजार का हुआ। कई कार वालों का चालान और ऑटो वालों का चालान 30-30 हजार का हुआ। गुरुग्राम में एक ट्रैक्टर चालक का चालान 59 हजार का हुआ। दिल्ली में ही एक और ट्रक चालक का चालान सवा लाख का हुआ और उसके मालिक ने उसे पैसे आरटीओ में जमा कराने को दिये और वह यह रकम लेकर भाग गया। इस कड़ी में दो दिन पहले हर राष्ट्रीय दैनिक के पहले पृष्ठ पर छपी खबर ने हिलाकर रख दिया कि एक ट्रक ड्राईवर का चालान पूरे दो लाख रुपये का हुआ। इन खबरों के अलावा पूरे देश में और दिल्ली में दहशत मची हुई है। 
जिस मकसद को लेकर नए मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन किए गए थे और जुर्माना राशि बढ़ाई गयी लोग उससे अनुशासित होने की बजाये अगर टेरर में आ गए हैं और ट्रैफिक पुलिस को देखते ही उनकी कोई दुर्घटना हो जाती है तो यह गलत हो जाएगा। धीरे-धीरे जुर्माना बढ़ाना चाहिए। अंत में यही कहना चाहूंगी कि नियम बनें और डर होना जरूरी है, परन्तु उसके लिए थोड़ी व्यवस्था सरकार को​ भी करनी चाहिए कि सड़कें साफ-सुथरी हो जाएं, ट्रैफिक पुलिस वालों पर निगरानी हो, ​किसी को बेवजह परेशान न करें और लोगों को चाहिए इसमें पूरी अपनी जिम्मेदारी से सहयोग देकर नियमों का पालन करें, जुर्माने से बचें। तभी वह दुर्घटनाओं से भी बचेंगे। जरूरत है मजबूत इच्छाश​िक्त रखने की।  साथ ही सहयोग और कानून के पालन की भी जरूरत है।

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