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काशी में बसते भोले बाबा

भारत की सांस्कृतिक पहचान हमें इसी देश की भौगोलिक सीमाओं के भीतर फैले हुए धार्मिक आस्था के केन्द्रों में मिलेगी और भारत की भौगोलिक सीमाएं भी हमें इन्हीं आस्था केन्द्रों को जोड़ कर ही मिलेंगी।

भारत की सांस्कृतिक पहचान हमें इसी देश की भौगोलिक सीमाओं के भीतर फैले हुए धार्मिक आस्था के केन्द्रों में मिलेगी और भारत की भौगोलिक सीमाएं भी हमें इन्हीं आस्था केन्द्रों को जोड़ कर ही मिलेंगी। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक फैले हुए इन आस्था केन्द्रों की यात्राओं को ही ‘तीर्थ यात्रा’ से सम्बोधित कर हमने सम्पूर्ण भारत वर्ष की धरती की पवित्रता का स्वरूप संजोया और इसके वृक्षों से लेकर वनस्पति व वन्य जीवों से लेकर नदियों व पर्वतों को पूज्य समझ कर समूचे ब्रह्मांड के कल्याण के लिए देवों की आराधाना के स्वरों से इसे गुंजायमान किया। वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः का जो मूल भाव भारत की संस्कृति ने विश्व के समक्ष रखा उसके प्रतिफल में ही भारत विभिन्न संस्कृतियों का शरण स्थल बना और इसने सभी को सम्मान के साथ स्वयं में समाहित न करके सम्मिलित किया। परन्तु यह इ​ितहास का कड़ुवा सच है कि आठवीं सदी में भारत की धरती पर मुस्लिम धर्म के पदार्पण के बाद भारत की सर्वग्राही संस्कृति के मानकों को न केवल अपमानित किया गया बल्कि उन्हें अपमानित करने का दुष्चक्र भी रचा गया। इससे पूर्व एक भी उदाहरण एेसा नहीं मिलता है जिसमें जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं हुई हों।
बेशक सम्राट अशोक के शासन में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार विश्वव्यापी स्तर पर हुआ और समस्त दक्षिण एशिया इस धर्म के प्रभाव में भी आया मगर एक भी अवसर पर अत्याचार अथवा जोर-जबर्दस्ती का उदाहरण सामने नहीं आया। इ​ितहास तो यह तक कहता है कि अशोक महान के दादा सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य अपने जीवन के अंतिम समय में जैन धर्म में दीक्षित हो गये थे जबकि उनकी पत्नी अर्थात अशोक की दादी ‘आजीवक’  धर्म को मानने वाली थीं। परन्तु इसके बाद आठवीं शताब्दी के बाद से जिन मुस्लिम आक्रान्ताओं ने भारत पर आक्रमण किया वे मूलतः लुटेरे और आतताई थे।
सम्राट अशोक के बाद भारत में कुषाण वंश के महाराज कनिश्च से लेकर गुप्त वंश के सम्राट समुद्रगुप्त जैसे महाप्रतापी राजाओं का शासन रहा और उन पर भी बौद्ध धर्म का प्रभाव रहा। भारत में धर्म के नाम पर झगड़ों की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं रही क्योंकि इसकी संस्कृति में सभी मतों व पंथों को अपनी मान्यताओं के अनुसार जीवन यापन से लेकर ईश्वर साधना की खुली छूट थी और शासन करने वाले राजाओं का इसमें दखल नहीं था। यहां तक कि भारत में इस्लाम के पहुंचने से पहले फांसी जैसी सजा पर भी रोक थी। परन्तु मुस्लिम आक्रान्ताओं ने भारत के वैभव व सम्पत्ति की लालच में इस धरती पर जो खून की होली खेलनी शुरू की और अत्याचारों का बर्बर सिलसिला शुरू किया उससे भारतीय सभ्यता चीत्कार कर उठी और मुस्लिम लुटेरे सुल्तानों ने धन सम्पदा की हवस में इस देश के आध्यात्मिक व मन्दिरों पर आक्रमण करके ही अपनी क्रूरता का परिचय देकर यहां के मूल निवासियों को खौफजदा करना शुरू किया और जजिया जैसे शुल्क लगा कर उन्हें अपने ही देश में गुलाम बनाने का कुकृत्य किया।
यह सोचना गलत है कि बाबर भारत में कोई खैरात करने या हिन्दोस्तान को चमकाने के लिए आया था बल्कि उसका मूल लक्ष्य भारत की सम्पत्ति को लूटना ही था। इसी वजह से उसकी मृत्यु भी भारत में नहीं हुई। उसके बाद हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां व औरंगजेब वक्त की मांग के अनुसार अपना शासन चलाते रहे इनमें अकबर वास्तव में उदार राजा थे मगर उस पर भी भारत के हिन्दू वीर शिरोमणि हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) का सर कलम करने का अपराध था। मगर उसके पड़पोते औरंगजेब तो साक्षात रूप से भारत की धरती पर पैदा हुआ दुष्टराज था जिसने हजारों मन्दिरों को तोड़ा और देव स्थानों की मूर्तियों को अपवित्र किया और गऊ हत्या करने को सामान्य बना दिया। यहां तक कि उसके राज में पीपल के पेड़ व वटवृक्ष को काटने पर भी सबाब का काम माना जाने लगा। औरंगजेब ने काशी के मंदिर के आगे के ​िहस्से में मस्जिद बनवा डाली और हिन्दुओं को जबरन मुस्लमान बनाया। औरंगजेब आम भारतीयों के लिए ‘फतवा-ए-आलमगीर’ लिखवा कर पूरी भारतीय जनता पर इस्लामी शऱीयत के कानून लागू करवाना चाहता था।
काशी का महत्व हिन्दुओं के लिए वही है जो मुसलमानों के लिए काबा का है। इसी प्रकार मथुरा हो अयोध्या अथवा हरिद्वार हो या गंगा सागर अथवा केदारनाथ हो या बदरीनाथ, गंगोत्री हो या जमनोत्री, द्वारका हो या दक्षिण में रामेश्वरम अथवा ओडिशा में द्वारका पुरी या फिर उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश ये सब स्थल हिन्दुओं के वे पूज्य स्थान हैं जहां से भारतीय संस्कृति की विभिन्न अमृत धाराओं प्रस्फुटित होती हैं। राम, कृष्ण और शिव भारतीय दर्शन की आत्मा है जो विभिन्न स्वरूपों में मानवता को  समूची पृथ्वी पर अवतरित करते हैं। अतः हिन्दुओं के जगद कल्याण के प्रतीकों को कोई किस तरह अपने कब्जे में रखने की हिमाकत कर सकता है और भगवान शिव की प्रतिमा को फव्वारा बता कर सरेआम हिन्दू गैरत को ललकार सकता है। 

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