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भूटान की रक्षा में है भारत की सुरक्षा

भारत और भूटान के एक-दसरे के साथ लम्बे समय से कूटनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध चले आ रहे हैं। भारत-भूटान मैत्री संधि पर फरवरी, 2007 में

भारत और भूटान के एक-दसरे के साथ लम्बे समय से कूटनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध चले आ रहे हैं। भारत-भूटान मैत्री संधि पर फरवरी, 2007 में हस्ताक्षर होने से आपसी संबंध और मजबूत हुए। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार अपने वैदेशिक कूटनीति संबंधों को लेकर हमेशा सवालों के घेरे में रही है। उस पर आरोप लगता रहा है कि उसकी अदूरदर्शी नीतियों की वजह से पड़ोसी देशों से संबंध खराब हुए हैं और सुरक्षा को आघात पहुंचा। एक बार तो सरकार ने एक और अदूरदर्शी निर्णय लिया और उसने भूटान को दी जाने वाली कैरोसिन तेल आैर इंधन सब्सिडी पर रोक लगा दी थी। इस पर यूपीए सकार की कड़ी आलोचना हुई थी लेकिन भूटान की नई सरकार से कई मामलों पर विचार-विमर्श के बाद उसे सब्सिडी देने को तैयार हो गई थी।

यह तथ्य है कि 2008 के बाद से भूटान की राजनीति करवट लेने लगी थी और उसकी प्राथमिकता में भारत के साथ चीन भी शुमार होने लगा था। भूटान का चीन की तरफ बढ़ना भारत के सामरिक हित में नहीं है। 1949 में भारत और भूटान ने मित्रता और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए थे जिसका सार यह था कि भूटान वै​देशिक मामलों में भारत के सुरक्षा हितों को ध्यान में रखेगा आैर उसकी सलाह मानेगा।
फरवरी-2007 में भूटान सम्राट जिम्मे खेमा नामक्पाल वांगचुक भारत यात्रा पर आए और दोनों देशों ने मित्रता और सहयोग संधि को संशोधित करके नई बात जोड़ दी। वह यह कि दोनों देश एक-दूसरे की संप्रभुत्ता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करेंगे।

भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं। वहीं भारत-भूटान के बीच काफी गहरे संबंध हैं। दरअसल चीन और भूटान के बीच भी सीमा विवाद है। चीन चाहता है कि सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भारत की कोई भूमिका नहीं हो लेिकन भूटान ने साफ कर दिया था कि जो भी बात होगी वाे भारत की मौजूदगी में होगी। भारत और भूटान के बीच संधि चीन को हमेशा खटकती रही है। चीन आैर भूटान के बीच पश्चिम और उत्तर में करीब 470 किलोमीटर लम्बी सीमा है। दूसरी तरफ भारत और भूटान की सीमा पूर्व पश्चिम और दक्षिण में 605 किलोमीटर है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भूटान में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी रही है और भूटानी सेना को भारत ट्रेनिंग और फंड मुुहैया कराता है।

भारत भूटान की सुरक्षा के साथ अपनी सुरक्षा भी करता है। चीन के इरादे हमेशा से ही खतरनाक रहे हैं। कुछ वर्ष पहले ऐसा कहा जाने लगा था कि 1948 में माओ ने जिस तरह तिब्बत को अपने कब्जे में लिया था, चीन उसी तरह भूटान को भी तिब्बत का हिस्सा बना लेगा।

डोकलाम पर चीन और भारत विवाद पर भूटान ने आपत्ति जताई थी। भूटान के सरकारी मीडिया ने भी डोकलाम के पास चीन द्वारा सड़क बनाए जाने पर आपत्ति की थी। पहले रॉयल भूटान आर्मी ने चीन के सड़क निर्माण को रोकने की कोशिश की ले​िकन चीन टीम ने उनकी एक न मानी। इसके तत्काल बाद इस इलाके में भारतीय सैनिकों ने जाकर सड़क निर्माण को रोका। यह पहला मौका था जब भारत ने चीन को आंखें दिखाईं, दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने थे, युद्ध की आशंकाएं प्रबल थीं लेकिन कूटनीतिककर्ताओं से मामला सुलझ गया।

केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार भूटानी संप्रभुत्ता को पवित्र और अटूट मानती है। भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापार एवं विकास का भागीदार रहा है। भारत सरकार ने 2020 तक भूटान में दस हजार मैगावाट विद्युत उत्पन्न करने की प्रतिबद्धता जताई थी। भारत भूटान के निवेदन पर डालू और घासूपारा लैंड कस्टम स्टेशनों का उपयोग भूटानी कार्गो के लिए तथा चार अतिरिक्त प्रवेश-निकास बिन्दुओं को सहमति दे चुका है। 68 प्रमुख सामाजिक, आर्थिक सैक्टर प्रोजैक्ट तथा कृषि सूचना एवं संचार तकनीकी, मीडिया स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, संस्कृति तथा आधारभूत संरचना में भारत द्वारा सहायता प्रदान की जा रही है। भूटान के 20 जिलों एवं 200 से अधिक इलाकों में 1900 परियोजनाओं के लिए भारत द्वारा भूटान को अनुदान दिया जा रहा है।

हाइड्रो प्रोजैक्ट पूर्ण गति पर है। भूटान के नए प्रधानमंत्री लोटे शे​रिंग पहली बार भारत पहुंचे और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज से मुलाकात की। प्रधानमंत्री मोदी ने भूटान की 12वीं पंचवर्षीय आर्थिक योजना के तहत 4500 करोड़ की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है। द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने के लिए अगले 5 वर्षों के लिए 400 करोड़ का ट्रेड सपोर्ट करने का भी ऐलान किया। राजशाही शासन खास होने के बाद भूटान में तीसरी बार हुए संसदीय चुनावों में लोटे शेरिंग जीत कर प्रधानमंत्री बने हैं।

इस बात की पहले से ही उम्मीद थी कि लोटे शे​रिंग का झुकाव भारत की तरफ रहेगा। हिमालय की गोद में बैठे इस खूबसूरत देश के लिए यह बड़ी बात है कि चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ भारत भूटान के साथ खड़ा है जैसा कि डोकलाम में हुआ था। भारत के लिए यह जरूरी भी है कि वह अपने सामरिक हितों की रक्षा के लिए भूटान की रक्षा करता रहे। उम्मीद की जाती है कि दोनों देशों के संबंध और मजबूत होंगे।

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