राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आैर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गांवों को देश की आत्मा कहा था और ग्रामीणों के जीवन उत्थान को शासन के कार्य का लक्ष्य बनाया था। गांवों की शासन व्यवस्था को पंचायतों के हवाले करके और उन्हें मजबूती प्रदान करने का कार्य हर सरकार करती आई है। हरेक सरकार ने पंचायतों को अधिकार प्रदान करके ग्रामीणों की सत्ता में सीधे भागीदारी सुनिश्चित करके देश के सर्वांगीण विकास को आगे बढ़ाया है। पंचायती राज का शाब्दिक अर्थ है 'पांच लोगों का शासन' यानि किसी भी पंचायत में पांच लोग होते थे जो ग्रामीण स्तर पर प्रशासन का कार्य देखते थे। राज व्यवस्था में लोगों को सत्ता के करीब ला दिया है लेकिन पंचायतों को भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और निर्णय लेने की प्रक्रिया में अभिजात वर्ग के वर्चस्व के लिए जाना जाता है। पंचायतों पर वर्चस्व का एकदम नया और अनोखा मामला पंजाब के गुरदासपुर जिले के गांव हरदोवाल कलां का है, जहां सरपंच पद के लिए दो करोड़ रुपए की बोली ने सारी व्यवस्था को हतप्रभ कर िदया है।
भारत में पंचायती राज गांवों की स्थानीय स्वशासन की एक व्यवस्था है। इसमें पंचायती राज संस्थाएं शामिल हैं जिनके माध्यम से गांवों में स्वशासन व्यवस्था होती है। उन्हें "आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय को मजबूत करने और ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों सहित केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के कार्यान्वयन" का काम सौंपा गया है। सभी स्तरों पर पंचायतों के सदस्यों के लिए चुनाव हर पांच साल में होते हैं। पंचायतों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को सामान्य जनसंख्या के समान अनुपात में शामिल करना होता है। सभी सीटों और चेयरपर्सन पदों में से एक-तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होती हैं। पंचायती राज संस्थाओं के तीन स्तर हैं – ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत , मंडल परिषद या ब्लॉक समिति या ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद।
20 लाख से कम आबादी वाले राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में पंचायती राज संस्थाओं के केवल दो स्तर हैं। ग्राम सभा में ग्राम पंचायत के क्षेत्र में रहने वाले सभी पंजीकृत मतदाता होते हैं और यह वह संगठन है जिसके माध्यम से गांव के निवासी सीधे स्थानीय सरकार में भाग लेते हैं।
पंचायतों को तीन स्रोतों से धन प्राप्त होता है- केंद्रीय वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित स्थानीय निकाय अनुदान, केंद्र प्रायोजित योजनाओं द्वारा और राज्य सरकारों द्वारा जारी की गई धनराशि राजनीति में भ्रष्टाचार इस कदर घुस चुका है कि नेता अपनी तिजोरियां भरते हैं और गरीब दो-चार हड्डी के टुकड़े पाकर खुश हो जाते हैं। पहले ग्राम प्रधान का चुनाव गांव को कोई शिक्षित और ईमानदार व्यक्ति जीत लेता था लेकिन अब चुनाव जीतने के लिए कम से कम आप के पास 15 लाख रूपये होने चाहिएं, जिससे आप अपने वोटर की इच्छाओं की पूर्ति कर सकें।
ऐसा होता दिख नहीं रहा। भ्रष्टाचार इस कदर हावी हो चुका है कि लोग इसे पैसा कमाने का जरिया बना दिया है। इसी का नतीजा है कि सरपंचों की बोली लग रही है। गांव में सरपंच पद के लिए बोली को लेकर गुरुद्वारा साहिब से घोषणा की गई। गांव की 3 पार्टियां इसमें बोली लगा रही हैं। जो सबसे ऊंची बोली लगाएगा, उसे सर्वसम्मति से सरपंच बनाया जाएगा। बोली लगाने वालों में आत्मा सिंह, जसविंदर सिंह बेदी, निरभैर सिंह शामिल हैं। बीजेपी नेता ने अभी तक सबसे ऊंची बोली लगाई है। भाजपा नेता आत्मा सिंह के मुताबिक यह बोली और भी ऊंची जाएगी। इस बोली को लेकर सभी गांववालों की सहमति है। वहीं गांव की युवा सभा का दावा है कि बोली से आने वाला पैसा गांव के विकास पर खर्च किया जाएगा। जबकि पंचायत को दी जाने वाली ग्रांट अलग से होगी।
पंजाब के गांव में सबसे पहले भाजपा नेता आत्मा राम ने 50 लाख रुपए की बोली लगाई। उनके मुकाबले जसविंदर सिंह ने 1 करोड़ की बोली लगाई। जिसके बाद आत्मा सिंह ने 2 करोड़ की बोली लगाई। बता दें कि यह गुरदासपुर की सबसे बड़ी पंचायत है। पंचायत के पास 300 एकड़ की जमीन है। गांव में जब से पंचायत भंग हुई है, तब से गांव की युवा सभा (21 सदस्यीय समिति) सारी व्यवस्था देख रही है। सभा ने तय किया था कि इस बार जो व्यक्ति सरपंच पद के लिए सबसे ज्यादा राशि देगा, उसे सर्वसम्मति से गांव का सरपंच चुना जाएगा। वहीं, अब इस मामले में राज्य चुनाव आयोग ने संज्ञान लेते हुए मामले की रिपोर्ट मांगी है। साथ ही ऐसे अन्य मामलों पर भी आयोग नजर बनाए हुए है, जहां रुपयों की संलिप्तता है। आयोग के अनुसार ऐसे दो मामले उनके संज्ञान में आए हैं, इनकी रिपोर्ट मांगी गई है। जांच की जा रही है कि नियमों के मुताबिक ऐसा किया जा सकता है या नहीं। जांच के बाद ही मामले में उचित कार्रवाई की जाएगी।
चुनाव आयोग के साथ-साथ यह मामला अब कोर्ट में भी पहुंच गया है। आगामी िदनों में इसका बड़ा प्रभाव दिख सकता है। भारत के लोकतंत्र की इस मजबूत प्रक्रिया को चोट पहुंचाने वाले इस वाक्ये ने पंचायती राज व्यवस्था को अन्दर तक हिला दिया है। भारत के नियामकों आैर नीति निर्धारकों को जल्द ऐसे उपाय करने होंगे जिससे समाज के सभी वर्गों आैर लोगों की भागीदारी लोकतंत्र में हर स्तर पर सुनिश्चित हाे सके। भारत को मजबूत पंचायती व्यवस्था की जरूरत है, न कि ऐसी बोली आधारित व्यवस्था की। इसे जल्द ही सुधारना होगा।
अगर इस तरह पद बिकने लगें तो लोकतांत्रिक व्यवस्था को सम्भाल पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा। अभी भी लोकतंत्र में चुनाव जीतने के लिए धन-बल को बेहद अहम माना जाता है और विधानसभाओं में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी परोक्ष रूप से करोड़ों रुपए खर्च करते हैं। हालांकि चुनावी खर्च की सीमा सीमित होती है। पंचायतों के चुनावों में भी लाखों रुपए खर्च होना आम बात हो गई है।