अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार पर भारत की नजरें लगी हुई हैं। यद्यपि बाइडेन ने भारत को लेकर सकारात्मक रुख ही दिखाया है। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के रिश्ते काफी मजबूत हुए थे। खासतौर पर रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में कारोबारी समझौते हुए। बड़े रक्षा सौदे भी हुए और अरबों डालर के हथियार सौदे प्रक्रिया में हैं। अब कारोबार और राजनीतिक समझौतों में बाइडेन प्रशासन का रुख क्या रहेगा यह तो आने वाले दिन ही बताएंगे। यह सही है कि अमेरिकी अपने हितों को हमेशा सर्वोपरि मानते हैं और बाइडेन भी अमेरिकी हितों को सर्वोपरि रखेंगे।
भारतीय इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भारतीय मूल की हैं लेकिन हमें यह भी भूलना नहीं चाहिए कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध कमला हैरिस पहले ही कर चुकी हैं। भारत के लिए यह संतोष की बात है कि बाइडेन की टीम में भारतीय मूल के 20 लोग शामिल हैं। यह अमेरिका के किसी भी राष्ट्रपति की टीम में भारतीयों की अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। यह अमेरिका की राजनीति में भारत की बढ़ती हुई साॅफ्ट पावर भी कह सकते हैं। इन भारतीयों की सूची में नीरा टंडन सबसे महत्वपूर्ण हैं, वह अमेरिका के लिए बजट तैयार करेंगी। वनिता गुप्ता को अमेरिका के न्याय विभाग में तीसरे महत्वपूर्ण पद यानी एसोसिएट अटार्नी जनरल मनोनीत किया गया है। इस सूची में डाक्टर विवेक मूर्ति, माला अडिगा, सबरीना सिंह, आयशा शाह, समीरा फाजली, भरत राममूर्ति, गौतम राघवन, विनय रेड्डी, वेदांत पटेल, सोनिया अग्रवाल और विदुर शर्मा के नाम शामिल हैं। राष्ट्रपति के सबसे करीबी लोगों में विनय रेड्डी होंेगे, उन्हें जो बाइडेन के भाषणों को लिखने की जिम्मेदारी मिली है। राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों पर फैसला देने वाली नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में भारतीय मूल के तीन लोगों को शामिल किया गया है। ये सभी लोग भारत की भावनाओं को अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए नीतियों को बनाने में भारतीय हितों का ध्यान रखा ही जाएगा।
बाइडेन के सत्ता में आने के बाद उम्मीद तो यही है कि भारत और अमेरिका की दोस्ती की नई कहानी शुरू होगी। ओबामा के कार्यकाल में जो बाइडेन ने कई मुद्दों पर भारत का समर्थन किया था। इनमें वर्ष 2004 की न्यूक्लियर डील भी शामिल है। आतंकवाद के खिलाफ बाइडेन का सख्त रुख भारत के लिए काफी अच्छा माना जा रहा है। इमिग्रेशन के मामले पर बाइडेन की नीति से भारतीय प्रोफेशनल्स और छात्रों को फायदा हो सकता है। अब रहा चीन और पाकिस्तान का मसला। बाइडेन सरकार ने चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है लेकिन पाकिस्तान को लेकर अभी अमेरिका का रुख पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है। यद्यपि कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिस पर बाइडेन भारत के विचारों से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। जम्मू-कश्मीर, सीएए और एनआरसी के मुद्दों पर जो बाइडेन भारत के विचारों से सहमत नहीं हैं। जब कमला हैरिस ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य के पुनर्गठन की निंदा की थी तब 18 दिसम्बर, 2020 को कैपिटल हिल में अमेरिका के प्रतिनिधियों के साथ जो बैठक निर्धारित की थी उसे भारतीय विदेश मंत्री ने रद्द कर दिया था। इसकी वजह कांग्रेस प्रोग्रेसिव काम्स की प्रमुख प्रमिला जायपाल थीं। 6 दिसम्बर, 2020 का डेमोक्रेट सांसद प्रमिला जायपाल 370 के विरुद्ध निचले सदन में प्रस्ताव ला चुकी थीं जो सीनेट तक नहीं पहुंचा था।
डोनाल्ड ट्रंप एशिया प्रशांत में भारत की सक्रियता चाहते थे। बाइडेन प्रशासन भी एशिया प्रशांत में भारत को सक्रिय देखना चाहेगा। इस नीति में कोई खास परिवर्तन नहीं आने वाला। चीन को हर मोर्चे पर करारा जवाब देने के लिए अमेरिका को भारत का साथ चाहिए। चीन का काउंटर करने के लिए भारत को भी अमेरिका का समर्थन चाहिए।
अमेरिका के लिए साउथ चाइना सी और पूर्वी एशिया केन्द्रित कूटनीति की कई वजह हैं। पहली वजह एशिया प्रशांत के इलाके में एक तिहाई व्यापार साउथ चाइना सी के रास्ते से ही होता है। दूसरा कारण दक्षिण पूर्व एशिया के दस देशों का संगठन आसियान दुनिया की 66 करोड़ 11 लाख आबादी का प्रतिनिधित्व करता है और 9,727 ट्रिलियन डॉलर की मुक्त अर्थव्यवस्था है। भारत आसियान का चौथा बड़ा व्यापारिक साझीदार है। अमेरिकी जानते हैं कि भारत की साख आसियान में बहुत मजबूत है। ताइवान, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे मसले बाइडेन को विरासत में मिले हैं। बाइडेन के सामने घरेलू मर्चे पर बड़ी चुनौती अश्वेत समुदाय के प्रति पनप रही घृणा को खत्म करना है। अमेरिका के निर्माण में अश्वेतों की भूमिका श्वेतों की तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ रही है। कोरोना ने अमेरिका को बुरी तरह से तोड़ दिया है। उम्मीद तो की जानी चाहिए कि भारत के साथ अमेरिकी संबंध सहज ही रहेंगे लेकिन चीन,पाकिस्तान और रूस के साथ अमेरिका कैसे शक्ति संतुलन बना पाता है, इसे देखने के लिए हमें कुछ समय इंतजार करना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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