लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

रेल मंत्री के सामने बड़ी चुनौतियां

NULL

गुरुवार को एक दिन में एक के बाद एक चार ट्रेन दुर्घटनाओं की खबरों ने देशवासियों में खौफ पैदा कर दिया है। लम्बी दूरी की यात्रा करने वाले लोग ​​चिंतित हैं तो कम दूरी की यात्रा कर रोजी-रोटी कमा रहे दैनिक यात्रियों में भी डर है कि पता नहीं वापिस घर लौटेंगे या नहीं। रेल पथ मृत्यु पथ बनते जा रहे हैं। बचपन में बुद्धिमान बालक की कहानी पढ़ते थे कि उसने अपनी लाल रंग की शर्ट दिखाकर ट्रेन को रुकवाया क्योंकि पटरी टूटी हुई थी, उसी तरह एक युवक ने लाल बनियान दिखाकर फर्रुखाबाद और फतेहगढ़ के बीच का​लिंदी एक्सप्रैस को रुकवाया और सैकड़ों यात्रियों की जान बचाई। नवनियुक्त रेल मंत्री पीयूष गोयल रेलवे सुरक्षा पर अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे कि एक के बाद एक ट्रेनों के पटरियों से उतरने की दुर्घटनाएं होती गई।

पीयूष गोयल के सामने सबसे बड़ी चुनौती ट्रेन यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। उन्होंने रेलवे बोर्ड से दुर्घटना की आशंका वाले हिस्सों में नई लाइनों के निर्माण के लिए चिन्हित रेलों के मार्ग बदलने और यह पता लगाने को कहा है कि कहां-कहां पुरानी पटरियों काे हटाने का काम किया जाना है। उन्होंने लम्बित परियोजनाओं में पटरियों को बिछाने का काम शीघ्र पूरा करने को कहा और एक साल के भीतर फाटक रहित लेबल क्रा​सिंग को खत्म करने को भी कहा। देशवासियों में ट्रेनों में सफर को सुरक्षित बनाकर रेलवे विभाग की खोई हुई साख को बहाल करने की चुनौती बहुत बड़ी है। आम नागरिक ट्रेन में बैठकर यही सोचता है कि कहीं कोई हादसा उसका इंतजार तो नहीं कर रहा? हर बार दुर्घटना की जांच के आदेश दे दिए जाते हैं, हर पीड़ित काे मुआवजे का ऐलान भी कर दिया जाता है।

सरकार हर बार बड़े-बड़े दावे करती है कि रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाया जा रहा है लेकिन सुरक्षा व्यवस्था कमजोर होती नज़र आती है। ​देश में 7083 रेलवे स्टेशन, 1,31,205 ब्रिज, 9000 इंजन, 51030 पैसेंजर कोच, 2,19,931 मालगाड़ी कोच और 63,974 किलोमीटर के रूट से भारतीय रेलवे के विशाल नेटवर्क का अंदाजा लगाया जा सकता है। रोजाना लगभग 19 हजार ट्रेनों का संचालन होता है और 2.65 मिलियन टन का सामान और 23 मिलियन यात्रियों का परिवहन किया जाता है। वर्ष 1954 से अब तक कम से कम 8 समितियों की ओर से रेलवे सुरक्षा की जोरदार वकालत की गई लेकिन इनकी रिपोर्टों को नजरंदाज किया गया। वर्ष 2011 में यूपीए सरकार ने रेल सुरक्षा पर अनिल काकोदकर समिति बनाई थी। इस समिति की ओर से अगले 5 वर्षों में एक लाख करोड़ रुपए खर्च करके रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने का प्रस्ताव दिया था।

सरकार ने इस समिति के सिर्फ पांच प्रस्तावों को ही लागू किया। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पास करीब 1,15,000 किलोमीटर लम्बा ट्रैक है। वर्ष 2015 में रेल मंत्रालय ने 4500 किलोमीटर ट्रैक का हर वर्ष नवीकरण करने का प्रस्ताव दिया था लेकिन सिर्फ 2,100 किलोमीटर के ट्रैक का ही नवीकरण हो सका था। तीन हजार पुल ऐसे हैं जो सौ वर्ष से पुराने हैं और इनमें से 32 को अत्यंत खतरनाक करार दिया जा चुका है फिर भी इनका इस्तेमाल हो रहा है। पिछले तीन वर्षों में 201 से ज्यादा ट्रेनें पटरी से उतर चुकी हैं और सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं। पिछले 5 वर्षों में 586 ट्रेन दुर्घटनाएं हुईं और इनमें से अधिकांश घटनाएं ट्रेनों के पटरी से उतरने के कारण हुईं। अनेक दुर्घटनाएं मानवीय भूलों के कारण हुईं। पिछले माह मुजफ्फरनगर में पुरी-हरिद्वार उत्कल एक्सप्रैस ट्रेन के 14 डिब्बे पटरी से उतर जाने के कारण 23 यात्रियों की मौत हो गई। इस हादसे के पीछे रेलवे अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही थी। रेलवे ट्रैक की मरम्मत का काम चल रहा था लेकिन किसी ने भी यह जानकारी ऊपर तक नहीं पहुंचाई।

आजादी के बाद रेलवे को लोगों की सेवा की दृष्टि से चलाया गया था लेकिन अब रेलवे को लाभ-हानि की दृष्टि से देखे जाने वाले सरकारी उपक्रम के तौर पर चलाया जा रहा है। लालू प्रसाद यादव ने रेलवे को लाभ में लाने के लिए प्रत्येक ट्रेन में दो या तीन डिब्बे जोड़ कर उनकी क्षमता तो बढ़ा दी लेकिन यह नहीं देखा कि क्या पटरियां ट्रेन का बोझ सहन कर पाएंगी या नहीं। ट्रेनों की बढ़ती क्षमता और कमजोर होती पुरानी पटरियां विनाशकारी हादसों की वजह बनीं। पुराना इन्फ्रास्ट्रक्चर, पटरियों पर बढ़ता बोझ और यात्रियों की सुरक्षा में सुधार न होना बड़ी वजह है। मानवरहित फाटकों पर दुर्घटनाएं रोकने के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।

ट्रेनों का हाल देखें तो यात्री डिब्बों में सफाई की कोई अच्छी व्यवस्था नहीं। ट्रेनों में खान-पान की गुणवत्ता को लेकर बहुत बार सवाल उठ चुके हैं। कम्बलों और चादरों की धुलाई को लेकर सवालिया निशान लग जाने के बाद लोग अब कम्बल भी घर से ले जाने लगे हैं। रेल मंत्री पीयूष गोयल के सामने चुनौती भ्रष्टाचार की भी है। खान-पान के ठेके आवंटित करने से लेकर ई-टिकट और आरक्षण तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। त्रिशंकु सरकारों में रेलवे मंत्री का पद पाने को लेकर घटक दलों में सिर-धड़ की बाजी लगती रही है। मोदी सरकार के पास न तो बहुमत की कमी है और न ही इच्छाशक्ति की। उम्मीद है कि पीयूष गोयल रेलवे की साख बहाल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five × five =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।