बड़ा सवाल : कौन है नीट का नटवरलाल ? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

बड़ा सवाल : कौन है नीट का नटवरलाल ?

चिकित्सा जैसे पवित्र क्षेत्र में प्रवेश के लिए नीट यानी नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट 2024 के परिणाम को लेकर हंगामे के बाद कृपांक यानी ग्रेस मार्क्स हटा देने का निर्णय हो गया है लेकिन इस मामले का क्या यही अंत है? नहीं। बड़ा सवाल यह है कि धांधली के धंधे का असली नटवरलाल कौन है? निश्चय ही एक नहीं कई नटवरलाल होंगे, क्या ये सब जेल जाएंगे या अदृश्य शक्तियां पहले की तरह ही इन गुनहगारों को भी बचा ले जाएंगी? भारत में परीक्षा में धांधली की खबर और धांधली को दबा देना नई बात नहीं है लेकिन जब सबकुछ खुलेआम होने लगे तो खून खौलना स्वाभाविक है। अपनी ही व्यवस्था पर संदेह गहरा होना स्वाभाविक है। पांच मई को नीट की परीक्षा के दिन खबर आई कि धांधली की सूचना पर पटना में पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। सवाई माधोपुर से खबर आई कि हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों को अंग्रेजी के प्रश्नपत्र दे दिए गए। एक घंटे बाद प्रश्नपत्र बदला गया। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने इसे स्वीकार भी किया। लेकिन परिणाम आने के बाद यह शंका पैदा हो गई कि प्रश्नपत्र गलती से बदल गया या जानबूझ कर बदला गया ताकि कृपांक यानी ग्रेस मार्क्स दिए जाने की भूमिका तैयार की जा सके? एक और कमाल देखिए कि भौतिक शास्त्र का एक प्रश्न ऐसा था जिसके चार में से दो जवाब सही माने जा सकते थे।

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एक नई पुस्तक के हिसाब से और दूसरा पुरानी पुस्तक के हिसाब से। इस तरह यह तय किया गया कि जहां प्रश्नपत्र वितरण में गड़बड़ी हुई या भौतिक शास्त्र के प्रश्न में जिन्होंने दूसरा सही जवाब चुना उन्हें कृपांक दिए जाएं। ऐसे परीक्षार्थियों की संख्या 1563 थी, जिन पर व्यवस्था ने कृपा की। परीक्षा का परिणाम जब सामने आया तो परीक्षार्थी भी चौंक गए। 67 टॉपर को 720 में से पूरे 720 नंबर मिले थे। इनमें फरीदाबाद के एक ही सेंटर के 6 बच्चे शामिल थे। कमाल की बात यह भी है कि प्रत्येक प्रश्न 4 नंबर का था तो परीक्षार्थियों को इसी गुणक में नंबर भी आने चाहिए थे लेकिन कुछ को 718 और 719 नंबर भी मिले। ऐसा कैसे संभव हो सकता है? इतने सारे उदाहरण धांधली के स्पष्ट संकेत हैं इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को फटकार लगाते हुए कहा भी कि परीक्षा की शुचिता प्रभावित हुई है। दरअसल यही गंभीर सवाल है जिस पर विचार करना जरूरी है। इससे पूरा देश प्रभावित हुआ है। बच्चे तनाव में हैं, माता-पिता तनाव में हैं। मेरे पास पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन मैंने कहीं सुना कि एक चिकित्सक अपने बच्चे को लेकर इतने तनाव में था कि उसने गलत ऑपरेशन कर दिया। इस तरह की चर्चा फैलना भी समस्या की गहराई को बताता है।

आज लोग कहने में नहीं हिचकते कि शिक्षा माफिया ने व्यवस्था को बंधक बना लिया है। हर साल प्रश्नपत्र लीक होने के मामले सामने आते हैं लेकिन असली नटवरलाल अमूमन जेल की सींखचों से बाहर रहता है। यदि प्रतियोगी परीक्षाएं भी धांधली का शिकार हो रही हैं तो हम भविष्य के लिए कैसी पीढ़ी तैयार कर रहे हैं? इस तरह से परीक्षा पास करके जो युवा चिकित्सा की मुख्यधारा में आएंगे वे कैसे चिकित्सक बनेंगे? वे चिकित्सा जगत के कैसे शिक्षक बनेंगे? वे क्या पढ़ाएंगे और जो पढ़ने आएंगे वे क्या पढ़ेंगे? ये तो मैं अभी चिकित्सा क्षेत्र की बात कर रहा हूं, इंजीनियरिंग से लेकर बाकी सभी क्षेत्रों में भी गुणवत्ता का यही यक्ष प्रश्न खड़ा है। जर्जर प्राथमिक शिक्षा में विद्यार्थियों, टीचर्स और भवन के फर्जीवाड़े के माध्यम से सरकारी फंड हासिल करने के भी ढेर सारे मामले आ चुके हैं। उच्च शिक्षा का बुरा हाल है। ध्यान रखिए, शैक्षणिक गुणवत्ता गिरती है तो वह देश रसातल की ओर जाता है। हकीकत यह है कि देश में कुशल लोगों की भयंकर कमी है। मैं एक नियोक्ता भी हूं इसलिए कह सकता हूं कि योग्य लोग कम मिलते हैं।

आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि अकेले टीसीएस जैसी कंपनी में ही 80 हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं क्योंकि योग्य लोग नहीं मिल रहे हैं। दूसरी कंपनियों में भी यही हाल है। मेरा सवाल यह है कि भारत सरकार का शिक्षा विभाग क्या कर रहा है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले को गंभीरता के साथ देखना चाहिए। आज हम दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने जा रहे हैं। उस उच्च श्रेणी के लिए भी तो हमें उच्च श्रेणी की योग्यता वाले लोग चाहिए। कहां से लाएंगे ऐसे लोग? दुनिया की आबादी में भारत की हिस्सेदारी 17 फीसदी से ज्यादा है मगर दुनिया के 100 बड़े शैक्षणिक संस्थानों में हमारे संस्थान कितने हैं? वास्तविक तौर पर संभवत: एक भी नहीं।

यही कारण है कि हमारे युवा अमेरिका, कनाडा, यूके और अन्य पश्चिमी देशों में जा रहे हैं। हमारे यहां तकनीकी पढ़ाई महंगी है इसलिए सस्ती पढ़ाई के लिए रूस और टूटे हुए सोवियत संघ के छोटे-छोटे देश जा रहे हैं, चीन जा रहे हैं। देश का करोड़ों, अरबों रुपया उन देशों में जा रहा है और हम क्या कर रहे हैं? हम अपने युवाओं के पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। नटवरलालों को पाल रहे हैं। शिक्षा का सर्वनाश किए जा रहे हैं। मुझे याद है कि कपिल सिब्बल जब मानव संसाधन मंत्री थे तब उनके सामने पैसों के बल पर इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटों की बंदरबांट का मामला आया। उन्होंने सीबीआई जांच के आदेश दिए और लगाम कस दी। मौजूदा दौर में शिक्षा के नटवरलालों के नाश की कमान भी सीबीआई को सौंपनी चाहिए, अन्यथा हम कवि नीरज की ये कविता गुनगुनाते रह जाएंगे… लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से / और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे…कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे..! एक बात और कहना चाहता हूं। मैं दुनिया की बहुत सी बेहतरीन लीज यूनिवर्सिटीज में गया हूं और वहां कई बड़े भारतीय उद्योगपतियों के नाम दानदाताओं की सूची में देखे हैं। ये उद्योगपति भारत में बेहतरीन शिक्षण संस्थानों की स्थापना के लिए हाथ क्यों नहीं बढ़ाते? देश की शिक्षा व्यवस्था के साथ उनका लगाव व सहयोग बहुत जरूरी है।

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