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भाजपा कांग्रेस व प्रादेशिक चुनाव

आगामी मार्च महीने में सम्पन्न होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की जो तस्वीर फिलहाल उभरनी शुरू हुई है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इनमें से तीन राज्यों में असली मुकाबला सत्तारूढ़ भाजपा व प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बीच हो रहा है

आगामी मार्च महीने में सम्पन्न होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की जो तस्वीर फिलहाल उभरनी शुरू हुई है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इनमें से तीन राज्यों में असली मुकाबला सत्तारूढ़ भाजपा व प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बीच हो रहा है और एक राज्य पंजाब में भाजपा मैदान से बाहर मानी जा रही है परन्तु विडम्बना यह है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कहीं पिछली कतार में चौथे नम्बर पर नजर आ रही है। इसकी प्रमुख वजह इस राज्य की सामाजिक बनावट का वह ताना-बाना है जिसे हर मोड़ पर क्षेत्रीय जनता के विविध वर्गीय, सामुदायिक व साम्प्रदायिक आग्रहों ने जकड़ रखा है। यही वजह है कि इस राज्य में भाजपा का मुकाबला समाजवादी पार्टी से हो रहा है जिसे सामाजिक अन्तर्द्वन्दों से उपजी राजनैतिक शक्ति की पार्टी कहा जा सकता है। इसके बाद बहुजन समाज पार्टी का नम्बर आता है और इसका फलसफा भी समाजवादी पार्टी या सपा से अलग नहीं माना जा सकता। चौथे नम्बर पर कांग्रेस पार्टी आती है जिसमें सामाजिक अंतर्द्वन्दों व स्पष्ट निर्दिष्ट सिद्धान्तों को लेकर भारी खींचतान चल रही है और यह पार्टी विभिन्न अन्तर्विरोधों से घिरी उत्तर प्रदेश की सियासत में अपने लिए सुरक्षित स्थान की तलाश कर रही है परन्तु अन्य राज्यों पंजाब, गोवा, मणिपुर व उत्तराखंड में यह स्थिति नहीं है और कांग्रेस पार्टी स्पष्ट नजरिये के साथ भाजपा का मुकाबला कर रही है। 
बेशक पंजाब को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि इस राज्य में त्रिकोणात्मक संघर्ष सत्तारूढ़ कांग्रेस, अकाली दल व आम आदमी पार्टी के बीच हो सकता है मगर यहां भाजपा कहीं नजर नहीं आ रही है। इसकी वजह मानी जा रही है कि राज्य की क्षेत्रीय पार्टी अकाली दल व भाजपा के बीच का 53 साल पुराना गठबन्धन समाप्त हो गया है जो 1967 में ‘अकाली-जनसंघ’ गठजोड़ के रूप में बना था। पंजाब के पिछले चुनावों में भी आम आदमी पार्टी के कांग्रेस के बाद सबसे अधिक विधायक 20 के आसपास थे परन्तु राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पंजाब की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए अन्ततः यहां किसी एक दल को ही पूर्ण बहुमत जनता देगी और राजनीतिक स्थायित्व को पसन्द करेंगी परन्तु सुदूर समुद्र तट पर बसे छोटे से राज्य गोवा से जो संकेत मिल रहे हैं वे भी राज्य में राजनीतिक स्थायित्व की तरफ इशारा कर रहे हैं । इसकी असली वजह यह है कि सत्तारूढ़ भाजपा को बेदखल करने के लिए जिस प्रकार प. बंगाल की क्षेत्रीय पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने मतदान से पहले ही भाजपा को अपने भरोसे पर सत्ता से बाहर करने में असमर्थता जताई है और कांग्रेस पार्टी के साथ चुनाव पूर्ण समझौता करने का प्रस्ताव किया है उससे आभास होता है कि यह पार्टी खुद ही विपक्षी मतों में बंटवारे को संजीदगी से ले रही है और भाजपा के खिलाफ एकजुटता चाहती है। राजनीतिक व्याकरण में इसे ‘आत्म शक्ति बोध’ कहा जाता है जिसके अनुसार साझा विरोधी को हराने की गरज से शक्तिशाली विरोधी शक्ति के समक्ष आत्मसमर्पण करके लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है परन्तु जब यह समीकरण आम जनता के बीच उतरता है तो ‘वोट कटवा’ राजनीति का नाम दे दिया जाता है। लगभग एेसा ही काम इस राज्य में आम आदमी पार्टी भी कर रही है जिसने कह दिया है कि गोवा में चुनाव के बाद भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए अन्य विपक्षी दलों के साथ गठबन्धन किया जा सकता है। मतदान से पूर्व ही इस तरह के समीकरणों के बारे में बात करना सत्तारूढ़ दल की ताकत को हैसियत देना होता है लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के गोवा के प्रभारी वरिष्ठ नेता श्री पी. चिदम्बरम ने दबी जुबान में स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस अकेले ही चुनावी मैदान में मुकाबला करेगी क्योंकि यह इस राज्य की स्वाभाविक वैकल्पिक पार्टी है। श्री चिदम्बरम को यह विश्वास देने वाले तृणमूल कांग्रेस व आम आदमी पार्टी ही हैं। यदि हम उत्तराखंड राज्य की बात करें तो यहां सीधा मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच है। इन दोनों पार्टियों के बीच की यह लड़ाई राज्य के नवीन इतिहास से जुड़ी हुई है। हालांकि लगभग 21 साल पहले इस राज्य का निर्माण भाजपा की केन्द्र में सरकार रहते और श्री लालकृषण अडवाणी के गृहमन्त्री रहते ही किया गया था परन्तु इसकी मांग का समर्थन पहले से ही गढ़वाल के कांग्रेसी नेता व पूर्व मुख्यमन्त्री श्री हरीश रावत उठा रहे थे और उनसे भी पहले उत्तराखंड क्रान्ति दल के नेता श्री मेहरा उठा रहे थे। अतः राज्य की राजनीति में इन दोनों ही दलों कांग्रेस व भाजपा का स्वाभाविक अधिकार बनता है परन्तु आम आदमी पार्टी बी राज्य की ताजा परिस्थितियों में अपने लिए जगह बनाने की कोशिश में वर्तमान सत्ताविरोधी भावनाओं को अपने पक्ष में बांटने की कोशिश कर रही है। राज्य की भौगोलिक कठिन परिस्थितियों के बीच राजनीति करना बहुत आसान काम नहीं माना जाता क्योंकि लोगों की समस्याएं एक स्थान से दूसरे स्थान में परिवर्तनीय होती हैं। इस कार्य में भाजपा व कांग्रेस दोनों के ही नेताओं को महारथ हासिल है फिर भी कांग्रेस के पुराने इतिहास को देखते हुए इसके पूर्व नेताओं का इस राज्य के विकास में योगदान स्व. गोविन्द बल्लभ पन्त से लेकर चन्द्रभानु गुप्ता तक रहा है। स्व. गुप्ता उत्तर प्रदेश के लौह पुरुष कहे जाते थे मगर वह चुनाव इसी इलाके की रानीखेत सीट से लड़ते थे। मगर भाजपा को अपने नवीन इतिहास पर गर्व है और इसके वर्तमान मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी अर्ध मैदानी इलाके खटीमा से ही विधायक हैं। अतः भाजपा व कांग्रेस इस राज्य में बारी-बारी से सत्ता पर काबिज भी होती रही है। मणिपुर राज्य विशिष्ट परिस्थितियों वाला उत्तर पूर्व का राज्य है और यह एक जमाने तक कांग्रेस के गढ़ के रूप में रहा है मगर पूरे देश में चली भाजपा की मोदी लहर से उत्तर पूर्व के राज्य भी एक के बाद एक भाजपा की झोली में गिरते गये। इसके साथ ही यहां की क्षेत्रीय व आंचलिक पार्टियों ने भी भाजपा की मदद की है मगर कांग्रेस के जनाधार को तोड़ना आसान काम नहीं रहा है। इसकी वजह यह भी रही कि कांग्रेस पार्टी बहुत लम्बे अर्से तक दिल्ली में सत्ता पर रही। मगर अब पिछले सात साल से भाजपा केन्द्र की सत्ता में है जिसकी वजह से इस राज्य की राजनीति में हम परिवर्तन देख रहे हैं। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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