महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में भाजपा का स्पष्ट रूप से दबदबा है, हालांकि ऊपरी तौर पर देखा जाए तो उसे छोटी पार्टियों, शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी को अपनी अपेक्षा से अधिक सीटें देनी पड़ी हैं। इसने अपने सहयोगियों को शिवसेना और एनसीपी के टिकट पर भाजपा नेताओं को मैदान में उतारने के लिए मजबूर किया है। भाजपा के 16 नेताओं ने शिवसेना या एनसीपी के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए पार्टी छोड़ दी है। उदाहरण के लिए भाजपा प्रवक्ता और एक परिचित टीवी चेहरा शाइना एनसी तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता नारायण राणे के बेटे नीलेश को शिवसेना के टिकट पर विधानसभा चुनावों के लिए चुना गया है। वे उन 12 भाजपा उम्मीदवारों में शामिल हैं जिन्हें शिंदे सेना ने अपने पाले में कर लिया है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि यह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कहने पर किया गया है, जिनके महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिंदे सेना प्रमुख एकनाथ शिंदे के साथ घनिष्ठ संबंध हैं।
अजित पवार ने चार भाजपा नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है और उन्हें टिकट भी दे दिया है। भाजपा की रणनीति साफ है। चूंकि गठबंधन को बरकरार रखने के लिए उसे अपने सहयोगियों को कुछ सीटें देनी ही थीं, इसलिए उसने उन दलों में अपने लोग बिठा दिए हैं। विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को धन्यवाद देने वाले उनके बयानों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये पूर्व भाजपा नेता अपनी पुरानी पार्टी के प्रति वफादार बने हुए हैं। यदि वे किसी अन्य पार्टी के टिकट पर भी जीत जाते हैं, तो राज्य विधानसभा में उनकी उपस्थिति भाजपा को महायुति गठबंधन में अपनी क्षमता से अधिक प्रदर्शन करने में मदद करेगी।
समय बदला, अब चिराग की बारी
बिहार के दलित नेता रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और छोटे भाई पशुपति पासवान के बीच दिवंगत नेता की राजनीतिक विरासत पर दावा करने की लड़ाई बढ़ती जा रही है। अब वे पटना स्थित लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) मुख्यालय पर कब्जे को लेकर झगड़ रहे हैं। यह बंगला फिलहाल विभाजित लोजपा के पशुपति पासवान गुट के पास है। मोदी सरकार में अपने नए-नए प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए चिराग पासवान अपने चाचा के खिलाफ बेदखली का आदेश जारी करवाने में कामयाब हो गए हैं। इसके साथ ही चिराग पासवान को उम्मीद है कि वे अपने दिवंगत पिता की पार्टी के अपने गुट के लिए बंगले पर दावा कर सकेंगे। बंगले का भाग्य चाचा-भतीजे के राजनीतिक भाग्य से जुड़ा हुआ है। जब मूल लोजपा में विभाजन हुआ था, तो पशुपति पासवान मोदी सरकार के पक्ष में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे थे।
चाचा को मोदी सरकार 2-0 में कैबिनेट में जगह दी गई, जबकि चिराग पासवान ठंडे बस्ते में थे। हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों से ठीक पहले समीकरण बदल गए। चिराग पासवान मोदी-शाह की जोड़ी की नज़रों में वापस आने में सफल रहे। आम चुनाव में छह सीटें जीतने पर उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई। इसने उन्हें एनडीए में एक शक्तिशाली आवाज़ बना दिया। अब वे भाजपा की मदद से अपने चाचा को बिहार की राजनीति से पूरी तरह बाहर करने के लिए अपनी ताकत दिखा रहे हैं।
अयोध्या में दीयों का रिकार्ड
गिनीज वर्ल्ड िरकार्ड्स की टीम ने दिवाली पर अयोध्या में जलाए गए दीयों की सही संख्या गिनने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया, ताकि शहर को विश्व रिकॉर्ड बनाने का प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया जा सके। दिवाली पर जलाए गए दीयों की सही संख्या 25,12,585 है। सरयू नदी के किनारे इतनी बड़ी संख्या में दीये जलाए गए थे कि एक मनमोहक नजारा देखने को मिला। यह स्थापित करने की प्रक्रिया एक विश्व रिकॉर्ड बनाने वाली उपलब्धि है, काफी श्रमसाध्य थी।
इस उपलब्धि का पता लगाने के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की एक टीम को अयोध्या आमंत्रित किया गया था। टीम ने सबसे पहले सभी अप्रकाशित दीयों की मैन्युअल रूप से गिनती की। फिर, जैसे-जैसे दीये जलते गए, उन्हें एक विशेष सॉफ्टवेयर का उपयोग करके डिजिटल रूप से गिना गया। अंत में, हवाई गिनती के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। तीनों आंकड़ों को सारणीबद्ध किया गया और तुलना की गई, जिससे अंतिम संख्या 25,12,585 पर पहुंची।
बड़ी देर कर दी
आईआईटी कानपुर की अंतर्राष्ट्रीय शाखा ने यह स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि 'जश्न-ए-रोशनी' नामक दिवाली समारोह में भाग लेने के लिए विदेशी छात्रों को निमंत्रण भेजने पर धार्मिक प्रतिक्रिया शुरू हो जाएगी। जश्न उर्दू शब्द है जिसका मतलब उत्सव होता है। चूंकि आईआईटी कानपुर में पढ़ने वाले ज़्यादातर विदेशी छात्र पश्चिम एशिया और अफ्रीका के इस्लामिक देशों से हैं, इसलिए जाहिर है कि अंतर्राष्ट्रीय विंग के आयोजकों ने सोचा होगा कि उर्दू शब्द का इस्तेमाल करना समझदारी भरा होगा, ताकि विदेशी स्टूडेंट्स कार्यक्रम के बारे में जान सकें।
हालांकि, भाजपा के केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस पर आपत्ति जताते हुए इसे ‘शब्द जिहाद’ करार दिया है। उन्होंने कहा कि हिंदू त्यौहार का वर्णन करने के लिए उर्दू शब्द का इस्तेमाल करना सनातन धर्म का अपमान है और हिंदू धर्म का इस्लामीकरण करने का
प्रयास है। दुर्भाग्य से गिरिराज सिंह का गुस्सा इतनी देर से फूटा कि आयोजकों ने 29 अक्टूबर के कार्यक्रम का निमंत्रण नहीं बदला।