लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

भाजपा-शिवसेना का ‘विलाप’

NULL

भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के बीच गठबन्धन का टूटना प्रायः निश्चित लगता है जिसके परिणामस्वरूप महाराष्ट्र में नये राजनीतिक समीकरण उभरने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। दरअसल शिवसेना एेसा राजनीतिक दल है जिसे राजनीतिक कम और ‘दल’ ज्यादा कहा जा सकता है क्योंकि इसका लोकतान्त्रिक रीति-नीति और परंपराओं से कोई खास लेना-देना नहीं रहा है। वास्तव में मुम्बई से शुरू होकर महाराष्ट्र की राजनीति में जिस तरह शिवसेना का प्रभाव बढ़ा उसी प्रकार राजनीति में खुले तौर पर डंडाशाही और संकीर्ण क्षेत्रवादी जोर-जबर्दस्ती का दबदबा भी बढ़ा। मुम्बई जैसे महानगर में इसने राजनीतिक माफिया का रूप ले लिया और इसके मुखिया किसी ‘डान’ की तरह व्यवहार करने लगे। इस नई राजनीतिक संस्कृति ने मुम्बई की आम जनता में अपनी दहशत को हिंसक रास्तों तक का इस्तेमाल करके इस तरह फैलाया कि यहां का फिल्मी उद्योग भी शिवसेना के डान के संरक्षण बिना खुद को असुरक्षित समझने लगा। अपनी  राजनीति के इन असंवैधानिक दादागिरी चलाने वाले तेवरों को शिवसेना ने ‘हिन्दुत्व’ के छाते के नीचे जायज ठहराने की तजवीज निकाल कर बाद में इसे मराठा व महाराष्ट्र के दायरे में लेकर राज्य के लोगों को गुमराह करना शुरू किया।
यह सब कार्य इस पार्टी ने लोगों के मूलभूत लोकतान्त्रिक अधिकारों और उनकी वास्तविक समस्याओं को संकीर्ण क्षेत्रवाद तथा अपने गढे़ हुए हिन्दुत्व के उग्र व हिंसक स्वरूप के परों में सिकोड़ कर इतने करीने से करने की कोशिश की कि सभी आर्थिक स्रोत इसके गिने-चुने लोगों के कब्जे में रहें। इस पार्टी ने संस्कृति व हिन्दुत्व के नाम पर खुद को पुलिस बनाने की शुरूआत करके महाराष्ट्र राज्य की महान परंपराओं को लहूलुहान तक कर डाला और बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में एक एेसा सहयोगी ढूंढ लिया जो उसकी राजनीति के विस्तार में बाधा कम से कम बन सके। साठ के दशक के अन्त में शुरू होकर सत्तर के दशक के शुरू तक शिवसेना ने मुम्बई में स्व. बाला साहेब ठाकरे के नेतृत्व में दक्षिण भारतीय नागरिकों के खिलाफ व्यापक मुहिम चलाई थी। उस दौरान दक्षिण भारत के नागरिकों की सुरक्षा देश की इस वाणिज्यिक राजधानी में समस्या हो गई थी मगर भारत के नागरिकों के बीच भेदभाव और नफरत की जो राजनीति जन्म ले रही थी कालान्तर में वह समस्त उत्तर भारत के नागरिकों के खिलाफ जहर उगलने लगी।
मुम्बई के घने औद्योगिक चरित्र को देखते हुए इस प्रकार की राजनीति ने सबसे ज्यादा नुकसान यहां के मजदूरों का ही किया, वे आपस में ही मराठी व गैर-मराठी के नाम पर बंट गये। इस महानगर की राजनीति भी इस बीमारी से अछूती नहीं रह सकी वरना एक जमाने में वी.के. कृष्णामेनन और जार्ज फर्नांडीज को संसद में भेजने वाला भारत का यह महान एेतिहासिक महानगर एेसे-एेसे सांसदों को न भेजता जिन्हें संसद में खड़े होकर अपनी बात तक रखने में दिक्कत पेश आती है और इनके पास हर समस्या का इलाज संकीर्ण क्षेत्रवाद या बाला साहेब ठाकरे की जय बोलना होता है लेकिन शिवसेना का मौजूदा पैंतरा बहुत दूर की कौड़ी समझ कर चला गया है। भाजपा ने प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के साये में हिन्दुत्व के मोर्चे पर जिस तरह पूरा स्थान घेर लिया है उसे देखते हुए शिवसेना को अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है। इसके साथ केन्द्र की सरकार की नीतियों से आम लोगों में जो खिन्नता पैदा हो रही है उसकी वजह से विरोधी दलों खासकर कांग्रेस पार्टी को अपना खोया स्थान प्राप्त करने में सरलता हो सकती है।
इस पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में गुजरात चुनाव परिणामों का विशेष उल्लेख इसीलिए हुआ है जिससे यह भाजपा के विरुद्ध असन्तोष को भुनाने की स्थिति में आ सके मगर सबसे खतरनाक यह है कि शिवसेना अपने कथित हिन्दुत्व को कांग्रेस का नाम लेकर नया आकार देना चाहती है और लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों पर यकीन करने वाले दलों को कमजोर करना चाहती है। इस साजिश को बहुत ठंडे दिमाग से समझने की जरूरत है। शिवसेना भविष्य की राजनीति में स्वयं को बनाये रखने की गरज से राजनीति की जो शतरंज बिछा रही है उसमें वह महाराष्ट्र में तीन साल तक भाजपा के नेतृत्व में चलने वाली सरकार से अलग होकर त्याग करने का भ्रम इसीलिए रच सकती है जिससे 2019 के लोकसभा चुनावों में वह अपना वजूद कायम रख सके। केन्द्र में मोदी सरकार को उसकी जरूरत भी नहीं है क्योंकि लोकसभा में भाजपा को पूर्ण बहुमत अपने बूते पर ही मिला हुआ है। इसके मन्त्रियों की स्थिति पिछली वाजपेयी सरकार में शामिल लोगों के बिल्कुल उलट है। उस समय तो यह पार्टी खुलकर कहती थी कि उसके नुमाइन्दों को ‘मलाईदार’ मन्त्रालय नहीं दिये जा रहे हैं। पिछला महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव भी शिवसेना ने भाजपा से अपना गठबन्धन तोड़कर ही लड़ा था मगर चुनाव बाद दोनों ने कई टेढे़-मेढे़ रास्तों पर गुजर कर अंत में फिर हाथ मिलाया और सरकार बनाई। इसकी वजह क्या थी? इसी प्रकार वृहन्मुम्बई के पालिका चुनावों में दोनों पार्टियां जमकर भिड़ीं मगर जब मेयर पद की बात आयी तो दोनों पार्टियों ने समझौता कर लिया। एेसा क्यों बार-बार हो रहा है? इस पहेली को आप भी सुलझाइये और मैं भी सुलझा रहा हूं !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

17 − six =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।