बिहार की राजनीतिक उठा-पटक किसी के लिए भी हैरानी भरी हो सकती है परंतु यह कोई बड़ी बात नहीं है। जानने वाले जानते हैं और मानते हैं कि एक दिन तो नीतीश कुमार को वापिस एनडीए के खेमे में लौटना ही था। दरअसल, वह बिहार के मुख्यमंत्री तो थे ही लेकिन इस बार जदयू सुप्रीमो लालू यादव के साथ राजनीतिक तोडफ़ोड़ के परिणाम ने उनका गठबंधन करा दिया और वह बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। यह बात और है कि कभी एनडीए के साथ उनका गठबंधन था और राजनीतिक हालात इतनी तेजी से बदले कि उन्हें इस गठबंधन से किनारा करना पड़ा। आज भी वह मुख्यमंत्री हैं लेकिन अब वह ज्यादा राहत महसूस कर रहे हैं, क्योंकि अब वह अपने असली घर में हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि उन्होंने पहले से ही मन बना रखा था कि वह अपनी राजनीतिक भूल का पश्चाताप करेंगे। उन्होंने अंदर ही अंदर एनडीए से जुडऩे की योजना बना ली थी। राजनीतिक आकाओं के दांवपेचों से भरपूर मोबाइल की तरह बराबर अलर्ट साफ पढ़े जा रहे थे। पहला अलर्ट उस समय दिखाई दिया, जब उन्होंने खुलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी का समर्थन किया। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रपति चुनावों में भाजपा को खुला समर्थन दिया। हमने पहले भी लिखा है कि नीतीश के घर वापिस लौटने का निर्णय हैरानी भरा नहीं है। भाजपा का मैनेजमेंट सही काम कर रहा था।
राष्ट्रपति अध्यक्ष श्री अमित शाह और उनकी टीम सब कुछ वही करती है जो इस समय एनडीए के कप्तान और प्रधानमंत्री मोदी को चाहिए। सीधा सा गणित है कि नीतीश कुमार समझ चुके थे ‘जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे। तुम दिन को अगर रात कहो तो रात कहेंगे। आज की तारीख में मोदी शासन कहिए या फिर अमित शाह का मैनेजमेंट, राजनीतिक धींगामुश्ती किसी को भी करने की छूट नहीं है। राजद सुप्रीमो लालू यादव थोड़ा ज्यादा ही तेज चल रहे थे। सब जानते हैं, विशेष रूप से नीतीश कुमार ने भी उस वक्त समझ लिया था कि लालू पुत्रों को उनके कैबिनेट में इतने बड़े पदों पर शामिल करना आसान नहीं था लेकिन राजनीति में चुप रहना और चुपचाप कुछ भी होते हुए देखना तथा आंखें बंद कर लेना, यह सब कुछ अगर नीतीश कुमार ने किया तो यकीनन वह भाजपा के साथ अपने पुराने प्रेम को याद करते हुए एक तीर से दो निशाने लगाने की फिराक में थे। जैसे ही सही वक्त आया उन्होंने तीर चला दिया और आज वह लालू यादव से अपना बदला भी लेने में सफल रहे और अपने पुराने घर में भी लौट आए। कहने वाले कह रहे हैं कि लालू यादव और उनके रिश्तेदारों के यहां आय से अधिक संपत्ति के मामले हों या बेनामी संपत्ति की खरीद-फरोख्त, इन सब पर सीबीआई का शिकंजा कसने के लिए यकीनन नीतीश कुमार की रजामंदी से ही आगे बढ़ा गया होगा। बात सारी मैनेजमेंट की है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि भाजपा का मैनेजमेंट अमित शाह की देखरेख में बिल्कुल सही चल रहा है।
बात असम में भाजपा की जीत की हो या फिर उत्तर प्रदेश में कमल खिलने की, यह तय है कि आने वाले दिनों में भाजपा अभी और राज्यों में अपना ग्राफ बढ़ाने जा रही है तो इसकी वजह यह है कि सब कुछ उचित मैनेजमेंट के साथ हो रहा है। कल तक कुछ लोग कहते थे कि कांग्रेस कई राजनीतिक दलों को राज्यसभा और लोकसभा संचालन में अपने साथ मिलाने के लिए मैनेजमेंट किया करती थी और भाजपा नहीं कर पाती लेकिन वे लोग गलत सिद्ध हुए, क्योंकि भाजपा ने दिखा दिया कि सही चीज सही वक्त पर ही की जाती है। अगर भ्रष्टाचार की बात की जाए तो लालू चूक गए। जिन आरोपों को लेकर वह भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए थे, वे भूल गए कि उन्हें सर उठाते हुए ध्यान से चलना चाहिए। आने वाले दिनों में जिस तरह से राजनीतिक रस्साकशी चल रही है तो लालू को समझ लेना चाहिए कि राजनीतिक चंदेबाजी को लेकर जिस तरह से चुनाव आयोग नए प्रावधान बनाने जा रहा है वे इतने सख्त हैं कि लालू कभी भी इसकी जद में आ सकते हैं।
आने वाला वक्त बिहार में भाजपा का ही है, इस बात का जवाब वहां के हालात दे रहे हैं। राजनीति हमेशा अच्छा मैनेजमेंट मांगती है और इसमें वही लोग सफल होते हैं जो दुश्मनों से भी अपना काम निकाल लें। नीतीश कुमार ने सत्ता में रहकर केंद्र में बैठी भाजपा सरकार के खिलाफ आलोचना को लेकर अपने होंठ सिये रखे और अब बड़ी चतुराई से एक बड़े राज्य का सीएम होने के साथ-साथ जहां बिहार में अपना राजनीतिक रुतबा बरकरार रखा वहीं केंद्र की राष्ट्रीय राजनीति में अपनी वापसी का भी मार्ग प्रशस्त कर लिया है तो इसलिए किसी को इस बात की हैरानगी नहीं होनी चाहिए कि नीतीश वापिस घर लौट आए हैं बल्कि देखने वाली बात यह है कि उनका अगला कदम क्या होगा। वह जो भी कदम उठाएंगे यकीनन भाजपा के कुशल मैनेजमेंट का परिणाम होगा।