भाजपा इस बार दक्षिण भारत की जंग में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए जी-जान लगा रही है। वह इस चुनावी जंग में अपने प्रतिद्वंद्वियों को किसी भी सूरत में कोई स्पेस देने के मूड में नहीं है। जिनको लगता है कि भाजपा का दक्षिण भारत में कोई वजूद ही नहीं हैं, वे घोर मुगालते में हैं। भाजपा इस बार इन राजनीतिक अल्प-ज्ञानियों को पूरी तरह से गलत साबित करना चाहती है। दक्षिण भारत के राज्य भाजपा के लिए अब तक कठिन चुनौती वाले प्रदेश रहे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन, अब परिस्थितियां बदली हैं। इस बार पार्टी ने दक्षिण भारत में चुनावी स्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ने का मन ही नहीं बनाया, बल्कि दृढ़ संकल्प किया हुआ है। वास्तव में 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा के संबंध में दक्षिण की धारणा को पूरे समाज, मीडिया और समीक्षकों की राय बदलने में भी अहम भूमिका निभा सकता है।
भाजपा ने अपने दो बेहद तेज-तर्रार मुख्यमंत्रियों क्रमश: योगी आदित्यनाथ और प्रमोद सावंत को दक्षिण भारत में सघन चुनाव अभियान की जिम्मेदारी सौंपी है। ये दोनों ही अपने कुशल नेतृत्व के चलते उत्तर प्रदेश और गोवा को विकास की बुलंदियों पर लेकर जा रहे हैं। प्रमोद सावंत कर्नाटक में भाजपा के उम्मीदवारों के पक्ष में जमकर कैंपेन कर रहे हैं। वे कर्नाटक में अपना भाषण कन्नड़ में ही देते हैं। जाहिर है, इस वजह से वे तुरंत स्थानीय जनता से संबंध स्थापित कर उन्हें प्रभावित करते हैं। योगी आदित्यनाथ को भी दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में प्रचार करना है। योगी आदित्यनाथ और प्रमोद सावंत की अखिल भारतीय छवि बन चुकी हैं। योगी आदित्यनाथ पूर्व में कर्नाटक में कैंपन करते रहे हैं। उन्हें कर्नाटक का युवा, मेहनतकश और महिलाएं बहुत ध्यान से सुनती हैं। उन्होंने बीमारू उत्तर प्रदेश को देश के सबसे विकसित होते राज्य की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।
उन्होंने साबित कर दिया है कि चुस्त-सख्त प्रशासन से गुंडे मवाली भाग खड़े होते हैं। अगर बात प्रमोद सावंत की करें तो वे गोवा की स्थापित छवि को बदल रहे हैं। वे चाहते है कि गोवा को उसके समुद्री तटों, गिरिजाघरों के अलावा उसके समृद्ध अतीत के रूप में भी जाना जाए। गोवा को लेकर एक खास तरह की भ्रांति पूर्ण धारणा बना दी गई है, जबकि सच्चाई यह है कि गोवा एक प्राचीन सनातन भूमि है। गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने पर्यटन संग आध्यात्मिक राष्ट्रवाद से गोवा को विकसित बनाने का संकल्प लिया है।
बेशक, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ-साथ यह दोनों भी दक्षिण भारत में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में अहम रोल निभाने जा रहे हैं। योगी आदित्यनाथ अपने गृह प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान और बिहार में भी बड़ी सभाओं को संबोधित कर चुके हैं। वे जिधर भी जाते हैं वहां पर उनका अभूतपूर्व स्वागत होता है। इस बीच, तमिलनाडु उन अनूठे राज्यों में से एक है, जहां 87 फीसद से अधिक हिंदू आबादी है। यह उन राज्यों में एक है जहां राष्ट्रीय दलों यानी भाजपा और कांग्रेस की उपस्थिति अब तक काफ़ी कमजोर रही है। हां भाजपा कोयंबटूरऔर कन्याकुमारी में जरूर अच्छे वोट जुटाती रही है। तमिलनाडु में भाजपा मजबूत नहीं हुईं इसका सबसे बड़ा कारण राज्य में नेतृत्व का अभाव रहा, कई भाजपा नेता विवादास्पद बयान के लिए जाने जाते रहे। लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने इस धारणा को बदल दिया है। और फिर पूर्व आईपीएस अधिकारी के. अन्नामलाई को तमिलनाडु भाजपा का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद दक्षिणी राज्य में भाजपा की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं।
अन्नामलाई राज्य में पार्टी के लिए जमीन तैयार करने में काफी हद तक सफल भी हुए हैं। मोदी और अमित शाह लगातार अन्नामलाई के नेतृत्व को अपना समर्थन दे रहे हैं। भाजपा ने इसी आधार पर तमिलनाडु में अकेले 23 सीटों पर चुनाव लड़ने का साहस दिखाया। तमिलनाडु में 19 अप्रैल को मतदान हुआ। भाजपा को लगता है कि वह इस बार तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में भी चौंकाने वाले नतीजे देगी। दक्षिण भारत में लोकसभा की कुल मिलाकर 130 सीटें हैं। इसमें तमिलनाडु (39), कर्नाटक (28), आंध्र प्रदेश (25), तेलंगाना (17), केरल (20) और पुडुचेरी (1) शामिल हैं। कांग्रेस ने 2019 में दक्षिण से 28 लोकसभा सीटें जीती थीं। इसमें केरल में 15, तमिलनाडु में 8, तेलंगाना में तीन, कर्नाटक में एक और पुडुचेरी में एक, जबकि भाजपा ने कर्नाटक में 25 और तेलंगाना में 4 सीटें जीती थीं। तमिलनाडु में भाजपा का खाता नहीं खुला था जबकि उसका जे. जयललिता की पार्टी ऑल इंडिया अन्नाद्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) से इसका गठबंधन था। केरल और आंध्र प्रदेश में भी हाल यही रहा। खास बात है कि दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा सीटें तमिलनाडु में ही हैं। मोदी-शाह के साथ भाजपा के चुनावी रणनीतिकार इस राज्य में ही खाता खोलने पर पूरा फोकस करते रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से भी तमिलनाडु का रिश्ता जोड़ा गया है और सफलतापूर्वक आयोजित की गई तमिल संगम इसकी बानगी है।
योगी आदित्यनाथ और प्रमोद सावंत को बहुत सोच-समझकर दक्षिण का किला फतेह करने का काम सौंपा गया। इसी तरह से योगी आदित्यनाथ और प्रमोद सावंत को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल को साधने के लिए भी भेजा जाएगा। योगी आदित्यनाथ की सरपरस्ती में उत्तर प्रदेश जिस तरह से निजी क्षेत्र का निवेश हासिल कर रहा है, उसका संदेश दूर तक जा रहा है। कोरोना काल के बाद जब निवेशक बहुत सोच-समझकर और फूंक-फूंककर निवेश कर रहे हैं, तब उत्तर प्रदेश में 80 हजार करोड़ रुपये के निवेश का वादा हो चुका है। पिछले कुछ समय पहले लखनऊ में हुए एक निवेशक सम्मेलन में हजारों करोड़ रुपए की परियोजनाएं धरातल पर उतरीं। उत्तर प्रदेश अपनी छवि तेजी से बदलता जा रहा है। इसे दक्षिण भारत की जनता भी देख रही है। यह ही स्थिति प्रमोद सावंत की है। वे भाजपा के सबसे कुशल मुख्यमंत्रियों के रूप में उभरे हैं। भाजपा तमिलनाडु में द्रमुक और अपेक्षाकृत कमजोर अन्नाद्रमुक जैसे स्थापित दलों से मुकाबला कर रही है।
वहीं, कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) के साथ एक व्यावहारिक गठबंधन बनाया है, ताकि वोक्कालिंगा और लिंगायत जैसे प्रमुख समुदायों के वोटों का विभाजन रोक सके। भाजपा तेलंगाना में पिछले विधानसभा चुनाव में अपने बढ़े हुए वोट प्रतिशत का फायदा उठाने में जुटी है। वाईएसआरसीपी प्रमुख जगन मोहन रेड्डी के साथ मोदी जी के अच्छे समीकरण के बावजूद पार्टी ने आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और पवन कल्याण की जन सेना पार्टी के साथ गठबंधन किया है। इन सभी रणनीतियों का परिणाम तो वोट काउंटिंग के दिन ही सामने आएगा, लेकिन इतना जरूर तय हो गया है कि भाजपा ने दक्षिण को साधने के लिए पुख्ता रणनीति तैयार कर ली है। अगर दक्षिण भारत के राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन पहले से बेहतर रहता है तो इसका श्रेय़ योगी आदित्यनाथ और प्रमोद सावंत को भी देना होगा जो अपने-अपने राज्यों को छोड़ कर यहां प्रचार करने के लिए आए।