हां मैं कालाधन हूं
मुझमें काला निकाल दो
तो केवल धन हूं
फिर भी लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं
काला, काला, काला कह के
उसमें मेरा दोष है?
मुझे तो काला कुछ धन लोलासु
लोगों ने बनाया है
मैं कालाधन सामाजिक मान, सम्मान
और प्रतिष्ठा रुतबा हूं।
भारत में ब्लैकमनी को लेकर बहुत ढिंढोरा पीटा जाता रहा है। विदेशों में जमा भारतीयों के कालेधन को वापिस लाने की बातें होती रही हैं। मोदी सरकार ने कालाधन रखने वालों के खिलाफ अभियान भी चला रखा है। कालेधन पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कानूनी प्रावधान भी किए गए हैं। इसके बाजूद चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। भारत के बैंक कंगाल हो रहे हैं जबकि स्विट्जरलैंड के केन्द्रीय बैंक के ताजा आंकड़ों में यह बात सामने आई है कि भारतीयों का स्विस बैंकों में जमा धन चार साल में पहली बार बढ़कर पिछले वर्ष एक अरब स्विस फ्रैंक (7 हजार करोड़ रुपए) के दायरे में पहुंच गया है जो एक वर्ष पहले की तुलना में 50 फीसदी की बढ़ौतरी को दर्शाता है इससे पहले तीन वर्षों में यहां के बैंकों में भारतीयों के जमा धन में लगातार गिरावट आई थी। अपनी बैंकिंग गोपनीयता के लिए पहचान बनाने वाले इस देश में भारतीयों के जमाधन में दिखी बढ़ौतरी हैरान कर देने वाली है। स्विस बैंक में रखे भारतीयों के धन में 2011 में 12 फीसदी, 2013 में 43 फीसदी, 2017 में इसमें 50.2 फीसदी की बढ़ौतरी हुई। 2016 में जमाधन 45 फीसदी घटा था।
एसएनबी के ये आंकड़े ऐसे समय जारी किए गए हैं जबकि कुछ महीने पहले ही भारत और स्विट्जरलैंड के बीच सूचनाओं के स्वतः आदान-प्रदान की एक नई व्यवस्था लागू की गई है। इस व्यवस्था का उद्देश्य कालेधन की समस्या से निजात पाना है। स्विस बैंकों में कालेधन को रखा जाना कोई नई बात नहीं। गोपनीयता की विश्वसनीयता के बाद बड़ी संख्या में भारत समेत दूसरे देशों के लोग भी अपने धन को वहां रखते हैं। 2015 में विदेशों में जमा भारतीयों का कालाधन वापिस लाने के लिए भारत सरकार ने तीन महीने तक कंपलायंस (विंडो की सुविधा दी थी)। इसके तहत तीन महीने के अंदर कोई व्यक्ति अगर अपने कालेधन के बारे में जानकारी देगा तो उस पर 30 प्रतिशत टैक्स आैर 30 प्रतिशत जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया था। मोदी सरकार इस मामले में काफी गंभीर दिखी लेकिन कालेधन पर अंकुश लगाना केवल भारत सरकार की इच्छा पर निर्भर नहीं करता बल्कि विदेशी सरकारों का सहयोग भी जरूरी है। सबको मालूम है कि कालेधन का इस्तेमाल आतंकवाद की फंडिंग के लिए हो रहा है लेकिन सभी देशों की अलग-अलग नीतियां और प्रक्रिया है। उनकी आय के अपने-अपने स्रोत और व्यवस्थाएं हैं। यूपीए सरकार के दौरान भी स्वैच्छिक रूप से कालाधन घोिषत करने की वॉलेंटिरी डिसक्लोजर आफ इन्कम स्कीम (बीडीआईएस) चलाई गई थी लेकिन यह बहुत सफल नहीं हो पाई थी। हालांकि कुछ लोगों ने अपनी संपत्ति घोषित की लेिकन अपेक्षा के अनुरूप यह योजना सफल नहीं हुई। एनडीए सरकार की योजना के दौरान कुछ लोगों ने अपनी ब्लैकमनी का खुलासा तो किया लेकिन संख्या काफी कम रही।
जिनके पास अघोषित धन है, वो भारत और विदेश में अचल संपत्तियों में अपना धन लगाते हैं। देश में कालेधन का एक हिस्सा रियल एस्टेट में लगता है। हीरे-ज्वाहरात का व्यवसाय भी कालेधन को सफेद करने का माध्यम है। कालेधन का कुछ हिस्सा सोने के आभूषण में भी लगता है। विदेशों में जमा धन भारतीय उद्योगपतियों, भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाहों और अपराध जगत से जुड़े लोगों का है। एचएसबीसी के स्विस बैंक को लेकर आई रिपोर्टों में भारतीय उद्योगपतियों, राजनेताओं आैर अन्य लोगों के नाम सामने आए थे। इसी महीने पनामा पेपर लीक्स में नया खुलासा हुआ। इनमें 12 हजार से ज्यादा दस्तावेज भारतीयों से जुड़े हैं। इनमें देश के नामी-गिरामी 500 लोगों के नाम हैं।
दुनियाभर के कई बड़े उद्योगपति आैर सेलिब्रिटीज टैक्स बचाने के लिए दूसरे देशों में निवेश करते हैं, जहां टैक्स नहीं लगता। इसके लिए ऑफशोर कंपनियों और फर्मों का इस्तेमाल किया जाता है। धन कहां से आया, कहां गया, कहां से लौटा इसको समझना आसान नहीं। आयकर विभाग का कहना है कि वह खुलासों पर कार्रवाई करता है। 2016 में सामने आए पनामा पेपर्स के 426 मामलों की जांच की गई। 362 मामले तो कार्रवाई योग्य नहीं पाए गए। केवल 62 मामलों को आगे बढ़ाया गया। जब भी सरकार सख्ती करती है लोग स्विस बैंकों में जमा धन इधर-उधर कर देते हैं। अनेक छोटे-छोटे देश हैं जो उनके धन को सुरक्षित रखते हैं। उनकी अर्थव्यवस्था ही इसके आधार पर चलती है। विदेशी बैंकों में जमा धन आम भारतीयों का नहीं है, बड़ी शख्सियतों का है। कालेधन का संबंध बार-बार टैक्स से जोड़ा जाता है जबकि इसमें भ्रष्टाचार, ड्रग्स व्यापार, हथियारों की तस्करी, हवाला चरमपथ इत्यादि भी जुड़े हुए हैं। इसलिए कालेधन को वापिस लाना आसान नहीं है। ऐसी व्यवस्था की जरूरत है कि देश से पैसा कम से कम बाहर जाए। कालाधन फिर अट्टहास कर रहा है कि चाहे कुछ भी कर लो मैं तो विदेशों में रहूंगा।