पुलवामा के आतंकवादी हमले के बाद भारत एक के बाद एक बड़े कदम उठा रहा है। जहां उसने पाकिस्तान को दिया गया मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा खत्म किया है, वहीं उसने पाक और आतंक परस्त अलगाववादियों का सुरक्षा कवच छीन लिया है। साथ ही उसने सेना को फ्री हैंड दे दिया है। हालांकि ऐसे कदम तो बहुत पहले उठा लिए जाने चाहिए थे। भारत ने वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान के प्रति जनमत तैयार करने के लिए कूटनयिक प्रयास भी शुरू कर दिए हैं और भारत को अपने प्रयासों में सफलता भी मिल रही है।
कई देशों के राजनयिकों के साथ अलग-अलग मुलाकातें और जी-20 के प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद भारत काे आतंकवाद फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई पर समर्थन मिला है। अमेरिका से लेकर दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका से लेकर खाड़ी देशों तक ने भारत के साथ खड़ा होने का भरोसा दिया है। इस कूटनीति का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि पाकिस्तान के खिलाफ भारत अब जो भी बड़ा कदम उठाएगा, उसे वैश्विक समर्थन हासिल होगा।
जो देश पाकिस्तान को आतंकवादी बताते हुए भी उसे मदद देते रहे हैं, उन्हें भी एक बार उसका पक्ष लेने से पहले दो बार सोचना पड़ेगा। इस सबके बीच चीन के रवैये को लेकर दुनियाभर में हैरानी जताई जा रही है। चीन को लेकर भारत में भी काफी रोष व्याप्त है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जैश-ए-मोहम्मद को आतंकी संगठन घोषित किए जाने के बावजूद चीन सुरक्षा परिषद में इसके सरगना मसूद अजहर का नाम वैश्विक आतंकियों की सूची में शामिल करने और उस पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्तावों को दाे बार अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर रोक चुका है।
चीन ने पुलवामा हमले की निन्दा तो की लेकिन पाकिस्तान का नाम लेने से परहेज ही किया। चीन ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने की भारत की अपील को भी खारिज कर दिया है। यह कोई पहला मौका नहीं जब चीन ने भारत के विरुद्ध सक्रिय आतंकी समूहों को शह दी है। बहुत पहले वह मिजो और नागा लड़ाकों को भी ट्रेनिंग दे चुका है। पूर्वोत्तर के अनेक उग्रवादी सरगनाओं को भी वह संरक्षण देता रहा है, जिनमें से कुछ चीन के सीमावर्ती इलाकों और म्यांमार में छुपे हुए हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कथित सहयोग के नाम पर पाकिस्तान अमेरिका से सामरिक और आर्थिक मदद लेता रहा है।
उसने अमेरिका के डालरों का इस्तेमाल अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने की बजाय आतंक की खेती पर किया है। यही कारण है कि पाकिस्तान इन दिनों आर्थिक तंगहाली में है और कटोरा हाथ में लेकर कई देशों से मदद की अपील कर रहा है। अमेरिका को 9/11 के हमले के बाद पाकिस्तान के असली चेहरे का पता लगा, अफगानिस्तान में भी अमेरिका की हार के लिए पाकिस्तान काफी हद तक जिम्मेदार रहा। अब जबकि अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद रोक दी है तो चीन के रूप में पाकिस्तान को नया सहयोगी मिल गया है। एशिया के इस हिस्से में चीन अपने वर्चस्व के प्रसार के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करने लगा है।
चीन का आतंकवाद को संरक्षण देने का यह रवैया तब है, जबकि पिछले सालों में भारत के साथ उसका व्यापार तेजी से बढ़ा है। भारत में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मांग पहले भी उठती रही है लेकिन अब तक भारत का चीन से व्यापार जारी है, जो भारतीय सैनिकों और नागरिकों का खून बहाने वाले आतंकियों, उनके आकाओं और उन्हें पालने-पोसने वाले पाकिस्तान का साथ दे रहा है। चीन को समझ लेना चाहिए कि वर्षों तक पाकिस्तान को हथियार और धन देने वाले अमेरिका को पाकिस्तान के आतंकी गिरोहों से काफी नुक्सान उठाना पड़ा है। चीन की छवि भी आतंकवाद समर्थक देश की बन रही है। चीन की सामरिक सोच और व्यूह रचना भी भारत के लिए ज्यादा गंभीर है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में चार हजार करोड़ से ज्यादा की परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया तो चीन ने इस पर आपत्ति की थी। जब-जब भारतीय नेता अरुणाचल गए, तब-तब चीन ने कड़ा विरोध जताया। पूर्वोत्तर के विकास से चीन बौखला गया है। वह अरुणाचल पर अपना दावा जताता रहा है। चीन की बेचैनी का कारण यह भी है कि डाेकलाम के बाद उसे इस बात का अहसास हो चुका है कि भारत चीन से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है। चीन की समस्या यह भी है कि उसने पाकिस्तान में अरबों रुपए का निवेश कर रखा है। चीन की महत्वाकांक्षी बैल्ट एंड रोड और चीन-पाक आर्थिक गलियारा परियोजनाओं पर काम हो रहा है।
वह नहीं चाहता कि पाक के आतंकी संगठन भविष्य में उसकी परियोजनाओं का विरोध करें। अगर पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता फैलती है तो इसका नुक्सान चीन को ही होगा और उसका अरबों का निवेश डूब जाएगा। चीन की परियोजनाओं का विरोध पीओके में रहने वाले लोग और पाकिस्तान का अवाम भी कर रहा है। भारत के लिए पाकिस्तान कोई बड़ी चुनौती नहीं, चुनौती है तो वह है चीन। चीन एक तरफ तो भारत से दोस्ती का राग अलापता रहता है। दूसरी तरफ वह भारत के दुश्मन के साथ खड़ा है। भारत को चीन की चालों से सतर्क रहना होगा। निर्दोषों के खून के छींटे ड्रैगन पर भी हैं क्योंकि चीन पाकिस्तान के हर गुनाह का साझेदार बन चुका है।