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केरल की खूनी सियासत

प्राकृतिक सम्पदा से समृद्ध देश के पहले सम्पूर्ण साक्षर राज्य केरल को ईश्वर की धरती कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम ने अपने फरसे से जो भूभाग समुद्र से बाहर निकाला था।

प्राकृतिक सम्पदा से समृद्ध देश के पहले सम्पूर्ण साक्षर राज्य केरल को ईश्वर की धरती कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम ने अपने फरसे से जो भूभाग समुद्र से बाहर निकाला था, वह केरल ही है परन्तु इन दिनों केरल हिंसा से बुरी तरह से त्रस्त है। सभ्य समाज में ​किसी भी कारण से होने वाली हिंसा लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था में अस्वीकार्य है परन्तु क्या हिंसा का विरोध अपराधियों और उसके शिवाय लोगों की विचारधाराएं और धर्म के आधार पर करना तर्क संगत है? इस स्तिथि का सबसे ज्वलंत उदाहरण केरल है, जहां विचारधारा और मजहब के नाम पर हत्याएं जारी हैं। केरल के अलप्पुझा जिले में 12 घंटों के भीतर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के नेता के. एस. शान और उसके बाद भाजपा नेता रंजीत विश्वास की नृशंस हत्याओं ने केरल के रक्त चरित्र काे फिर से उजागर कर दिया है। भाजपा नेता रंजीत विश्वास ने तो भाजपा उम्मीदवार के नाम पर विधानसभा चुनाव लड़ा था। हत्याओं  के बाद फैले तनाव के बीच पहले की ही तरह आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। भाजपा और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ने एक दूसरे पर हिंसा का आरोप लगाया है। कहा जा रहा है कि यह घटनाएं राज्य में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने और सद्भाव बिगाड़ने के लिए की जा रही हैं। भाजपा का कहना है कि माकपा के नेतृत्व वाली केरल सरकार भगवान की धरती को जिहादियों के स्वर्ग में तब्दील कर रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि केरल में वामपंथी हिंसा के साथ-साथ इस्लामी कट्टरवाद चरम पर पहुंच चुका है। केरल में हिंसा की शुरूआत भारतीय जनसंघ कार्यकर्ता रामकृष्णन की हत्या से हुई थी, उसके बाद कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई थी। 61 वर्षों से केरल में यही चल रहा है।
भारत में इस्लाम अरब व्यापारियों के जरिए केरल के मालावार तट के रास्ते से आया था। मालावार क्षेत्र की चेरामन जुमा मस्जिद भारत में इस्लाम के प्रवेश का प्रतीक है। उस वक्त जो लोग जाति और वर्ग व्यवस्था से पीड़ित थे उन्होंने इस्लाम को अंगीकार कर लिया। इस तरह इतिहास के आइने में देखें तो 20 अगस्त 1921 को मालावार इलाके में मोपला विद्रोह की शुरूआत हुई थी। मालावार में मुसलमानों का यह विद्रोह शुरू में खिलाफत आंदोलन के समर्थन और अंग्रेजों के खिलाफ था लेकिन जल्द ही यह साम्प्रदायिक हिंसा में तब्दील हो गया। मोपला में मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर हिन्दुओं को निशाने पर लिया।  हजारों हिन्दुओं की हत्या कर दी गई। हजारों धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बना दिए। हिन्दू महिलाओं से बलात्कार किये गए। मोपला विद्रोह को हिन्दुओं के खिलाफ मुसलमानों का पहला जिहाद कहा जाता है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि केरल में संघ और भाजपा नेता ही निशाने पर क्यों हैं। केरल में संघ का काम 1942 में शुरू हुआ था। 1940 में संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार के निधन के बाद सैकड़ों युवक संघ कार्य के विस्तार के लिये निकले। उनमें से दादा राव परमार्थ और दत्तोपंत ढेंगडंी केरल आए। जैसे-जैसे काम बढ़ा। राष्ट्र विरोधियों के पेट दर्द होने लगा। केरल में ईसाई, वामपंथी और मुस्लिम तीनों ही संघ और भाजपा का विरोध करते हैं। ईसाइयों का काम भी यहां बहुत पुराना है। ईसाइयों ने भी केरल में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण किया है। केरल में ईसाइयों ने चर्च स्कूल और अस्पताल खोले। इसमें दोष हिन्दुओं का भी है, क्योंकि इसमें जातिभेद बहुत गहराई तक फैला था। एक जाति का व्यक्ति दूसरी जाति वाले से कितनी दूरी तक चलेगा। इसके नियम बने हुए थे। कुछ लोगों को कमर के पीछे की ओर झाड़ू बांध कर चलना पड़ता था जिससे उनके चलने से गंदी हुई सड़क साफ होती जाए। इसलिए स्वामी विवेकानंद ने केरल को जातियों का पागलखाना कहा था। इसी का फायदा उठाकर मिशनरियों ने लाखों गरीबों को ईसाई बना दिया।
केरल के मुस्लिम और ईसाई बड़ी संख्या में खाड़ी देशों में काम करते हैं, जिससे उनके घर तथा धार्मिक स्थान समृद्ध हुए हैं। मुस्लिम लोग पूरे देश में नहीं हैं लेकिन केरल में आज भी उसके विधायक और सांसद जीतते हैं। केरल में वामपंथियों का वर्चस्व चार दशकों से है। दुर्भाग्य यह रहा कि इस राज्य में हिंसा और अपराध पर भी राजनीतिक और बौद्धिक ध्रुवीकरण हो चुका है। जुनैद और अखलाक की हत्या पर असहिष्णुता का ​ढिंढोरा पीटने वाले बुद्धिजीवी केरल की हिंसा पर खामोश रहे। केरल में हिंसा पर खामोश रहे। केरल में हिंसा के तरीके भी बर्बर हैं। स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक की हत्या, हाथ-पांव बांधकर जलाना, हाथ-पांव काटना, आंखें निकालना आदि। वामपंथी उच्च जाति और पैसे वालों को वर्ग शत्रु कह कर लोगों को उनके विरुद्ध वर्ग संघर्ष के लिए भड़काते हैं परन्तु केरल में संघ ही उनका वर्ग शत्रु है। संघ और भाजपा के चलते वामपंथियों की जमीन खिसक सकती है। इसी भय के कारण वामपंथियों के पास हिंसा ही एकमात्र रास्ता है। हिंसा का शिकार वामपंथी भी हो रहे हैं।  वामपंथियों को बंगाली किला ध्वस्त हो चुका है। केरल में वैचारिक विरोधियों की हत्याएं बढ़ी हैं और इस्लामी आतंकवाद ने भी जड़ें जमा ली हैं। विचारधरा का मुकाबला विचारधारा से होना चाहिए लेकिन यहां तो सियासत खूनी हो चुकी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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