देेश के राज्यों में सीमा विवाद पुराना मर्ज है। लम्बा समय गुजर जाने के बाद भी इस पुरानी बीमारी का उपचार नहीं हो सका। सीमा विवाद के चलते खूनी संघर्ष भी हुए। भारत के एक या दो राज्य नहीं बल्कि देश के 12 राज्य सीमाओं को लेकर उलझे रहे हैं। अक्सर असम और पूर्वोत्तर राज्यों की चर्चा होती रही है। इसी तरह आंध्रप्रदेश ओडिशा, हरियाणा-हिमाचल, लद्दाख-हिमाचल,महाराष्ट्र-कर्नाटक,असम-अरुणाचल, असम-मेघालय, असम-मिजोरम के बीच सीमा विवाद है।
राज्यों में सीमा विवाद ने बहुत सारी समस्याओं को जन्म दिया है। यही से अधिकार की लड़ाई शुरू होती है। राज्यों की जनता और सरकारें इसे अपनी अस्मिता का सवाल बताती रही हैं। चुनावी राजनीति के लिए भी इस संवेदनशील मुद्दों को भुलाया जाता रहा है। खूनी झड़पों में अनेक लोगों की जानें जा चुकी हैं। इन विवादों को देखकर सवाल उठता रहा है कि देश के भीतर यह कैसी लड़ाई है। आजादी के बाद से ही पूर्वोत्तर के राज्यों में सीमा विवाद बना हुआ है लेकिन केंद्र सरकार के सहयोग से असम और मेघालय के बीच चल रहा 50 वर्ष पुराना विवाद अब सुलझ गया है। गृहमंत्री अमित शाह इसे हल करने के लिए काफी समय से प्रयास कर रहे थे। अंततः अमित शाह की मौजूदगी में असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने समाधान के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर दिये। दोनों राज्यों के बीच 50 वर्ष पुराने लंबित विवाद के 12 में से 6 बिंदुओं को सुलझा लिया गया है। इस मंगलवार का दिन दोनों राज्यों के लिए ऐतिहासिक दिन बन गया। अब बाकी बचे 6 बिंदुओं का भी शीघ्र समाधान कर लिया जाएगा।
असम के साथ मेघालय के विवाद की कहानी इसके गठन से है। 1972 में राज्य के गठन के साथ ही विवाद शुरू हो गया था। मेघालय असम के कम से कम 12 इलाकों पर अपना दावा करता रहा है। असम और नागालैंड भी आपस में भिड़ते रहे हैं। राज्य ने नागालैंड के साथ सीमा को चिन्हित करने के लिए 1988-89 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए आयोग का गठन भी किया था और दो सहमध्यस्थ भी नियुक्त किए गए थे लेकिन अभी तक यह मामला लटका पड़ा है। असम और अरुणाचल का विवाद भी अभी लटका पड़ा है। असम की अरुणाचल के साथ 804 किलोमीटर की सीमा है अरुणाचल का कहना है कि राज्यों के पुनर्गठन के वक्त मैदानी इलाकों में कई वन क्षेत्र असम में चले गए। यह पारंपरिक तौर से पहाड़ी आदिवासियों के क्षेत्र हैं। असम और मिजोरम के बीच भी सीमा विवाद है आैर दोनों राज्यों का दावा एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत है। 1995 से लेकर अब तक दोनों राज्यों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है। असम सरकार का आरोप है कि यथास्थिति में बदलाव करने के लिए रेंगती बस्ती की तरफ सड़क निर्माण कर रहा है और इसके लिए इनर लाइन परमिट वाले जंगलों को तहस-नहस किया जा रहा है। विवादित इलाके में कई बार खूनी झड़पें हो चुकी हैं। पिछले वर्ष जुलाई में हुई खूनी झड़प में असम के 6 जवानों की हत्या कर दी गई थी। पुलिस को आपराधिक और आतंकवादियों से लड़ते तो देखा है लेकिन 2 राज्यों की पुलिस ऐसे लड़ी जैसे दो देेशों के बीच युद्ध छिड़ा हुआ हो। इस हिंसा में आम नागरिक भी शामिल हुए जिन्होंने कई वाहनों को नुक्सान पहुंचाया था। दरअसल अंग्रेजों के शासन में ही सीमा विवाद की नींव पड़ चुकी थी। पूर्वोत्तर के राज्याें में अलग-अलग जनजातियों के लोग रहते हैं। जिनकी भाषा, संस्कृति और पहचान एक-दूसरे से काफी अलग रही है। इसी आधार पर आजादी के बाद मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश असम से अलग होकर राज्य बने। अलग-अलग जातियों के लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर काफी संवेदनशील हैं। पहले की सरकारों ने इन मनमुटावों को दूर करने के लिए कोई खास काम नहीं किया लेकिन केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों की ओर काफी ध्यान दिया। मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास की राह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पूर्वोत्तर के राज्यों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की। मोदी सरकार की नीति ‘एक्ट ईस्ट’ नीति है जो देश के इस हिस्से के विकास के साथ-साथ दक्षिण से भी जोड़ती है। यह सम्पर्क वायु मार्ग, रेल मार्ग, सड़क मार्ग और जल मार्ग से है। सभी राज्यों की राजधानियां रेल सम्पर्क से जुड़ चुकी हैं। एक समय था जब सम्पर्क के अभाव में इन राज्यों के लोगों तक जरूरी सामग्री भी नहीं पंहुचा पाती थी। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में राजमार्ग परियोजनाएं शुरू हुईं जो अब पूरी हो चुकी हैं। पूर्वोत्तर में किए गए औद्योगिक विकास और अवसंरचना विकास के उल्लेखनीय नतीजे सामने आए हैं। इन राज्यों की प्रतिभाएं अब देश के सामने अपनी कला का प्रदर्शन कर रही हैं। कभी विद्रोही संगठनों का इन राज्यों में बोलबाला था। लगातार आर्थिक नाकेबंदी और बड़े पैमाने पर हिंसा होती रही है लेकिन मोदी सरकार के प्रयासों के चलते उग्रवाद और आर्थिक नाकेबंदी की संस्कृति समाप्त हो चुकी है। यही कारण रहा कि मौजूदा समय में पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। केंद्र सरकार राज्यों के बीच सीमा विवाद को राज्य सरकारों के आपसी सहयोग और बातचीत के जरिये सुलझाने की पक्षधर है। गृह मंत्रालय विभिन्न पक्षों को उचित माहौल और मंच प्रदान कर रहा है। उम्मीद है कि असम का अन्य राज्यों से सीमा विवाद भी हल हो जाएगा। रास्ता लंबा जरूर है लेकिन मुश्किल नहीं।
आदित्य नारायण चोपड़ा