ब्रिटेन में भव्य आयोजन में किंग चार्ल्स तृतीय और क्वीन कैमिला की ताजपोशी सम्पन्न हुई। दुनिया भर से आए मेहमानों के अलावा टीवी और इंटरनेट के जरिए करोड़ों लोग इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का गवाह बने। महारानी एलिजाबेथ के निधन के बाद चार्ल्स को औपचारिक रूप से सम्राट घोषित किया गया था। उनकी ताजपोशी ऐसे समय में हुई है जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री भारतीय मूल के ऋषि सुनक हैं। ब्रिटेन हमेशा से ही ताजपोशी समारोहों को दुनिया के सामने अपने शाही ठाठ-बाट से पेश करने के लिए लोकप्रिय रहा है, लेकिन यह समारोह सदियों पुरानी परम्पराओं में रचा-बसा एक बेहद धार्मिक आयोजन से भी जुड़ा हुआ है। ब्रिटेन में पिछला ताजपोशी समारोह 1953 में हुआ था, तब से लेकर आज तक ब्रिटेन और पूरी दुनिया में बहुत कुछ बदल चुका है। इसलिए नई पीढ़ी को इस समारोह के लिए जिज्ञासा जरूर थी।
ब्रिटेन के ताजपोशी समारोह की संवैधानिक अहमियत कुछ नहीं है, बल्कि एक परम्परा है जब किंग और क्वीन सार्वजनिक रूप से कानून की मर्यादा बनाए रखने और दया के साथ इंसाफ करने का वादा करते हैं। आज के युग में जब राजशाही के प्रति लोगों की मानसिकता बदल चुकी है और कई देशों में राजशाही शासन को उखाड़ने के लिए क्रांतियां हो चुकी हैं, लेकिन आज भी दुनिया के 43 देशों में राजशाही का शासन चलता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण ब्रिटेन है। एक समय लगभग पूरी दुनिया पर कब्ज़ा रखने वाला देश आज भी उसी शिद्दत से अपने राजा का सम्मान करता है। इसके पीछे वहां का संविधान और उसके प्रति लोगों का विश्वास काम करता है जिसमें राजा और जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार दोनों आपस में संवैधानिक शक्तियों का बंटवारा करते हैं। राजा सरकार के काम में दखल नहीं दे सकता है, पर उसके दस्तखत के बिना किसी कानून को लागू भी नहीं किया जा सकता। इस व्यवस्था को संवैधानिक राजशाही कहा जाता है।अब जबकि किंग चार्ल्स की ताजपोशी हो चुकी है। वह कनाडा, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सहित 15 विभिन्न देशों में राज्य के प्रमुख हैं। ब्रिटेन दूसरे देशों के लिए एक आदर्श है जहां लोकतंत्र को कड़ी अग्नि परीक्षा में गुजरना पड़ा है। तब जाकर राजा और सरकार में शक्तियों का बंटवारा हुआ है। दुनिया के कई देशों में आज भी पूरी शक्तियां राजा के पास ही हैं और उनके द्वारा लिया गया फैसला ही अंतिम होता है। इसमें सऊदी अरब, वेटिकन सिटी और अन्य कई देश आते हैं। ब्रिटेन में राजा केवल औपचारिक क्षमता में कार्य करता है िजसमें लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को राष्ट्र पर शासन करने की अनुमति मिलती है। ब्रिटेन में यह व्यवस्था सफलतापूर्वक काम कर रही है। राजशाही व्यवस्था का सबसे बड़ा घातक पहलू यह है कि उनका शासन निरंकुश हो जाता है। समय-समय पर लोगों ने निरंकुश शासन के खिलाफ आंदोलन चलाए हैं और कई देशों में लोकतंत्र की स्थापना भी हुई है। ब्रिटेन के लोगों का एक वर्ग राजशाही को महज एक परम्परा ही मानते हैं। 2021 में कराए गए एक सर्वेक्षण में 63 प्रतिशत लोगों का मानना था कि भविष्य में भी राजशाही बनीं रहे जबकि कुछ लोगों का मानना था कि उन्हें अब राजशाही की जरूरत नहीं। राजशाही उपनिवेशवाद का अवशेष है। अब समय बहुत बदल गया है। कुछ लोगों का कहना था कि ब्रिटेन के करदाताओं का पैसा शाही परिवार पर खर्च हो रहा है जबकि इस की जरूरत नहीं है। करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल राजघराने से जुड़े दूर के लोगों के लिए भी किया जाता है क्योंकि उनकी उपाधि से जुड़े कई काम होते हैं। उनकी सुरक्षा पर भी खर्च किया जाता है लेकिन वे देश के लिए कुछ नहीं करते। कुछ लोगों का मानना है कि अगर ताजपोशी समारोह न भी होता तो भी चार्ल्स उनके किंग ही रहते। लेकिन बुजुर्ग लोगों का मानना है कि राजशाही के कई संवैधानिक कर्त्तव्य हैं। राजघराना सार्वजनिक व धर्मार्थ सेवाओं के जरिए राष्ट्र एकता को मजबूत करने और स्थिरता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जबकि युवा वर्ग राजशाही के समर्थन में दिखाई नहीं देता। राजघराने के पैलेस की ऊंची दीवारों के भीतर रंगभेद या नस्लभेद को लेकर भी सवाल खड़े हुए थे जब प्रिंस हैरी और उनकी अभिनेत्री पत्नी मेगन मार्कल ने राजघराने की सारी सुख सुविधाएं छाेड़ कर कैलिफोर्निया में रहने को प्राथमिकता दी थी। राजमहल के भीतर के घटनाक्रम पर मेगन ने कई सवाल उठाते हुए स्वतंत्र जीवन बिताने को प्राथमिकता दी थी। अपने पिता की ताजपोशी समारोह मेें केवल अकेले हैरी ही आए। ब्रिटेन के युवाओं ने ताजपोशी समारोह को अमीरों का शौक और पैसे की बर्बादी ही बताया है। आज की अनिश्चितताओं से भरी दुनिया में जब शासक वर्ग कानूनों की धज्जियां उड़ाते नजर आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में चार्ल्स की ताजपोशी संवैधानिक राजतंत्र को मानने वाले एक राजा को राहत भरी अनुभूति कराता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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