उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री, वर्तमान मुख्यमंत्री को एक चेतावनी देेते वक्त बहुत कुछ भूल गए। चेतावनी 'बुलडोज़रों' के संदर्भ में थी। वर्तमान मुख्यमंत्री की 'बुलडोज़र-नीति' को आड़े हाथों लेते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कह डाला, 'हमारी सरकार आते ही बुलडोज़र के मुख गोरखपुर की ओर मोड़ देगी।' ऐसी धमकियां या चेतावनियां अक्सर विपरीत प्रभाव छोड़ती हैं। पूर्व मुख्यमंत्री को इस बात का भी ध्यान नहीं रहा कि गोरखपुर सिर्फ वर्तमान मुख्यमंत्री का गृह क्षेत्र ही नहीं है। यह नगर महान आध्यात्मिक संत, गुरु गोरखनाथ के नाम से ही पहचाना जाता है। यहां की गोरख-पीठ न केवल देशभर में फैले गोरख-सम्प्रदाय के श्रद्धालुओं के लिए पावन स्थल है बल्कि भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट के जवान भी इस पीठ के समक्ष श्रद्धावनत रहते हैं।
पड़ोसी नेपाल के राजवंश की श्रद्धा भी सदियों तक इस नगर एवं इसी गोरखपीठ से ही जुड़ी रही है। नेपाल में अतीत में वहां के राजपरिवारों ने विश्व-हिन्दू सम्मेलन भी आयोजित किए थे। इन सम्मेलनों में गोरखपीठ के मठाधीश को विशेष रूप से बुलाया जाता था। नेपाल के राजवंश के बहुचर्चित प्रमुख महाराजा ज्ञानेंद्र और महाराजा वीरेंद्र व उनके पूर्वज स्वयं को गुरु गोरखनाथ का ही वंशज मानते थे। महाराजा वीरेंद्र वर्ष 1992 में सप्तनीक काठमांडु से गोरखपुर मठ आए थे और उन्होंने वहां के तत्कालीन मठाधीश महंत अवैद्य नाथ की प्रेरणा से नेपाल के संविधान में संशोधन करते हुए वहां गोवध पर प्रतिबंध लगा दिया था। पूरा परिवार, महंत अवैद्य नाथ को राजगुरु मानता था। महंत अवैद्य नाथ के बाद ही वर्ष 2014 में योगी आदित्यनाथ मठाधीश बने थे। वर्ष 2015 में नेपाल में आए भीषण भूकम्प के समय वहां उजड़े लोगों के पुनर्वास एवं राहत-अभियान में मुख्य भूमिका योगी आदित्यनाथ ने ही निभाई थी। वहां के अनेक ध्वस्त-मंदिरों का पुनर्निर्माण इसी मठ के द्वारा ही कराया गया था।
योगी इसी क्षेत्र से पांच बार सांसद भी रहे और बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने पर भी नेपाल की अधिकांश संस्थानों ने इसे पूरे गोरख-समुदाय के लिए गर्व और गौरव का विषय माना था। यद्यपि अब नेपाल में सत्तातंत्र का रूप बदल चुका है मगर अब भी वहां सामान्य जन गोरखनाथ-मठ को अपनी धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र मानता है।
राजनीति में मतभेदों का दौर हर लोकतंत्र में चलता है मगर राजनैतिक दलों के शिखर नेतृत्व को अपने बयानों पर संयम रख लेना चाहिए। उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि नाथपंथ के मठों का प्रभाव राजस्थान में भी है और हरियाणा के कुछ जिलों में है। 'बुलडोजरों' के मुंह गोरखपुर की ओर मोड़ने की बात भले ही एक मुहावरे के रूप में सपा के शिखर नेता के मुख से निकली हो, मगर ऐसे वक्तव्य व्यापक स्तर पर गलत प्रभाव छोड़ते हैं। 'गोरखा रेजिमेंट' के जवान व अधिकारी भी गोरखपुर-मठ को अपनी आस्था का केंद्र मानते हैं। नेपाल की सेना में इस मठ के मठाधीश को 'जनरल' के समान, सम्मान मिलता है। यह सम्मान यद्यपि मानद (आनरेरी) होता है लेकिन इसके महत्व की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
गीता प्रैस गोरखपुर के प्रकाशनों के श्रद्धालुओं और पाठकों की संख्या उत्तर प्रदेश के करोड़ों लोगों के हृदय में बनी हुई है। गोरखपुर, वहां के मठ और गीता प्रैस सरीखे संस्थान की ओर किसी भी बुलडोज़र का मुख मोड़ना एक बेतुका संदर्भ भी है, अनुचित भी है, अशोभनीय भी और क्षतिकारक है। यह मठ, यह क्षेत्र, ये संस्थान किसी एक राजनेता तक सीमित नहीं है। मुख्यमंत्री योगी से या उनके दल से समाजवादी पार्टी को 'एलर्जी या आपत्ति है तो भी इस जनपद को विवादों में नहीं घसीटा जा सकता। यह गीता प्रैस गोरखपुर सरीखे संस्थान का भी नगर है और फिराक गोरखपुरी सरीखे कालजयी शायर की भी जन्मस्थली है। इस भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट के लिए गोरखनाथ मठ एक तीर्थ के समान है।
इधर, सुप्रीम कोर्ट ने 'बुलडोज़र न्याय' पर जो टिप्पणियां की हैं उनमें इसी तनाव की झलक देखी जा सकती है। अदालत ने इस तरीके को अपनाने की कड़ी निंदा की है। अदालत का कहना है कि कोई किसी जघन्य मामले का आरोपी या दोषी ही क्यों न हो, उसे कानून के दायरे में दंडित करने के दूसरे तरीके हो सकते हैं लेकिन उसके घर को सिर्फ इसीलिए गिरा दिया जाना किसी भी तरह से वाजिब नहीं कहा जा सकता। हालांकि, सरकारी वकील ने कहा कि ऐसी ही संपत्तियां गिराई गई हैं जो गैर-जरूरी हैं। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश सरकार ने शपथ पत्र देकर कहा है कि उसने जो भी अचल संपत्तियां हटाई हैं, वे सब कानून की प्रक्रिया का पालन करते हुए हटाई गई हैं।
दरअसल, कई बार ऐसे मामलों में गड़बड़ी किसी और तरह से होती है। गैर-कानूनी अचल संपत्ति तो पूरी तरह कानून की प्रक्रिया का पालन करते हुए हटाई जाती है, लेकिन प्रशासन अपनी पीठ थपथपाने के लिए यह भी कह देता है कि उसने आरोपी को मज़ा चखा दिया। ऐसे मामलों की मीडिया में भी यही कहानियां चलती हैं। इसी से यह छवि बनती है कि 'बुलडोज़र न्याय' किया जा रहा है। जरूरी यह है कि ऐसी कार्रवाई करने के लिए सबसे पहले यह बताया जाए कि ढहाई जा रही संपत्ति किस तरह से गैर-कानूनी है।
– डॉ. चन्द त्रिखा