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‘बुलडोजर’

भारत संविधान से चलने वाला देश है इसकी पुष्टि आज राजधानी की जहांगीरपुरी बस्ती में पुनः तब हुई जह उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा इस कालोनी में चलाया जा रहा अवैध निर्माण गिराने का अभियान सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर रोक दिया गया

भारत संविधान से चलने वाला देश है इसकी पुष्टि आज राजधानी की जहांगीरपुरी बस्ती में पुनः तब हुई जह उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा इस कालोनी में चलाया जा रहा अवैध निर्माण गिराने का अभियान सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर रोक दिया गया और बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मसले पर दायर अपील को यह कह कर ठुकरा दिया कि मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है। जाहिर है कि दिल्ली नगर निगम भी कानून के अनुसार ही जहांगीरपुरी में अवैध निर्माण गिराने का काम कर रही थी । उसके इस काम को कोई भी व्यक्ति गैर कानूनी किस तरह करार दे सकता है जबकि उसने नियमों के तहत ही अतिक्रमण हटाने का काम किया। जाहिर है कि अतिक्रमण हटाने के काम में प्रायः हर जगह ही बुलडोजर का प्रयोग किया जाता है, अतः जहांगीरपुरी में भी हमें बुलडोजर देखने को मिला परन्तु इस मामले को तुरन्त ही राजनैतिक रंग दे दिया और निगम की इस कार्रवाई को पिछले दिनों इस कालोनी में हुए साम्प्रदायिक संघर्ष से जोड़ दिया गया।
पिछले दिनों हनुमान जयन्ती के अवसर पर निकाली गई  शोभायात्रा के दौरान वहां स्थित मस्जिद के सामने जिस तरह की हिंसा हिन्दू व मुसलमानों के बीच हुई वह इसी तथ्य का प्रमाण कही जा सकती है कि मजहबी रवायतों की टकराहट से आज का हिन्दोस्तान पूरी तरह मुक्त नहीं हो सका है, हालांकि यहां संविधान या कानून का शासन पूरी तरह हर क्षेत्र में काबिज है। यदि ऐसा  न होता तो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को देखते ही मौके पर तैनात पुलिस अधिकारी और निगम के अफसर अपना काम न रोकते। इससे भारत के मुस्लिमों को पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहिए कि वे संविधान के साये में जी रहे हैं। मगर उनका भी यह कर्त्तव्य बनता है कि वे कानून का पालन सच्चे मन से करें और किसी भी सूरत में न तो कानून की अव्हेलना करें और न कानून के खिलाफ काम करें। इसलिए जहांगीरपुरी में अवैध निर्माण का गिराया जाना किसी भी तरह से गैर कानूनी नहीं कहा जा सकता क्योंकि बुलडोजर केवल वहीं चला है जहां अतिक्रमण था और उसने यह देख कर काम नहीं किया है कि कौन सी दूकान हिन्दू की थी या कौन सी मुसलमान की थी। कानून की जद में जो भी आया वह बुलडोजर का शिकार हो गया। राजनीतिज्ञ एक-दूसरे पर आरोप लगाने के लिए अपनी वोट बैंक की सियासत जरूर कर सकते हैं मगर कानून के तहत की गई कार्रवाई को गलत नहीं ठहरा सकते। उन्हें यह समझना होगा कि कानून की नाफरमानी करने वाले लोगों की हिमायत वह किसी तौर पर नहीं कर सकते। भवन निर्माण कानून के दायरे में ही मन्दिर और मस्जिदों का निर्माण भी होता है अतः अवैध निर्माण पाये जाने पर कानून इनको किसी भी तरह की रियायत नहीं दे सकता। 
सर्वोच्च न्यायालय ने निगम की अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई पर फिलहाल केवल स्थगन या स्टे दिया है और वह पूरे मामले को आज फिर सुनेगा तब अपना अन्तिम आदेश देगा। कुछ लोग इस मामले को अमीर या गरीब अथवा हिन्दू-मुसलमान के चश्मे से देख रहे हैं मगर कोई भी इस मुद्दे को नहीं उठा रहा है कि भारत में रेहड़ी-पटरी वालों या फेरी अथवा खोमचा लगाने वालों के लिए भी एक कानून है जिससे इनके कारोबारी हकों को महफूज रखा जा सके। यह कानून 2013 में ही संसद द्वारा बनाया गया था। इसके पालन के लिए प्रत्येक राज्य सरकार को आगे आना चाहिए। मगर इसके साथ ही हमें यह भी सोचना चाहिए कि मजहब के नाम पर रंजिश की गांठ बांध कर अपनी सामाजिक हरकतों को एक-दूसरे के खिलाफ जाहिराना बनाने की जहनियत न होने दी जाए। भारत-पाक बंटवारा क्यों हुआ , यह हर कोई जानता है। जिन्ना की जहनियत की हकीकत यह थी कि उसने हिन्दोस्तान की सारी रवायतों पर खाक डालते हुए मुस्लिम जनता को एक अलग कौम बनने का सपना बेचा जिसमें वह कामयाब भी हो गया। जबकि इसके विपरीत तथ्य यह था कि भारत के 95 प्रतिशत से अधिक मुसलमान भारत माता की सन्तान ही हैं। 
स्वतन्त्र भारत में मुसलमानों के व्यक्तिगत नागरिक अधिकारों से ज्यादा धार्मिक अधिकारों को तरजीह दी गई जिससे इस समुदाय में धर्मनिरपेक्ष भारत में रहने के बावजूद ‘रोशन खयाली’ का जज्बा कभी ‘रौशन’  ही नहीं हो सका। पाकिस्तानी मूल के मशहूर इस्लामी आलिम तारेक फतेह के अनुसार मजहब की चारदीवारी में कैद भारत के मुसलमानों को कभी यह बताने की कोशिश ही नहीं की गई कि उनका पूर्वज सन् 711 में भारत के ‘सिन्ध’ प्रान्त पर हमला करने वाला पहला ‘अरब’ मुस्लिम ‘मोहम्मद बिन कासिम’ नहीं बल्कि इस सूबे का हिन्दू राजा ‘दाहिर’ था  जिसने उस समय अरब में चल रहे इस्लाम धर्म की चौधराहट के युद्ध में वहां से भागे हुए ‘हजरत मुहम्मद सल्लै- अल्लाह-अलैह-वसल्लम के वंशजों को शरण दी थी। अतः ऐसी ‘पाक धरती’ को लोगों के पूज्य भागवान राम के नारों से वे विचलित क्यों हो जाते हैं और इसकी सहिष्णु संस्कृति की ‘लय’ में स्वयं को समाहित करने से क्यों घबराते हैं जबकि एतिहासिक सच यह है कि हजरत मोहम्मद साहब के जीवन काल में ही 629 ईसवी में दुनिया की पहली मस्जिद भारत के केरल राज्य के कोच्ची शहर के ही करीब सागर तट पर तामीर हुई थी और इसे एक हिन्दू राजा ने ही तामीर करने की इजाजत दी थी।

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