डोकलाम विवाद पर भारत को मिली बड़ी कूटनीतिक जीत से चीन के साथ रिश्तों में कटुता की रफ्तार भले ही थम तो गई है लेकिन चुनौतियां पूर्ववत् बनी हुई हैं। ढाई महीने से अधिक समय तक तनाव इस कदर बढ़ गया था कि युद्घ के बादल मंडराते हुए नजर आने लगे थे। चीन और उसका पूरा तंत्र बार-बार युद्घ की धमकी दे रहा था लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के मोर्चे पर वह इतना घिर गया था कि युद्घ करना उनके बस की बात नहीं रह गई थी। विश्व के अनेक शक्तिशाली देश भारत के साथ आकर खड़े हो गये थे। चीन के साथ तनातनी थमने के बाद अब भारत और जापान ने रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का फैसला लिया है। यह फैसला ऐसे समय में हुआ है जब उत्तरी कोरिया के परमाणु परीक्षण के चलते क्षेत्र में तनाव कायम हो गया है। वहीं चीन दक्षिणी चीन सागर को लेकर अपनी दावेदारी बढ़ाता ही जा रहा है। रक्षा मंत्री की हैसियत से जापान गये अरुण जेतली ने जापान के रक्षा मंत्री इत्सुनोरी ओनेडेका से कई मुद्दों पर बातचीत की। भारत-जापान ने दोहरे इस्तेमाल वाली टैक्रोलोजी समेत रक्षा उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए सहयोग पर सहमति जताई है।
भारत अपनी नौसेना के लिये जापान से यूएस-2 शिनमायवा विमान खरीदने की योजना बना रहा है। जापान वाजिब दामों पर भारत को रक्षा सामग्री देने पर भी सहमत है। यह भी सहमति बनी कि भारत-जापान की थलसेनायें अगले वर्ष 2018 में आतंकवाद से मुकाबला करने के लिये संयुक्त युद्घाभ्यास करेंगी। भारत-जापान और अमेरिका के बीच बंगाल की खाड़ी में इसी वर्ष जुलाई माह में त्रिपक्षीय मालाबार अभ्यास हुआ था लेकिन अब इसका और विस्तार करने का फैसला किया गया है। इस बार युद्घाभ्यास में आस्ट्रेलिया भी शामिल हो सकता है। भारत-जापान में समुद्र के भीतर दुश्मन की पनडुब्बी की आक्रामकता पर नजर रखने के लिये एंटी सब मरीन वारफेयर प्रशिक्षण की शुरुआत करने का भी फैसला लिया गया है। भारत-जापान में बढ़ते सहयोग से चीन पहले से ही काफी परेशान है।
डोकलाम विवाद पर भी जापान ने भारत का साथ दिया था। जापान ने कहा था कि डोकलाम में अगर यथास्थिति बदलने के लिये चीन बल प्रयोग करता है तो वह भारत का साथ देगा। तब चीन ने जापान को इस मामले में हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दे दी थी। चीन जले तो जले भारत-जापान ने अपना काम कर दिया है। पिछले वर्ष भी चीन बहुत तिलमिलाया था जब जापान ने अपने परम्परागत रुख से हटकर भारत के साथ ऐतिहासिक असैन्य परमाणु सहयोग करार पर हस्ताक्षर किये थे। इसके साथ ही परमाणु क्षेत्र में दोनों देशों के उद्योगों के बीच गठजोड़ के लिए द्वार खुल गये थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ सांझा प्रैस कान्फ्रेंस में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कहा था कि असैन्य परमाणु समझौता एक कानूनी ढांचा है जिसके तहत भारत परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उद्देश्य को लेकर तथा परमाणु अप्रसार की व्यवस्था में भी जिम्मेदारी के साथ काम रहेगा। हालांकि भारत एनपीटी में भागीदार अथवा हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। एनएसजी में भारत की सदस्यता का भी जापान पक्षधर रहा है।
भारत और जापान के सम्बन्ध हमेशा से ही काफी मजबूत रहे हैं। जापान की संस्कृति पर भारत में जन्में बौद्घ धर्म का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान भी जापान की शाही सेना ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज को सहायता प्रदान की थी। जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की आर्क आफ फ्रीडम सिद्घांत के अनुसार यह जापान के हित में है कि वह भारत के साथ मजबूत सम्बन्ध रखे। खासतौर पर उसके चीन के साथ तनावपूर्ण रिश्तों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो ऐसा करना जरूरत भी है। जापान की कई बड़ी कंपनियां भारत में हैं और वह भारत के आर्थिक विकास में योगदान दे रही हैं। दिल्ली में मैट्रो रेल निर्माण देश के लिये काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ। जापान भारत में हाईस्पीड ट्रेन भी ला रहा है। जापान अवसंरचना विकास की कई परियोजनाओं में वित्तीय मदद भी दे रहा है। दोनों देशों का व्यापार भी पहले से काफी बढ़ा है। भारतीय जापानियों का काफी सम्मान करते हैं। भारतीय जनमानस में जापान की छवि लव इन टोक्यो या मेरा जूता है जापानी के रूप में अंकित है। जापानी अपनी देशभक्ति के लिए जाने जाते हैं और जापान इस मायने में खास है कि आधुनिक मूल्यों और प्रौद्योगिकी को अपनाने की प्रक्रिया में उसने अपनी मूल्यवान परम्पराओं को नहीं खोया है। भारत-जापान चाहें तो दुनिया के बाजार में अपना प्रभुत्व स्थापित कर सकते हैं। आज दोनों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे की पूरक बन गई हैं। चीन की घिनौनी हरकतों से वियतनाम, ताइवान, फिलीपींस, जापान सभी उसके खिलाफ हैं। ये सब देश अब भारत के साथ आ रहे हैं। यही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कूटनीतिक सफलता है।