केरल राज्य में बाढ़ व अतिवृष्टि ने इस कदर कहर ढहाया है कि खाड़ी के देश संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख खलीफा ने यहां के लोगों की मदद के लिए एक समिति बनाने का फैसला यह कहते हुए किया है कि उनके देश की सफलता की कहानी में केरल निवासियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह इस तथ्य का प्रमाण है कि केरल के नागरिकों पर टूटी प्राकृतिक आपदा की भयावहता क्या है। जिस राज्य की दस हजार कि.मी. से अधिक सड़कें बरसात का पानी निगल गया हो उसकी खस्ता हालत का अन्दाजा लगाया जा सकता है। इस राज्य के तीन करोड़ से अधिक लोग आज कहर से बचने के लिए सुरक्षित स्थान ढूंढते फिर रहे हैं। समुद्र तट पर बसे प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर इस राज्य में जिस तरह अत्यधिक वर्षा ने इसके मनोहारी स्वरूप को विकृत किया है उसे सुधारने में वर्षों का समय लग जायेगा। राज्य के सौ के लगभग बांधों और जलाशयों में जल उछल-उछल कर नागरिक बस्तियों को जलमग्न कर रहा है और सभी प्रकार की नागरिक सुविधाओं को ध्वस्त कर रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए सेना के तीनों अंगों के जवान मुस्तैदी के साथ जनता की मदद कर रहे हैं और चारों तरफ से जल से घिरे लोगों को हेलीकाप्टर तक से निकाल रहे हैं। पहली वरीयता लोगों की जान की सुरक्षा करने की है। प्रदेश के कुल 14 जिलों में से अधिसंख्य पर वर्षा का कोप जारी है जो स्थिति को और अधिक गंभीर बना रहा है।
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले सौ साल में एेसा भयंकर जल प्रकोप केरल की धरती पर इस वर्ष बरपा है। इससे पहले 1924 में एेसी भयंकर स्थिति बनी थी। केरल एेसा राज्य है जो झुलसाती गर्मी में पूरे भारत को मानसून आने की आहट से हर्षित करता है परन्तु इस वर्ष स्वयं वह इसके प्रकोप में फंस गया। अतः समस्त भारतवासियों का कर्त्तव्य है कि इस संकट की घड़ी में वे इस राज्य के निवासियों की मदद के लिए इस प्रकार आगे आयें कि हिमालय के उत्तंग शिखरों से लेकर समुद्र की लहरों तक पूरा भारत एक साथ खड़ा नजर आये। जिस राज्य में जल ने पिछले एक सप्ताह के भीतर ही साढ़े तीन सौ से अधिक लोगों को निगल लिया हो वहां वर्षा के बाद स्थिति कितनी भयंकर हो सकती है, इसका अन्दाजा अभी से लगा लिया जाना चाहिए और केन्द्र व राज्य की सरकारों को युद्ध स्तर पर योजना तैयार कर लेनी चाहिए जिससे किसी भी प्रकार की महामारी या अन्य बीमारियों के फैलने पर तुरत-फुरत इंतजाम किये जा सकें। केरल पूरे देश में एेसा सुव्यवस्थित प्रशासनिक राज्य है जिसका अनुकरण करना दूसरे राज्यों के लिए पहाड़ तोड़ने से कम नहीं रहा है। यहां के प्रबुद्ध और परिश्रमी लोग अपने सौम्य और सहनशील व्यवहार से पूरे देशवासियों का मन जीतते रहे हैं और अपने बौद्धिक चिन्तन की छाप छोड़ते रहे हैं परन्तु यह कैसी विडम्बना है कि इस बार ओणम के त्यौहार से पहले प्रकृति ने यह घोर विपदा केरल निवासियों के सिर पर डाल दी है वरना वर्षा काल समाप्त होते-होते राज्य में ओणम की तैयारियां हर नागरिक अपना धर्म और सम्प्रदाय भूलकर करने लगता है और अपने मलयाली होने का परिचय देता है। यह पर्व केरल का राष्ट्रीय पर्व माना जाता है जिसमें प्राचीन मान्यता के अनुसार महाराजा बलि साल में एक बार अपनी प्रजा का हालचाल देखने अपने राज्य में आते हैं। अतः ओणम पर दीवाली मनाकर केरल निवासी उनका स्वागत करते हैं परन्तु इस बार ओणम पर्व केरल में किस प्रकार मनाया जा सकता है जब स्वयं प्रकृति ने ही उसे छल लिया हो। किन्तु तस्वीर का दूसरा पहलू वैज्ञानिक है जिस पर गंभीरता के साथ विचार किये जाने की जरूरत है। मौसम में परिवर्तन जिस प्रकार आ रहा है इसमें समुद्री विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों को ही पता लगाना होगा कि अतिवृष्टि के क्या मूल कारण हो सकते हैं। बेशक हम इस प्रकार की आपदाओं के विपरीत प्रभावों को वित्तीय संसाधनों से हल्का कर सकते हैं परन्तु मनुष्य की उस त्रासदी को समाप्त नहीं कर सकते जो वह झेलता है। अन्त में इसे नियति मानकर हम छोड़ भी नहीं सकते क्योंकि विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि वह समय रहते एेसे संकटों की सूचना दे सके। फिलहाल सबसे बड़ी जरूरत यह है कि बिना किसी प्रकार की राजनीति किये केरल के लोगों के दुःख दूर करने के प्रयास किये जायें और इस कार्य में हर सामाजिक संस्था हाथ बंटाकर अपना कर्त्तव्य निभाये। इसके साथ ही कर्नाटक के कुछ इलाकों में भी अतिवृष्टि ने कहर मचा दिया है। इस राज्य में भी तीन दिन में ही हजारों करोड़ रु. का नुकसान हो चुका है और लोगों की जानमाल का खतरा पैदा हो गया है। केरल के लोगों को मदद देने के लिये केन्द्र सरकार के स्तर पर बाढ़ राहत कोष बनाने की सख्त जरूरत है। बेशक प्रधानमन्त्री व गृहमन्त्री इस राज्य के जल प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण कर आये हैं, मगर लोगों को राहत पहुंचाने का दायित्व भी केन्द्र से लेकर राज्य सरकार तक का है। भारत के इस क्षेत्र के शान्तिप्रिय नागरिक इसी प्रतीक्षा में हैं।