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पाकिस्तान से खत आया !

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यह बात समझ में आने वाली है कि भारत और पाकिस्तान के विदेशमन्त्री आगामी अक्टूबर महीने में न्यूयार्क में राष्ट्रसंघ महासभा के अधिवेशन के मौके पर भेंट करेंगे। जाहिर तौर पर इससे दोनों देशों के कड़वाहट भरे रिश्ते के बीच की बर्फ पिघलेगी। पाकिस्तान के नए प्रधानमन्त्री इमरान खान ने जिस तरह प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर आपसी सम्बन्धों को सुधारने की इच्छा जताई है उससे हमारे पड़ोसी देश की नेक नीयत पर भरोसा तब तक नहीं किया जा सकता जब तक पाकिस्तान यह स्वीकार न करे कि भारत ने कभी भी उसके प्रति बदनीयती का इजहार नहीं किया है। यहां तक कि तीन-तीन युद्ध लड़ने के बावजूद भारत ने हमेशा पाकिस्तान के प्रति दोस्ती का हाथ बढ़ाया और हर बार घोषणा की कि एक स्थाई व विकसित पाकिस्तान भारतीय उपमहाद्वीप की शान्ति के लिए जरूरी है मगर पाकिस्तान में विकास व स्थायित्व तभी आ सकता है जब वहां की जनता की इच्छा के अनुरूप इस देश का निजाम चले और जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को अपने मुल्क का मुस्तकबिल तय करने के पूरे अख्तियार मिलें लेकिन बदकिस्मती यह रही है कि यह मुल्क फौजी हुक्मरानों के चंगुल में बार-बार फंस कर केवल भारत से दुश्मनी में ही अपना वजूद ढूंढता रहा है और यहां की फौज अपने वजूद व हुक्मरानी के लिए हिन्दोस्तान से रंजिश को अपना ईमान मानती रही है।

इसके लिए पाकिस्तान की फौज हर वह रास्ता अपनाती है जिससे भारत के साथ रिश्तों में कभी मिठास आ ही न सके। इसका सबसे ताजातरीन मामला पूर्व प्रधानमन्त्री श्री नवाज शरीफ का है जिन्हें इस देश में पिछले जुलाई महीने में हुए राष्ट्रीय असैम्बली के चुनावों से पूर्व भ्रष्टाचार के मनघड़ंत आरोपों में जेल की सजा सुनाई गई थी। इसके साथ उनकी पुत्री मरियम नवाज और उनके पति कैप्टन सफदर को भी जेल की चारदीवारी के पीछे पहुंचा दिया गया था परन्तु गत बुधवार को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने श्री नवाज शरीफ व उनके परिवार के सभी सदस्यों की क्रमशः दस, सात व एक वर्ष की जेल की सजा को मुल्तवी करते हुए जमानत पर रिहा कर दिया और कथित भ्रष्टाचार के मुकद्दमे की सजा सुनाने वाली पाकिस्तान की राष्ट्रीय जवाबदेही अदालत के फैसले पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि केवल अनुमान के आधार पर जवाबदेही अदालत ने भ्रष्टाचार के आरोपों को सही मानते हुए फैसला सुना दिया जबकि इस बारे में न पुख्ता सबूत हैं और न यह साबित होता है कि लन्दन में फ्लैट खरीदने के लिए श्री शरीफ ने धन शोधन (मनी लांड्रिंग) का सहारा लिया और फ्लैट वाकई में खरीदे भी गये? मगर एेन चुनावों के मौके पर श्री शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) को भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझना पड़ा और उनकी पार्टी को भारी खामियाजा इसकी वजह से न उठाना पड़ा हो, एेसा नहीं माना जा सकता।

उनकी पुत्री मरियम नवाज तो चुनावी प्रचार में मतदाताओं से अपील कर रही थीं कि उनके मुल्क के हर संस्थान को लोगों के वोट की इज्जत करनी चाहिए। उनका इशारा फौज की तरफ ही था जो लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के अख्तियारों को महदूद करने के लिए बदनाम है। दुनिया जानती है कि श्री शरीफ ने पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री के रूप में भारत के साथ दोस्ताना ताल्लुकात बढ़ाने चाहे थे मगर वहां की फौज ने उनके इस रुख के खिलाफ कार्रवाई करते हुए एक तरफ सरहदों को अशान्त बनाया तो दूसरी तरफ कश्मीर में दहशतगर्दी को बढ़ावा दिया और चुनावों में ऐसी बिसात बिछाई कि श्री शरीफ की पार्टी की पराजय सुनिश्चित हो सके परन्तु यह पाकिस्तान का अन्दरूनी सियासी मामला है, इससे भारत को ज्यादा लेना-देना नहीं है। भारत को अब उस सरकार से ही सम्बन्ध रखने हैं जिसके हाथ में चुनावों के बाद हुकूमत आई है। बेशक इमरान खान की मजबूरी हो सकती है कि वह भारत के साथ रिश्ते सुधारने की तजवीज इस तरह ढूंढें जिससे उनकी सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वसनीयता मिल सके क्योंकि पाकिस्तान की माली हालत फिलहाल हाथ में कटोरा लिये भिखारी की हो गई है और उसके पास दो हफ्ते की आयात जरूरतें पूरी करने तक के लिए विदेशी मुद्रा अर्थात डालर नहीं है जबकि पाकिस्तानी रुपया मुंह के बल नीचे गिरा हुआ है और डालर के मुकाबले 125 रुपए पर चल रहा है परन्तु ध्यान देने वाली बात यह भी है कि गत बुधवार को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय का फैसला श्री शरीफ के हक में आने के बाद ही इमरान खान ने भारत के प्रधानमन्त्री को खत लिखा है।

इसका मतलब यही निकलता है कि श्री इमरान खान अपनी उस छवि से बाहर आना चाहते हैं जो उन्हें विगत जुलाई महीने में यह नारा देकर बनाई थी कि ‘मोदी का यार नवाज शरीफ’ और ‘बल्ला घुमाओ-भारत हराओ।’ इसीलिए भारत हमेशा से कहता रहा है कि पाकिस्तान को दहशतगर्दी कार्रवाइयों को तुरन्त बन्द करना चाहिए। बेशक पाकिस्तान की अवाम ने अपनी सरजमीं पर दहशतगर्दों की सियासी चालों का उनके चेहरों पर पड़े नकाबों को उतार कर पर्दाफाश कर दिया है जो उन्हें मजहब के आधार पर हिन्दोस्तान का दुश्मन दिखाना चाहते थे। हाफिज सईद व अन्य कुछ उस जैसे दहशतगर्दों की सियासी तंजीमों के उम्मीदवारों की चुनावों में जमानतें जब्त कराकर यहां के मतदाताओं ने अपने इरादे साफ कर दिये थे। इसलिए इमरान खान को भी दहशतगर्दी के खिलाफ अपने इरादे साफ करने चाहिएं और अपने देश की न्यायप्रणाली को निर्भय व निडर बनाने के पुख्ता इन्तजाम करने चाहिएं।

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