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सीबीआई की पुलिस से मुठभेड़!

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सीबीआई का गहरे विवादों में फंसना कोई पहली बार नहीं हो रहा है मगर जो पहली बार हो रहा है वह किसी राज्य की मुख्यमन्त्री द्वारा अपनी पुलिस की हिमायत में सीबीआई के विरुद्ध इस तरह खड़े होना है कि केन्द्र व राज्य सरकार अपने-अपने मातहत काम करने वाली पुलिस की कार्यप्रणाली के बचाव में दिखाई पड़ रही हैं। जहां पं. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने कोलकाता के पुलिस कमिश्नर श्री राजीव कुमार के बचाव में अभियान छेड़ दिया है वहीं केन्द्र सरकार ने सीबीआई के बचाव में सभी रास्ते खोल दिए हैं और खुद सीबीआई सर्वोच्च न्यायालय की शरण में चली गई है। इससे यह तो सिद्ध होता ही है कि सीबीआई की विश्वसनीयता और क्षमता व योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लग गया है।

मुझे अच्छी तरह याद है कि स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय भी एेसा ही मंजर तब पेश हुआ था जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ढहाये जाने के मामले में सीबीआई ने श्री लालकृष्ण अडवानी के विरुद्ध अदालत में चल रहे मुकद्दमे में दायर चार्जशीट में फौजदारी कानून की धारा 120(बी) भी लग रही थी और इसे उनके गृहमन्त्री बनने पर चार्जशीट को बदला गया था और उसमें से धारा 120(बी) हटा दी गई थी। तब संसद में इस मुद्दे पर भारी कोहराम मचा था। लोकसभा में विपक्षी पार्टी के तत्कालीन मुख्य सचेतक स्व. प्रिय रंजन दास मुंशी ने वाजपेयी सरकार को कटघरे में इस तरह खड़ा कर दिया था कि सीबीआई के राजनीतिक उपयोग करने के आरोप से स्वयं तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल जी तिलमिला गए थे और उन्होंने खुद लोकसभा में खड़े होकर सफाई देते हुए कहा था कि ‘‘हमारी नीयत पर आप सन्देह मत कीजिये।

मैं आश्वासन देता हूं कि सीबीआई पूरी तरह निष्पक्ष रह कर अपना काम करेगी और उस पर किसी प्रकार का कोई दबाव गृह मन्त्रालय या अन्य किसी मन्त्रालय का नहीं रहेगा। मैं स्वयं सीबीआई के कामकाज की निगरानी रखूंगा आप पूरी तरह निश्चिन्त रहिये’’ श्री अडवानी की चार्जशीट में से धारा 120(बी) हटाने के मामले में तब के कानून मन्त्री पर भी आक्षेप आ रहा था क्योंकि कानून मन्त्रालय ही सीबीआई को कानूनी मामलों में सलाह देता है। हालां​िक ऐसा पहली बार हुआ था कि भारत की सरकार में किसी ऐसे व्यक्ति को गृहमन्त्री बनाया गया था जिस पर अदालत में फौजदारी मामले की चार्जशीट पहले से ही दायर थी जबकि देशभर का पुलिस विभाग उसी के नियन्त्रण में रहता है। परोक्ष रूप से यह एेसा मामला था जिसमें सीबीआई अपने ही सर्वोच्च अधिकारी ( गृहमन्त्री) के खिलाफ मुकद्दमा लड़ रही थी।

लगभग ऐसी ही स्थिति प. बंगाल में बनी है जब सीबीआई स्वयं कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को रविवार छुट्टी के दिन पूरे अमले के साथ उन्हें गिरफ्तार करने की नीयत से पहुंच गई। इसे राज्य की गृहमन्त्री ममता दी ने अपने ऊपर हमला माना और वह उन्हें संरक्षण देने उनके घर पहुंच गईं। सीबीआई पुलिस कमिश्नर को शारदा चिट फंड घोटाले के सम्बन्ध में इस आरोप के साथ धरना चाहती थी कि वह इस मामले की चल रही जांच के सन्दर्भ में उसे पूरे कागजात नहीं दे रहे हैं। दरअसल चिटफंड मामले की गूंज 2013 में होने के बाद राज्य सरकार ने एक विशेष जांच दल श्री राजीव कुमार के नेतृत्व में गठित किया था। इसके बाद यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में गया और 2014 में न्यायालय ने इस मामले की जांच करने का आदेश सीबीआई को दिया। तभी से यह मामला चल रहा है और पिछले तीन साल से सीबीआई श्री राजीव कुमार के साथ इस बारे में खतो-किताबत कर रही है।

राजीव कुमार भी दस बार सीबीआई को खत लिख कर कह चुके हैं कि वह जब चाहे उनके दफ्तर में आकर उनसे पूछताछ कर सकती है और शारदा चिट फंड के मुत्तलिक सारे रिकार्ड देख सकती है। मगर इस बीच इस जांच दल के पुलिस अधिकारियों ने कोलकाता उच्च न्यायालय से सीबीआई से अपने संरक्षण की मांग की अर्जी दाखिल कर दी जिसे उच्च न्यायालय ने स्वीकार करते हुए यह निर्देश दिया कि सीबीआई किसी पुलिस अफसर को अपने दफ्तर में तलब नहीं कर सकती। इन अफसरों की फेहरिस्त में बेशक राजीव कुमार का नाम नहीं है मगर वह उन पुलिस अधिकारियों की टीम के नेता थे जिन्हें उच्च न्यायालय से संरक्षण मिला था। अतः कानूनी तौर पर सीबीआई को पुलिस कमिश्नर पर हाथ डालने से पहले उच्च न्यायालय की इजाजत ही लेनी चाहिए थी। मगर उसने ऐसा करना उचित नहीं समझा। मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी को चुनाव से 61 दिन पहले सीबीआई का इस तरह हरकत में आना राजनीति से प्रेरित लगा और वह स्वयं अपनी राज्य की पुलिस के बचाव में उतर गईं। इसके साथ ही सीबीआई के नए पूर्ण निदेशक सोमवार को ही अपने पद पर बैठने वाले थे जबकि कार्यकारी निदेशक नागेश्वर राव का सीबीआई अफसरों को हुक्म देने का रविवार अन्तिम दिन था।

अब स्थिति यह बन रही है कि ममता दी ने इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति का मुद्दा बना डाला है। जबकि सीबीआई खुद ही राजनीतिक मुद्दा बनी हुई है। क्यों​कि अभी बहुत ज्यादा समय नहीं बीता है जब इसके पूर्व निदेश आलोक वर्मा और कनिष्ठ अधिकारी राकेश अस्थाना के बीच रस्साकशी के चलते उन्हें जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया था। उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से आंशिक राहत मिली मगर उन्हें नियुक्त करने वाली उच्च समिति ने उनका तबादला कर दिया जबकि उनका कार्यकाल केवल 31 जनवरी तक का ही कुछ दिनों का बचा था। आज संसद के दोनों सदनों में भी जिस तरह विपक्षी दलों ने इस मामले पर हंगामा किया है उसने पूरे देश में यही सन्देश दिया है कि सीबीआई लोकसभा चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल में गर्मी पैदा करना चाहती है लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि प. बंगाल को भारत की राजनीति का गंगासागर माना जाता है और ममता बनर्जी इसी गंगासागर की उपजाऊ जमीन से पैदा हुई ऐसी जुझारू जननेता हैं जिन्होंने वामपंथियों के 35 साल के शासन को उखाड़ फैंका था।

उनकी छवि को उनके विरोधी भी चुनौती देना खतरे से भरा मानते हैं। यह सोचना गफलत में रहना है कि वह कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को संरक्षण देने के लिए बिना किसी तकनीकी-कानून की तैयारी के पहुंची होंगी। आज सर्वोच्च न्यायालय में सीबीआई की याचिका पर चली बहस में साफ हो गया है कि सीबीआई को राजीव कुमार के खिलाफ वे पुख्ता सबूत न्यायालय में पेश करने होंगे जिनके आधार पर वह कह रही है कि राजीव कुमार शारदा चिट फंड से जुड़े कुछ अहम सबूत छिपा रहे हैं और यदि एेसा पाया गया तो फिर ममता दी भी राजीव कुमार को नहीं बचा सकतीं।

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