जम्मू-कश्मीर में रमजान के मुबारक मौके पर गृह मन्त्रालय ने अपनी तरफ से युद्ध विराम की घोषणा करके सन्देश दिया है कि घाटी में सक्रिय आतंकवादी अपनी वहशियाना हरकतों से बाज आयें और यहां के लोगों को अमन-चैन से रहने दें। दरअसल यह सन्देश उस नाजायज मुल्क पाकिस्तान की नामुराद फौज और इसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए है जो लगातार कश्मीर में दहशतगर्दों की घुसपैठ कराकर भारतीय नागरिकों की जिन्दगी को दोजख में बदलने की कसम खाये बैठी है।
श्री राजनाथ सिंह ने इन्हीं दोनों मरदूद महकमों को आगाह किया है कि वे जिस मजहब के मानने वाले हैं उसी की सखावतों पर अमल करके अपनी हैवानी हरकतों से बाज आये। इसमें अब कहीं कोई दो राय नहीं हैं कि पाकिस्तान की फौज दहशतगर्दों को पाल कर उनका प्रयोग हमारे जम्मू-कश्मीर में करती है जो यहां कुछ भटके हुए लोगों को अपना शिकार बनाकर उन्हें भारत के विरुद्ध भड़काती रहती है। पत्थरबाजी का जो सिलसिला घाटी में शुरू हुआ है उसके पीछे एेसी ही ताकतों का हाथ है मगर इनका मुकाबला राज्य की पुलिस करने में पूरी तरह समर्थ है और इनके खिलाफ कानून के घेरे में कार्रवाई करने के अख्तियार भी उसके पास हैं। पाकिस्तान के दहशतगर्दों ने इन पत्थरबाजों को अपनी ढाल बनाने की जो तजवीज भिड़ाई है उसका मुकाबला करने के लिए राजनैतिक सत्ताधारी सूबे की सरकार को पक्के इरादे के साथ एेसे पुख्ता और कारगर कदम उठाने होंगे जिससे आम लोगों का यकीन हुकूमत के इरादों में जम सके।
इसके लिए मुख्यमन्त्री महबूबा मुफ्ती को अपनी ही सरकार के बीच सबसे पहले इत्तेहाद पैदा करते हुए एक राय बनानी होगी जिससे हुकूमत में बैठे लोगों की अलग-अलग आवाजें सुनाई न दें। हमने इस राज्य में फौजें इसी वजह से लगा रखी हैं जिससे पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान की कोई भी साजिश सिरे न चढ़ सके। फौज का काम बेशक सरहदों की हिफाजत करना होता है मगर उसका काम संविधान के दायरे में राष्ट्रीय अखंडता को चुनौती देने वाली शक्तियों को मुंहतोड़ जवाब देने का तब पैदा हो जाता है जब इसकी सिफारिश लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार उससे करती है। इसलिए कश्मीर के नागरिक इलाकों में फौजी सरगर्मियां राज्य की सरकार की दरख्वास्त पर ही नब्बे के दशक से शुरू हुई थीं।
बिना शक अब तक यह बहुत लम्बा अर्सा कहा जा सकता है मगर इसका सीधा सम्बन्ध भारत और पाकिस्तान के रिश्तों से है। इस मुल्क के साथ भारत के रिश्ते अगर कभी एक कदम आगे भी बढ़ते हैं तो कुछ ही दिनों में दस कदम पीछे चले जाते हैं। इसकी असली वजह पाकिस्तान की फौज है जिसकी रोजी-रोटी भारत के साथ दुश्मनी बरकरार रहने पर ही चलती है। इसीलिए वह लगातार दहशतगर्दों को अपनी एक बटालियन की तरह भारत के खिलाफ इस्तेमाल करती रहती है और जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को जिन्दा रखने के लिए वहां दहशतगर्द भेज-भेज कर कत्लो-खून का बाजार गर्म रखना चाहती है।
हाल ही में स्कूली बच्चों की एक बस को जिस तरह पत्थरबाजों ने निशाना बनाया और तमिलनाडु के एक युवा पर्यटक को पत्थरबाजों ने अपना शिकार बनाया उससे साफ जाहिर है कि पाक परस्त ताकतों ने अपनी घुसपैठ स्थानीय युवाओं में इस तरह करने की कोशिश की है जिससे पूरे कश्मीरी अवाम को भारत विरोधी दिखाया जा सके जबकि हकीकत इसके पूरी तरह उलट है। आम कश्मीरी भी उतना ही देशभक्त है जितना कि किसी दूसरे राज्य के लोग हैं। इनका भारतीय संविधान और प्रशासनिक व्यवस्था में पक्का यकीन है तभी तो यहां के युवक-युवती उन सभी क्षेत्रों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं जितना कि अन्य किसी राज्य के लोग। यहां के नागरिक आईएएस अफसर से लेकर सैनिक व पुलिस अफसर बनना चाहते हैं और खेलों में भी भारत की तरफ से इसका झंडा ऊंचा रखना चाहते हैं। इस सबसे ऊपर ये पाकिस्तान के बनने तक के खिलाफ रहे हैं।
हालांकि इनके कुछ मसले भारत की सरकार के साथ हैं जिनमें इस राज्य का विशेष दर्जा और यहां के नागरिकों के विशिष्ट अधिकार प्रमुख हैं मगर इसका पाकिस्तान से किसी प्रकार का लेना-देना नहीं है क्योंकि यह मामला उस अनुबन्ध से जुड़ा हुआ है जिसके तहत इस राज्य का अक्टूबर 1947 में भारतीय संघ में विलय हुआ था। निःसन्देह यह राजनैतिक मसला है जिसका हल राज्य के लोगों की रजामन्दी के साथ ही निकलेगा और भारतीय संविधान के दायरे में ही निकलेगा। गृहमन्त्री श्री राजनाथ सिंह का नजरिया इस मामले में शुरू से ही बहुत उदार और सर्वव्यापी रहा है।
रमजान पर इकतरफा युद्ध विराम घोषित करके उन्होंने एक बार फिर अपने इसी नजरिये का मुजाहिरा किया है मगर इसका मतलब यह भी नहीं है कि दहशतगर्द अगर इस फराख दिली का गलत फायदा उठाने की कोशिश करेंगे तो उसका माकूल जवाब नहीं दिया जायेगा। हमारी फौज उनका मुंहतोड़ जवाब देने के लिए आजाद होगी और उसके हाथ बन्धे नहीं होंगे। इसका मतलब यह भी नहीं है कि राजनाथ सिंह की नजर जून-जुलाई में होने वाली अमरनाथ यात्रा पर भी नहीं है।
गर्मियों में बर्फ पिघलने पर हर साल पाकिस्तान जो दहशतगर्द घुसपैठिये भारत के कश्मीर में भेजने की ताक में रहता है उसका मुकाबला करने में भी फौज के हाथ नहीं बन्धे होंगे। अगर कश्मीर के किसी गांव या इलाके के भीतर इन दहशतगर्दों के छुपे होने की पक्की खबर फौज को होगी तो वह उसे वहीं नेस्तनाबूद कर डालेगी मगर अपनी तरफ से कोई खोज अभियान नहीं चलायेगी।