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उत्सव, परम्परा और जोखिम

यद्यपि राजधानी में रामलीलाओं के मंचन और दुर्गा पूजा करने की अनुमति दे दी गई है लेकिन साथ ही पाबंदियां भी लागू की गई हैं। रामलीला पंडालों और दुर्गा पूजा पंडालों के पास मेले, झूले और फूड स्टाल नहीं लगेंगे।

यद्यपि राजधानी में रामलीलाओं के मंचन और दुर्गा पूजा करने की अनुमति दे दी गई है लेकिन साथ ही पाबंदियां भी लागू की गई हैं। रामलीला पंडालों और दुर्गा पूजा पंडालों के पास मेले, झूले और फूड स्टाल नहीं लगेंगे। मानक संचालन प्रक्रिया और दिशा निर्देशों का उल्लंघन करने पर कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति तत्काल रद्द कर दी जाएगी।
गुजरात सरकार ने भी गरबा के लिए गाइड लाइन जारी कर दी है। कोरोना काल में ऐसा डरा सहमा सावन जीवन में पहली बार देखा। इस बार रक्षाबंधन और गणेशोत्सव भी फीके ही रहे। अब खतरनाक वायरस की अपशकुनी काली छाया महापर्व दशहरा और दीपोत्सव पर भी मंडराती नजर आ रही है।
रामलीला का मंचन और दुर्गा पूजा भारत में सांस्कृतिक परम्पराएं हैं। लोग उत्सवों से आनंदित होते हैं। रामलीलाओं के मंचन से देशभर में लाखों लोग जुड़े होते हैं और इनसे इन लोगों का रोजगार जुड़ा होता है, व्यापार और बाजार भी जुड़ा होता है। इस बार जटिलताएं और पेचीदगियां इतनी ज्यादा हैं कि किसी को आश्वस्त नहीं कर रहे। कोरोना वायरस से संक्रमण रोकने के लिए समाज की अलग-अलग राय है।
एक वर्ग संक्रमण को रोकने के लिए बचाव के लिए हर उपाय अपनाने को सही मानता है और दूसरा वर्ग ऐसा है जो रोजाना कमाते और  परिवार का पेट भरते हैं। अब तो साप्ताहिक बाजार भी लगने लगे हैं। फुटपाथ पर लगने वाले बाजारों में भीड़ फिर जुटने लगी है। कुछ लोग बहुत सतर्क हैं लेकिन अधिकांश लोग बेपरवाह हो चुके हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं का निर्वाह हमें बहुत सावधानी से  करना होगा क्योंकि जाड़ों का मौसम शुरू हो चुका है।
मौसम में ठंडक महसूस की जाने लगी है। आने वाले दिनों में ठंड और बढ़ेगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन ने लोगों को त्यौहारों के मौसम में लापरवाही नहीं बरतने की सलाह देते हुए सर्दियों में कोरोना वायरस के अधिक फैलाव के संबंध में आगाह किया है। पहले यह कहा जा रहा था कि कोरोना वायरस पर गर्मियों में प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, ऐसी उम्मीदें भी धूमिल हो गईं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही कह चुका है कि कड़कड़ाती ठंड से कोरोना वायरस के मरने की कोई संभावना नहीं है। ज्यादातर मौसमी विषाणु सर्दियों के मौसम में सक्रिय होते हैं, मसलन दुनिया के कई हिस्सों में सर्दियों में इनफ्लूएंजा का प्रकोप बढ़ जाता है। वहीं भारत और समान जलवायु वाले दूसरे क्षेत्रों में मानसून की विदाई होते ही सर्दियों की आहट शुरू हो गई है, हालांकि कोरोना के मरीजों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन ठीक होने वालों की संख्या भी बढ़ रही है।
वायरस के कारण होने वाली खासकर श्वास तंत्र से संबंधित बीमारियां ठंडे तापमान में बढ़ती हैं। यह ट्रेंड पूरी दुनिया में है। यही वजह है कि फ्लू वायरस के कारण सबसे ज्यादा मौतें सर्दियों में होती हैं। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सर्दियों में कोरोना वायरस विकराल रूप ले सकता है।
पश्चिमी देशों में कड़ाके की ठंड के कारण लोग घरों में ही दुबके रहते हैं, ऐसे में एक ही जगह पर रहने वाले लोगों के बीच वायरस के फैलने का खतरा बढ़ता है। भारत में ऐसा नहीं है। यहां तो लोग सर्दियों में भी घरों से बाहर भी निकलते हैं। यहां के घरों में भी हवा की आवाजाही की बेहतर व्यवस्था है। पब्लिक हैल्थ इंग्लैंड की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस और फ्लू की चपेट में एक साथ आने पर मरीजों की जान को खतरा डबल हो जाता है।
उम्रदराज लोगों और गर्भवती महिलाओं को खतरा भी बढ़ जाएगा। सर्दियों में यदि लोग फ्लू से अपनी रक्षा नहीं कर पाए तो अस्पतालों में मरीजों की संख्या काफी बढ़ जाएगी। फ्लू एक वायरस इंफेक्शन है जो खांसने आैर छींकने से फैलता है। कोविड-19 की बीमारी भी ऐसे ही फैलती है। अब स्कूल और सिनेमाघर भी खुल रहे हैं। बच्चों के लिए सावधानी बरतने का समय आ गया है और परिजनों को भी अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।
सांस्कृतिक परम्पराओं का निर्वाह करते समय अत्यंत सावधान रहना होगा। हमें परिस्थि​तियों के अनुसार ढलने की जरूरत है।  अगर हम बाहर जाते भी हैं तो हमें मास्क पहनने और हाथ साफ रखने, नाक और मुँह को ढंके रखने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा।
अगर आपको हल्का बुखार भी है तो आपको घरों में ही रहना चाहिए। संक्रमण के बाद शरीर में जो एंडीबाडीज बनते हैं वे चार और पांच महीने तक रहते हैं लेकिन यह एंडीबाडीज कितनी सुरक्षा देते हैं यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। सर्दियों में गांव-देहात में संक्रमण रोकना बड़ी चुनौती है। यहां स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी मुख्य तौर पर पांच चुनौतियां हैं। पहली, जनसंख्या के अनुपात में डाक्टरों की कमी, देश के दस प्रतिशत स्वास्थ्य केंद्रों पर डाक्टर ही नहीं हैं। इनमें से कई बिहार और उत्तर प्रदेश में होंगे। अस्पतालों में बेड की कमी है। अस्पतालों की दूरी और परिवहन की समस्याएं भी हैं।
यह सच है कि अर्थव्यवस्था को लम्बे समय तक बंद नहीं रखा जा सकता, हरेक को अपना जीवन चलाना है लेकिन बाहर निकलते समय विशेष एहतियात बरतनी होगी।
उत्सव आनंद तभी देंगे जब आपका स्वास्थ्य सही होगा। देश में वैक्सीन की एक साथ सप्लाई आसान नहीं होगी। सामान्य ढंग से वैक्सीन उपलब्ध करने में भी समय लगेगा। इसलिए जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं रखने का स्लोगन हर समय याद रखें।
-आदित्य नारायण चोपड़ा

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