चाणक्य, ऋषि दयानन्द, लोकमान्य तिलक, स्वामी रामतीर्थ, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि अरविन्द चमत्कारी पुरुष थे जिन्होंने भारतवर्ष में जन्म लेकर अपनी अनन्य विलक्षण बुद्धि और अपराजेय संकल्प के बल पर देश की कायापलट करनी थी। इन सभी का जीवन अत्यन्त विलक्षण और प्रेरणादायक है। भारत तो विश्व का ज्ञान गुरु रहा है। चाणक्य के बुद्धि कौशल को कौन नहीं जानता। स्वामी रामतीर्थ के पीछे तो अमरीका पागल सा हो गया था। अद्वैत वेदांत की व्यावहारिक व्याख्या करके उन्होंने भारतीय संस्कृति को अपने देश में ही नहीं, भारत के बाहर भी उसका प्रचार-प्रसार किया। भगवा वस्त्रधारी स्वामी रामतीर्थ को सुनने विशाल जनसमूह एकत्र हो जाता था।
स्वामी विवेकानन्द अपनी विलक्षण बुद्धि और स्मरण शक्ति के लिये विख्यात थे। वे सैकड़ों पन्नों की किताबें कुछ ही घंटों में पढ़ लिया करते थे। यह सही है कि स्वामी विवेकानन्द की बुद्धि बचपन से ही अन्य बच्चों की तुलना में प्राकृतिक रूप से अधिक कुशाग्र थी लेकिन अपने मस्तिष्क को अधिक कुशाग्र बनाने के लिए वह अभ्यास भी करते थे। इसके लिये एकाग्रता जरूरी है। मस्तिष्क जितना एकाग्र रहेगा हम उतना ही जल्दी किसी भी चीज को याद कर सकते हैं। देश में आज भी ऐसी प्रतिभाएं हैं जो दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं। आजकल तो देश-विदेश में नन्हीं प्रतिभाओं ने अपनी विलक्षण बुद्धि का परिचय देकर सभी रिकार्ड तोड़ डाले हैं। कहते हैं हर किसी में कोई न कोई प्रतिभा छुपी हुई होती है लेकिन प्रकृति कई लोगों को विलक्षण प्रतिभा से संवार कर भेजती है। प्रतिभा ऐसी कि लोग उसकी तुलना चमत्कार से करने लगते हैं। पिछले वर्ष हमने हरियाणा के कौटिल्य पंडित को टीवी पर देखा था।
कौटिल्य किसी भी सवाल का जवाब पलक झपकते ही दे देता था और हर फन में माहिर है। कौटिल्य खेलकूद, स्वीमिंग हर क्षेत्र में विलक्षण प्रतिभा का धनी है। उसकी बुद्धि ऐसी कि गूगल भी हारता नजर आया। उसका दिमागी स्तर औसत बुद्धिमानों के मुकाबले सवा गुणा (प्रखर बुद्धि) का निकला। अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर इस हरियाणवी बच्चे का आईक्यू 134 मापे जाने के बाद कौटिल्य की प्रतिभा निखारने वालों को नई दिशा मिल गई थी। जर्मनी के एक टीवी चैनल ने उसकी एक डाक्यूमैंट्री भी बनाई है। हमारे देश में कौटिल्य जैसे और बच्चे होंगे जो अभी गुमनामी के अंधेरे में हैं। अब ब्रिटेन में भारतीय मूल के 11 वर्षीय छात्र अर्णव शर्मा मेंसा आईक्यू टैस्ट में सर्वाधिक 162 अंक हासिल कर देश का सबसे बुद्धिमान बच्चा बन गया है। उसे महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन और स्टीफन हाकिंग से दो अंक ज्यादा मिले हैं। दक्षिण इंग्लैंड में रीडिंग टाउन में अर्णव शर्मा ने बिना किसी तैयारी के कुछ सप्ताह पहले सबसे मुश्किल टैस्ट के लिए मशहूर मेंसा आईक्यू टैस्ट को पास कर लिया। मेंसा दुनिया की सबसे बड़ी और पुरानी उच्च आईक्यू सोसायटी मानी जाती है।
वैज्ञानिक एवं वकील लांसलॉट लियोनेल वेयर और आस्ट्रेलियाई बैरिस्टर रोलैंड बेरिल ने 1946 में आक्सफोर्ड में इसकी स्थापना की थी। बाद में इस संगठन का प्रचार विश्व भर में हुआ था। पिछले माह ब्रिटेन में ही भारतीय मूल की एक 12 वर्षीय लड़की का दिमाग भी आइंस्टीन और स्टीफन हाकिंग से भी तेज पाया गया। राजगौरी पवार मैनचेस्टर में ब्रिटिश मेंसा आईक्यू टैस्ट में शामिल हुई थी और इसमें उसने 162 अंकों का स्कोर हासिल किया जो 18 वर्ष से कम उम्र के लिए सबसे ज्यादा पाया गया। राजगौरी को प्रतिष्ठित सोसायटी मेंसा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है। ब्रिटेन, अमरीका और अन्य देशों में रहने वाले भारतीय मूल के बच्चों ने स्पैलिंग ओलिम्पियाड हो या स्पैलिंग प्रतियोगिता सब में धाक जमा रखी है।
14 वर्ष के बालक अब नई-नई एप तैयार कर लेते हैं और अपना कैरियर बनाने लग पड़ते हैं। बहुत समय पूर्व जब गुरुकुल शिक्षा प्रणाली होती थी तब हर बालक को 25 वर्ष गुरुकुल में बिताने पड़ते थे। तब उनकी बुद्धि की परीक्षा ली जाती थी। परीक्षा के जरिये गुरु अपने शिष्यों की पहचान करते थे। आज समय बदल गया है। आज के समय की शिक्षा पद्धति मनुष्य को केवल धन कमाने तक का ही ज्ञान दे रही है, इसलिए बच्चों के सर्वांगीण विकास की जरूरत है। शिक्षक भी किताबी ज्ञान देते हैं और माता-पिता भी अपने दायित्व से मुंह मोड़ लेते हैं। माता-पिता भी पैसा कमाने की होड़ में लगे रहते हैं। आज राष्ट्र को जरूरत है प्रतिभाओं की। वैसे तो ज्ञान, बुद्धि कौशल भारतीयों के डीएनए में है। जरूरत है गुमनामी में रह रही प्रतिभाओं को निखारने की। भारत को चाणक्य, कौटिल्य और अर्णव चाहिए।