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चंडीगढ़ की पसंद…

चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में खंडित जनादेश के बाद महापौर पद के लिए खींचतान शुरू हो गई है। जोड़-तोड़ की सियासत भी शुरू हो गई है। खंडित जनादेश के बाद खरीद-फरोख्त का दौर शुरू हो जाता है, ऐसा कोई नया नहीं है।

चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में खंडित जनादेश के बाद महापौर पद के लिए खींचतान शुरू हो गई है। जोड़-तोड़ की सियासत भी शुरू हो गई है। खंडित जनादेश के बाद खरीद-फरोख्त का दौर शुरू हो जाता है, ऐसा कोई नया नहीं है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी पहली बार चंडीगढ़ नगर निगम चुनावों में उतरी और उसने निगम चुनावों में सारे राजनीतिक दलों को पछाड़ कर हैरान कर ​दिया। निगम की 35 सीटों में से उसने 14 सीटें जीत लीं, भाजपा को 12, कांग्रेस को 8 और शिरोमणि अकाली दल को महज एक सीट मिली है। आप पार्टी बहुमत से 5 सीट दूर रह गई लेकिन चंडीगढ़ के मतदाताओं ने भाजपा को भी पूरी तरह खारिज नहीं किया है। जिस तरह राजधानी ​दिल्ली के स्थानीय निकाय चुनावों और विधानसभा चुनावों के परिणामों को लोगों का मूड भांपने का पैमाना जाता है। अगर इसी नजर से चंडीगढ़ नगर निगम चुनावों को पंजाब विधानसभा के आगामी चुनावों का अंदाजा लगाया जाए तो इन चुनाव परिणामों को पंजाब की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत माना जाना चाहिए।
चंडीगढ़ नगर निगम में अब तक परम्परागत रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला रहता था। लोकसभा चुनावों में भी दोनों पार्टियों की टक्कर रहती थी। नतीजों से पहले विशेषज्ञों का मानना था कि आप पार्टी चार-पांच सीटें जीत सकती है लेकिन सभी अनुमान धरे के धरे रह गए। अब ​स्थिति बहुत रोचक है। आप के लिए किसी से भी समर्थन लेने का सीधा असर पंजाब के चुनाव में पड़ेगा। एक सम्भावना यह व्यक्त की जा रही है कि कांग्रेस मुद्दों के आधार पर ‘आप’ को समर्थन दे दे तो आप के 14 और कांग्रेस के 8 पार्षद मिलकर बहुमत का आंकड़ा 22 कर सकते हैं। लेकिन ऐेसा सम्भव नहीं क्योंकि पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और आप पार्टी में तलवारें ​खिंची हुई हैं। विचारधारा के स्तर पर दोनों साथ नहीं आ सकते। अगर कांग्रेस आप को समर्थन करती भी है तो उत्तराखंड और गोवा के चुनावों में भी आप पार्टी मैदान में है और भाजपा और कांग्रेस से टक्कर ले रही है।
चंडीगढ़ नगर निगम में आप पार्टी की विजय के पीछे बड़े कारण भी हैं। 2016 के नगर निगम चुनावों में भाजपा को एक तरफा जीत मिली थी। शहर में 26 में से 20 वार्ड पर भाजपा जीती थी। 5 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं और एक वार्ड में अकाली दल का उम्मीदवार जीता था। नए परिसीमन के बाद सीटों की संख्या 26 से बढ़ाकर 35 कर दी गई। नगर निगम में सीटों के विस्तार के ​लिए कुछ ग्रामीण इलाके नगर निगम क्षेत्र में जोड़े गए। 15 साल से भाजपा नगर निगम में काबिज थी, इस​लिए एंटी इन्कम्बैसी फैक्टर भी काम कर रहा था।
चंडीगढ़ को देश के ‘सिटी ब्यूटीफुल’ का खिताब हासिल था। अब चंडीगढ़ से सिटी ब्यूटीफुल का ताज​ छिन चुका है। देश के स्वच्छता सर्वेक्षण में चंडीगढ़ 66वें नम्बर पर है। नगर निगम में नए जोड़े गए क्षेत्रों में भाजपा को सफलता नहीं मिली। निगम द्वारा पानी के बिल के रेट बढ़ाए जाने का लोगों ने कड़ा विरोध किया था, जिसे वापिस लेना पड़ा था। ऐसे ही अन्य कई फैसलों को जनता के विरोध के चलते वापिस लेना पड़ा था। विकास कार्य नहीं होने का ठीकरा पार्षद अधिकारियों पर फोड़ते रहे। इन्हीं वजहों से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।
जनता के सामने पहले दो ही विकल्प थे भाजपा और कांग्रेस लेकिन इस बार उनके सामने तीसरा विकल्प था। जनता दोनों पार्टियों से ऊब चुकी थी। उसने तीसरे विकल्प को प्राथमिकता दी। अरविन्द केजरीवाल ने चंडीगढ़ में दिल्ली में अपनी सरकार के माडल को पेश किया। उसमें बिजली, महिलाओं को वजीफे की मुफ्त योजनाओं की घोषणा की। दलित मतदाताओं को रिझाने के लिए भी योजनाएं पेश कीं। हालांकि अन्य राजनीतिक दल उनकी मुफ्त की घोषणाओं को हवा में उड़ाते रहे हैं, लेकिन पंजाब में कांग्रेस भी आप पार्टी को पलीता लगाने के लिए ऐसी ही घोषणाएं कर रही है। 
इस बात को नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि चंडीगढ़ के आसपास प्रवासी श्रमिकों और कामगारों और मध्य वर्गीय परिवारों की कालोनियां विकसित हो चुकी हैं। उन्हें आप पार्टी की मुफ्त योजनाओं का माडल पसंद आ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में काफी हद तक किसान आंदोलन का असर भी देखा गया। आम आदमी पार्टी ने इन इलाकों में कांग्रेस और भाजपा दोनों का दबदबा खत्म कर ​दिया। इस तरह अरविन्द केजरीवाल ने अपनी धाक जमा ली है। इससे साफ है कि लोगों का मिजाज बदला है। इसके बावजूद पंजाब विधानसभा अपने आप में उनके लिए चुनौती है। पंजाब में चरणजीत सिंह ​चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने दलित कार्ड खेला है और अकाली दल बसपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है। कैप्टन अमरिन्द्र सिंह की पंजाब लोक पार्टी भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है। इस गठबंधन में ढींढसा की ​शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) भी शा​मिल है। पंजाब में दलित मतों को लेकर समीकरण बहुत बड़ी भूमिका निभाएंगे। जिसके साथ दलित खड़े होंगे विजय उसी की होगी। देखना होगा कि ‘आप’ पार्टी पंजाब में कैसा प्रदर्शन करती है।

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