न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ का कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका में बदलाव और साहसिक फैसलों का युग माना जाता है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के रूप में, उन्होंने संवैधानिक अधिकारों के पक्ष में कुछ सबसे महत्वपूर्ण फैसले दिए, जो न केवल समाज को प्रभावित करने वाले रहे, बल्कि भारतीय न्याय प्रणाली के विकास में मील का पत्थर साबित हुए। व्यक्तिगत स्वतंत्रता, संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक सुधारों के प्रति उनकी दृढ़ता ने न्यायपालिका में एक नई परिभाषा दी। इस लेख में उनके साहसी करियर, विभिन्न कानूनी फैसलों का समाज पर प्रभाव, और करियर में आए संघर्षों पर विस्तार से चर्चा की गई है।
निडर न्यायिक दृष्टिकोण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की वकालत
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का दृष्टिकोण भारतीय न्यायपालिका में निडरता और साहस का प्रतीक रहा। उन्होंने व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता का न केवल समर्थन किया बल्कि इसे संवैधानिक रूप में मजबूत करने के लिए कई बड़े कदम उठाए। 2018 में नाज़ फाउंडेशन मामले में धारा 377 को समाप्त करने का उनका निर्णय इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार उन्होंने समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करते हुए भारतीय समाज में समावेशिता को बढ़ावा दिया। यह फैसला उनके साहसिक दृष्टिकोण का परिचायक है, जो समाज के पारंपरिक मानदंडों को चुनौती देने से नहीं कतराते थे।
उनकी विचारधारा आधुनिक संवैधानिक दृष्टिकोण के अनुकूल रही है, जिसमें वे मानते थे कि कानून को समाज के विकास के साथ बढ़ना चाहिए। उनकी संवेदनशीलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने महिलाओं, एलजीबीटीक्यू+ समुदाय, और अन्य हाशिए पर रह रहे लोगों के अधिकारों को बल दिया। एक और ऐतिहासिक निर्णय में, उन्होंने निजता को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया। यह फैसला डेटा सुरक्षा के संदर्भ में भारतीय नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से डिजिटल युग में जहां डेटा संरक्षण और निजता के मुद्दे केंद्र में हैं।
उनके कार्यकाल में दिए गए फैसलों ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला। उनका सबरीमाला फैसला, जिसमें उन्होंने महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के अधिकार को समर्थन दिया, केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को चुनौती देता था। यह फैसला, जो पितृसत्तात्मक विचारों और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संघर्ष का केंद्र बना, ने समाज में लैंगिक समानता और धार्मिक अधिकारों के मुद्दों पर बहस छेड़ दी। इस फैसले ने न केवल प्रगतिशील सोच का समर्थन किया बल्कि सामाजिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी उठाया।
चंद्रचूड़ के फैसले अक्सर भारतीय समाज के संवेदनशील मुद्दों पर गहरे प्रभाव डालते रहे हैं। उन्होंने इच्छा मृत्यु के अधिकार को मान्यता देते हुए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जो जीवन और मृत्यु के अधिकार के संवैधानिक दृष्टिकोण को प्रतिपादित करता है। इच्छा मृत्यु पर यह निर्णय समाज में जीवन के मूल्य, गरिमा और स्वतंत्रता के अधिकार के विषयों पर एक व्यापक चर्चा का कारण बना।
उन्होंने महिलाओं के समान अधिकारों की दिशा में भी कई बड़े फैसले लिए। मुस्लिम महिलाओं को ‘तलाक-ए-बिद्दत’ (तीन तलाक) से मुक्ति देने के फैसले को प्रगतिशील दृष्टिकोण के रूप में देखा गया। यह निर्णय लैंगिक समानता की दिशा में न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसने महिलाओं के अधिकारों को कानूनी आधार देने में सहायता की। इन फैसलों के माध्यम से चंद्रचूड़ ने दिखाया कि न्यायपालिका समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक हो सकती है और इसे परंपरागत दृष्टिकोण से परे ले जाया जा सकता है।
पेशेवर और व्यक्तिगत चुनौतियां
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के साहसी दृष्टिकोण ने उनके लिए कई चुनौतियाँ भी खड़ी कीं। उनके निर्णयों ने उन्हें बहुसंख्यकवादी और परंपरावादी दृष्टिकोणों से टकराने का कारण बना, जिससे आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। एक समय में उन्हें न्यायपालिका के कार्यक्षेत्र से बाहर जाकर कार्यपालिका के क्षेत्र में दखल देने का आरोप भी झेलना पड़ा, जिससे उनकी न्यायिक सक्रियता पर सवाल उठे। कुछ लोग मानते थे कि उनके फैसले न्यायपालिका के दायरे से बाहर थे, जो न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन को चुनौती देते थे।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का पारिवारिक पृष्ठभूमि भी उनके करियर पर प्रभाव डालता रहा। उनके पिता, पूर्व सीजेआई वाई.वी. चंद्रचूड़, जो अपने समय में एक न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ का योगदान भारतीय न्यायपालिका को एक आधुनिक और प्रगतिशील दृष्टिकोण देने में महत्वपूर्ण रहा। उनकी न्यायिक विचारधारा, संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विस्तार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें न्यायपालिका में एक अलग स्थान दिलाया। उनके फैसले सिर्फ कानूनी मामलों तक सीमित नहीं रहे बल्कि सामाजिक, धार्मिक और व्यक्तिगत अधिकारों के मुद्दों को लेकर समाज में व्यापक चर्चा का कारण बने। उनके कार्यकाल के दौरान, न्यायपालिका में साहसिक निर्णय लेने का एक नया अध्याय जुड़ गया, जिसने भारत में न्यायिक सक्रियता को नए आयाम दिए।
न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ का कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका में एक साहसिक और निडर दृष्टिकोण का प्रतीक रहा है। उनके निर्णयों ने भारतीय समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, लैंगिक समानता और धार्मिक सुधार के मुद्दों पर व्यापक बहस को जन्म दिया। उनके साहसी दृष्टिकोण ने यह सिद्ध किया कि एक न्यायाधीश के रूप में वह केवल कानून के ज्ञाता नहीं थे, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के वास्तविक समर्थक थे। उनकी न्यायिक सक्रियता ने न्यायपालिका को एक नए युग में प्रवेश कराया, जहां न्यायाधीशों का कार्य केवल कानूनी मामलों तक सीमित नहीं, बल्कि समाज को प्रगतिशील और न्यायपूर्ण बनाने का एक साधन भी है।