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चन्नीः एक तीर से कई शिकार

पंजाब में श्री चरणजीत सिंह चन्नी के हाथ में राज्य की बागडोर सौंप कर कांग्रेस पार्टी ने एक तीर से इतने निशाने कर डाले हैं

पंजाब में श्री चरणजीत सिंह चन्नी के हाथ में राज्य की बागडोर सौंप कर कांग्रेस पार्टी ने एक तीर से इतने निशाने कर डाले हैं कि राजनीति के विज्ञान होने के सिद्धान्त की मौजूदा दौर में सम्पूर्ण रूप से पुष्टि होने का प्रमाण जनमानस तक पहुंच रहा है। चन्नी का चुनाव करके कांग्रेस आलाकमान ने श्री राहुल गांधी के नेतृत्व में अपनी बौद्धिक तीक्ष्णता और दूरदर्शिता का परिचय कुछ इस प्रकार दिया है कि राजनीतिक सागर की तलहटी पर पड़ी हुई उनकी पार्टी अचानक सतह पर आकर चारों ओर अपनी आभा बिखेरने लगे। चन्नी के तीर से कांग्रस के भीतर की न केवल गुटबाजी समाप्त होगी बल्कि कद्दावर कांग्रेसी नेता समझे जाने वाले पूर्व मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के पार्टी से विद्रोह करने के विकल्प भी समाप्त हो जायेंगे। श्री चन्नी के दलित वर्ग से आने की वजह से इसकी गूंज राष्ट्रीय स्तर पर होनी स्वाभाविक है जिसकी तरफ इसका खोया हुआ अनुसूचित जाति का वोट बैंक ध्यान देने को मजबूर होगा। वास्तव में इसकी शुरूआत हो भी गई है और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बैठी दलित वर्ग की नेता कही जाने वाली सुश्री मायावती ने इस बारे में तीखी प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर डाली है। इसके साथ ही श्री चन्नी पंजाब जैसे पाकिस्तान से लगे सीमान्त प्रदेश के पहले अनुसूचित जाति के मुख्यमन्त्री होने के नाते इस प्रदेश की राष्ट्र रक्षक छवि के रखवाले की भूमिका निभायेंगे। यह दलितों को स्व. जगजीवन राम के बाद दिया गया ऐसा सम्मान है जिसे कांग्रेस पार्टी ने बहुत कलात्मक तरीके से चित्रित किया है। 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय पाकिस्तान को बीच से चीरने वाली घटना के समय बाबू जगजीवन राम ही देश के रक्षामन्त्री थे। इसके साथ ही आगमी पांच महीने बाद राज्य में आम चुनावों को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने जो सन्देश पंजाब की जनता को दिया है उसके विविध आयाम हैं। 32 प्रतिशत दलित आबादी वाले इस राज्य में इस वर्ग के प्रतिनििध को सिरमौर बनाकर कांग्रेस ने राज्य की सामाजिक विसंगतियों को रसातल में डालने का प्रयास किया है और प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल अकाली दल के सामने सिख समुदाय की समग्रता की चुनौती पेश कर दी है। मगर इससे भी ऊपर श्री चन्नी का चुनाव करके कांग्रेस ने राज्य के हर विपक्षी दल की संभावित आलोचना को हाशिये पर डालने का सफल इंतजाम बांधा है। भारतीय लोकतन्त्र में वंचित के सर्वप्रथम अधिकार की व्याख्या चन्नी के माध्यम से जिस तरह करने की कोशिश की गई है उससे विपक्ष की राजनीति में प्रतिरोधी राजनीतिक विमर्श की समस्या पैदा हो सकती है। पंजाब सामाजिक समरसता के मामले में (केवल आतंकवाद के दौर को छोड़कर) देश का ऐसा अनूठा राज्य रहा है जहां जातिवाद या समुदायवाद की समस्या नाम भर को ही रही है। यहां के लोग उस वैज्ञानिक सोच के साथ लगातार प्रगतिवादी रहे हैं जो महान सिख गुरुओं ने इसमें भरी। हिम्मत और हौंसला हर पंजाबी का जन्मसिद्ध गुण होता है। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि श्री चन्नी उस अपेक्षा पर पूरे उतरेंगे जिसकी अपेक्षा पंजाब के लोगों को है। इसके साथ यह जाहिर है कि अगले साल फरवरी-मार्च में होने वाले पंजाब चुनाव श्री चन्नी के नेतृत्व में ही लड़ेे जायेंगे जिससे नवनिर्वाचित प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के टेढ़े तेवर खुद-ब-खुद ही सीधे हो सकते हैं। कांग्रेस आलाकमान ने चन्नी के बहाने सिद्धू को भी चेतावनी दी है कि मुख्यमन्त्री के खिलाफ वह अपने बगावती तेवरों को नियन्त्रण में रखें और पार्टी के अनुशासित सिपाही की तरह  किसी भी स्तर पर किसी प्रकार का कोई तनाव पैदा न होने दें। क्योंकि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने जाते-जाते भी सिद्धू के खिलाफ वह ‘कार्ड’  खेल डाला है जिसकी काट कांग्रेस को चुनावी पृष्ठभूमि में ढूंढने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। कैप्टन ने एक टीवी चैनल को दिये साक्षात्कार में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान के साथ उनकी व्यक्तिगत मित्रता के चलते और भारत-पाक रिश्तों के सन्दर्भ में सिद्धू को राष्ट्र विरोधी करार दे दिया है। राजनैतिक रूप से कैप्टन का यह बहुत बड़ा बयान है जिसकी तरफ कांग्रेस को खास तौर पर मुख्यमन्त्री के रूप में श्री चन्नी को भी ध्यान देना होगा । जहां तक नये मुख्यमन्त्री का सवाल है तो वह छात्र जीवन से ही राजनीति में रहे हैं । हायर सैकेंडरी स्तर से ही वह छात्र संघ के पदाधिकारी रहे हैं और कांग्रेस में रहते हुए ही एक बार 2007 में पार्टी का चुनाव टिकट न मिलने की वजह से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विजयी होकर अपनी हैसियत भी जता चुके हैं। 2007 से 2010 तक वह कांग्रेस से बाहर रहे और अकाली दल के बागी मनप्रीत सिंह बादल (जो अब कांग्रसे में हैं) उनके निकट सहयोगी रहे। हालांकि कांग्रेस में 2010 में पुनः उन्हें कैप्टन ही लाये मगर पिछले दिनों वह कैप्टन के आलोचक भी रहे। अतः राजनीति उनके रक्त में बसी हुई है और वह जानते हैं कि कौन सी चाल कब चली जानी चाहिए। उनके साथ दो अन्य मन्त्रियों सर्वश्री सुखजिन्दर सिंह रंधावा व ओम प्रकाश सोनी ने भी सोमवार को राजभवन में शपथ ली। संभवतः ये दोनों उपमुख्यमन्त्री होंगे। अतः उनकी सरकार सभी वर्गों के हितों व प्रतिनिधित्व का ध्यान रखते हुए चलेगी और पांच महीने बाद चुनावों की चुनौती का मुकाबला करेगी। वह हर चुनौती में खरें उतरे आज यही शुभ कामनाएं देने का दिन है। 
                    आज इस अन्दाज से बहार आयी 
                    हुए हैं महर-ओ-मह तमाशाई
                    क्यूं न हो दुनिया को खुशी गालिब
                    शाहे दीनदार ने शिफा पाई 

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