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चिदम्बरम और लालू : टूट गए सारे भ्रम

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सियासत का मलबा सड़क पर है, बजबजाहट है, दुर्गंध है। सियासत में नैतिकता ढूंढने के शौकीनों की नाक पर रुमाल है। माइक पर चीख-चीख कर एक-दूसरे की कलई खोल रहे हैं। बड़ों-बड़ों के लिए साख बचाना मुश्किल हो रहा है। अभी केजरीवाल सरकार के भीतर के लोगों ने ही मिस्टर क्लीन की छवि को दागदार बना दिया। इसी घटनाक्रम के बीच पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम और उनके बेटे कार्ति चिदम्बरम के ठिकानों पर सीबीआई और राजद प्रमुख और कभी रेलवे मंत्री रहते हुए प्रबंधन गुरु के तौर पर चर्चित हुए लालू प्रसाद यादव, उनकी बेटी मीसा तथा करीबी लोगों पर आयकर छापों ने कोहराम मचा दिया है। मन में सवाल उठ रहा है कि क्या इस राष्ट्र की किस्मत में ऐसे लोग ही लिखे थे जिन्होंने राजनीति में लोकलज्जा को पूरी तरह त्याग कर अपनी धन पिपाशा शांत की।

इस देश ने उस पद, जिस पर कभी बल्लभभाई पटेल बैठे थे, पर पी. चिदम्बरम को सहन किया। लालू प्रसाद यादव का तो कहना ही क्या, उनका नाम लेते ही बिहार के जंगलराज की याद आ जाती है। चारा घोटाले से लेकर एक हजार करोड़ की बेनामी सम्पत्ति की कहानी अब किसी से छिपी हुई नहीं है। उनके शासन में अपहरण एक उद्योग बन गया था। इस देश की सियासत की बानगी देखिये, अब सुशासन बाबू नीतीश कुमार उन्हें सहन कर रहे हैं और लालू के दोनों बेटे बिहार सरकार में मंत्री हैं। चिदम्बरम पहली बार 1996-98 की पंचमेल खिचड़ी देवेगौड़ा औैर गुजराल सरकारों में वित्त मंत्री बने थे। तब श्री चिदम्बरम दक्षिण भारत के कद्दावर नेता स्वर्गीय जी.के. मूपनार की पार्टी तमिल मनीला कांग्रेस में थे। तब श्री मूपनार की चरण पादुकाएं उठाने वाले चिदम्बरम को देवेगौड़ा और गुजराल सरकार में श्री मूपनार के कहने पर ही वित्त मंत्रालय दिया गया था। इसके बाद से ही पी. चिदम्बरम ने बड़े खेल खेले और भारत की अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड़ शुरू किया। आज कांग्रेस की जो दयनीय हालत हुई है उसके लिए चिदम्बरम भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं।

चिदम्बरम साहब ने देवेगौड़ा और इन्द्रकुमार गुजराल की सरकारों में गजब का कारनामा किया था। उन्होंने भारत के करैंसी नोटों को विदेश में छपवा डाला था। इसकी वजह यह दी गई थी कि भारत में नोट छापने का खर्चा ज्यादा आ रहा था। उनके इस कारनामे को संसद की समिति ने ही गैर-जिम्मेदाराना और एक हद तक राष्ट्रीय हितों के खिलाफ माना था। ऐसा करके उन्होंने भारतीय आर्थिक स्वायत्तता को गिरवी रख दिया था। कुछ लोगों ने तब भी आरोप लगाए थे कि विदेश में जो नोट छपवाए गए उसकी रद्दी का कोई हिसाब नहीं दिया गया। मैं नहीं जानता इस आरोप में कितनी सच्चाई है।
पाठकों को याद होगा पी. चिदम्बरम ने बाल्को कम्पनी के बाकी बचे 49 प्रतिशत सरकारी शेयर वेदांता के मालिक अनिल अग्रवाल की कम्पनी स्टरलाइट को बेचने की साजिश रची थी। तब पंजाब केसरी ने ही आवाज बुलंद की थी और मामला संसद में गूंजा था। चिदम्बरम स्टरलाइट के निदेशकों में से एक थे लेकिन वित्त मंत्री पद सम्भालने से पूर्व उन्होंने निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया था। बाल्को में ही हमारे सभी इसरो मिसाइलों के डिजाइन पड़े हैं।

2008 में चिदम्बरम साहब वित्त मंत्री थे और उनकी जानकारी में सरकारी खजाने की लूट होती रही और वे अपने सहयोगी सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ए. राजा से यह नहीं पूछ सके कि वे देश के खजाने को क्यों लुटवा रहे हैं। राजा साहब तो स्पैक्ट्रम लाइसैंस राशन के चावल की तरह बांट रहे थे और छाती ठोक कर कह रहे थे कि निजी कम्पनियों को सस्ते दामों पर लाइसैंस ‘पहले आओ-पहले पाओ’ के आधार पर देने से गरीबों का ही भला होगा। क्या लूट मची कि एक लाख 76 हजार करोड़ का धन सरकारी खजाने में आने से रुक गया जैसे माल-ओ-असबाब से भरा ट्रक सड़क पर बीचोंबीच लुट जाए। लाख पुलिस रिपोर्ट करें, ट्रक को जहां पहुंचना था वहां पहुंच गया और सभी माल-ओ-असबाब का मजा लूटते रहे। चिदम्बरम साहब साफ-साफ देख रहे थे कि माल लुट रहा है। राजा साहब दस जनवरी को लाइसैंस आवंटित कर देते हैं और चिदम्बरम साहब 15 जनवरी, 2008 क ो खत लिखते हैं कि स्पैक्ट्रम बेशकीमती चीज होती है, इसे सम्भाल कर दिया जाना चाहिए और इसकी पूरी कीमत वसूलनी चाहिए, मगर जो हो चुका सो हो चुका, अब इस मामले को बंद समझा जाए। यह साफ था कि ए. राजा अकेले इतना बड़ा घोटाला नहीं कर सकते थे।

एयरसेल मैक्सिस सौदे की पोल पहले भी खुल चुकी है। अब छापेमारी आईएनएक्स मीडिया समूह को विदेशी निवेश पर क्लीयरेंस देने के मामले में की गई है। आरोप यह है कि उनके बेटे कार्ति चिदम्बरम ने यह क्लीयरेंस दिलवाने की एवज में रिश्वत ली थी। आईएनएक्स मीडिया समूह पर पूर्व मीडिया टायकून पीटर मुखर्जी और उनकी पत्नी इन्द्राणी मुखर्जी का स्वामित्व था जो अपनी ही बेटी शीना बोरा की हत्या के मामले में जेल में बंद हैं। कारनामे तो कार्ति ने भी कम नहीं किए। और क्या लिखूं, कांग्रेस को अपने भीतर झांकना चाहिए। पंडित नेहरू, कामराज, इंदिरा जी की कांग्रेस को आज किन लोगों ने इस हालत में पहुंचाया। अब चिदम्बरम के बारे में कांग्रेस को किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए। कहना पड़ेगा-

”अब तलक कुछ लोगों ने बेची न अपनी आत्मा
ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए।”

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