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चिदम्बरम का तिहाड़ जेल जाना!

देश के पूर्व गृहमन्त्री व वित्त मन्त्री को यदि अपने कुछ कार्यकलापों की वजह से कानून की गिरफ्त में आकर यह दिन देखना पड़ता है निश्चित रूप से वह अफसोसनाक है।

पूर्व वित्त व गृह मन्त्री श्री पी. चिदम्बरम का तिहाड़ जेल जाना वास्तव में स्वतन्त्र भारत की राजनीति का ऐसा कालिमा भरा क्षण है जिसे कोई भी भारतीय याद नहीं रखना चाहेगा क्योंकि इससे राजनीति में भ्रष्टाचार की प्रतिष्ठापना की पुष्टि होती है। आई एन एक्स मीडिया मामले की कानूनी व वित्तीय तहें खुलना अभी बाकी हैं क्योंकि सीबीआई व प्रवर्तन निदेशालय की जांच जारी है परन्तु देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायालय में श्री चिदम्बरम की ओर से रखी गई वैधानिक दलीलें जिस प्रकार ढेर हो रही हैं उससे प्राथमिक स्तर पर श्री चिदम्बरम दोषियों की श्रेणी में खड़े हो गये हैं। 
देश के पूर्व गृहमन्त्री व वित्त मन्त्री को यदि अपने कुछ कार्यकलापों की वजह से कानून की गिरफ्त में आकर यह दिन देखना पड़ता है निश्चित रूप से वह अफसोसनाक है। मगर इसके साथ एक दूसरा व्यावहारिक पहलू भी जुड़ा हुआ है जो कम महत्वपूर्ण नहीं है। लगभग 1980 से राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने वाले श्री चिदम्बरम ने जहां कांग्रेस व इससे बाहर रहते हुए  अपना राजनीतिक कद अपनी बौद्धिक क्षमता के बूते पर बढ़ाया, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अपनी इसी क्षमता का प्रयोग राजनैतिक जगत में अपने कटु आलोचकों की फौज खड़ी करने में किया। 
लोकतान्त्रिक राजनीति में सफल नेता की पहचान इस बात से होती है कि उसके समर्थक या प्रशंसक कितने हैं न कि इस बात से कि उसके विरोधी कितने हैं। इस मोर्चे पर चिदम्बरम लगातार मात खाते रहे और सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बावजूद वह राजनीति के इस आधारभूत नियम को नहीं समझे कि ‘राजनीति का दूसरा नाम मित्र बनाने की कला होती है।’ इसके लिए व्यक्ति को अपने सिद्धान्तों से समझौता करने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि अपनी बात प्रस्तुत करने में सहहृदयता की जरूरत पड़ती है यह वास्तव में दुखद है कि देश के जाने-माने विधिवेत्ता चिदम्बरम को अपने ही मुकदमे में बचाव करने के लिए कानूनी तर्क नहीं मिल पा रहे हैं जिसकी वजह से उन्हें उस तिहाड़ जेल में 14 दिनों के लिए जाना पड़ा है जहां कभी उनके अंगुली के इशारे भर से उथल-पुथल मच जाया करती थी। 
परन्तु भारत संविधान और कानून से चलने वाला देश है और इसके आगे राजा और रंक बराबर तुलते रहे हैं। भ्रष्टाचार के मामले में ही पूर्व प्रधानमन्त्री पी.वी. नरसिम्हा राव को सीबीआई अदालत ने सजा सुनाई थी। यह सांसद रिश्वत कांड था जिसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन संलिप्त थे। सबसे ज्यादा दुखद यह है कि देश का पूर्व वित्त मन्त्री भ्रष्टाचार मामले में कानून के सामने खतावार बन कर खड़ा हुआ है। वित्तीय घपलों में कई प्रकार के तकनीकी पेंच होते हैं जो साधारण नागरिकों की समझ से कभी-कभी बाहर होते हैं। अतः दिल्ली की विशेष अदालत के जज ने सीबीआई व प्रवर्तन निदेशालय द्वारा आईएनएक्स मीडिया मामले में लगाये गये आरोपों को गंभीर मानते हुए श्री चिदम्बरम को 14 दिन की पुलिस हिरासत में भेजने का आदेश दिया। 
इस मामले में धन शोधन का भी आरोप है जो कि इस कम्पनी में विदेशी निवेश को मंजूरी देने के मामले से जुड़ा है। वित्त मन्त्री रहते हुए उन्होंने यह मंजूरी अपने नेतृत्व में काम कर रहे विदेशी निवेश बोर्ड की बैठक में दी थी। इसमें प्रवर्तन निदेशालय ने धन शोधन ( मनी  लांड्रिंग) का आरोप लगाया है। यह आरोप श्री चिदम्बरम की तत्कालीन हैसियत को देखते हुए अत्यन्त गंभीर है। अतः इसकी पड़ताल के लिए जज ने जांच एजेंसियों को अपना काम करने की स्वतन्त्रता दी है परन्तु दूसरी तरफ एक दूसरे  मामले ‘एयर सेल-मैक्सिस डील’ में दिल्ली की ही विशेष अदालत के जज श्री ओ पी सैनी ने उलटे जांच एजेंसियों को झाड़ लगाते हुए श्री पी चिदम्बरम के खिलाफ लगाये आरोपों के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार करने की सूरत को गैर जरूरी बताते हुए उनकी अग्रिम जमानत मंजूर कर ली है। 
इससे स्पष्ट है कि कानून बिना किसी दबाव के अपना काम कर रहा है। इस मामले में जज ने बहुत साफ तौर पर कहा है कि इस डील में श्री चिदम्बरम व उनके पुत्र कार्ति चिदम्बरम पर लगे आरोप पूरी तरह दस्तावेजों पर आधारित हैं जिनमें फेरबदल की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती है। अतः जांच एजेंसियों को इन्हीं के आधार पर अपना मुकदमा बनाना है। तो श्री चिदम्बरम किस प्रकार किसी साक्ष्य या गवाह के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं। अतः उन्हें अग्रिम जमानत देने मंे किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हो सकती। इसके साथ ही जज ने यह भी स्पष्ट किया है कि इसी एयरसेल-मैक्सिस डील मामले में द्रमुक के नेता और एक समय में सूचना व टैक्नोलोजी मन्त्री रहे दयानिधी मारन पर भी आरोप लगे थे और उन पर भी धन शोधन का आरोप था। 
मगर जांच एजेंसियों ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया था तो एक जैसे मामले में ही दो अभियुक्तों को अलग-अलग तरीके से कैसे जांच एजेंसियां देख सकती हैं। इतना ही नहीं न्यायाधीश ने यह लताड़ भी लगाई कि जांच एजेंसियां इस मामले में 2018 के शुरू में मुकदमा दर्ज करने के बावजूद तारीख पर तारीख लेकर इसे आगे टाल रही हैं और जांच का काम नहीं कर रही हैं। इससे सिद्ध होता है कि श्री चिदम्बरम के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के पीछे राजनैतिक बदले की भावना नहीं है बल्कि कानून अपना काम कर रहा है।  
कांग्रेस पार्टी शुरू से ही जिस तरह ‘राजनैतिक बदले’ का राग अलाप रही है  वह उचित नहीं कहा जा सकता परन्तु यह भी अपने आप में हकीकत है कि श्री चिदम्बरम का देश की राजनीति में अपना स्थान रहा है। अतः उन्हें तिहाड़ जेल में भी पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए और उनकी मूल सुविधाओं का ध्यान रखा जाना चाहिए। परन्तु यह देखना न्यायालय का ही काम है क्योंकि उनके खिलाफ कार्रवाई न्यायालय के आदेश पर ही हो रही है। राजनैतिक रंजिश की वजह से उन पर आरोप नहीं लगाये गये हैं। न्यायालय तभी उनके खिलाफ सख्त कदम उठा रहा है जब उसे आरोपों में जान दिखाई पड़ रही है और जिन आरोपों में दम नहीं है उनपर भी निर्देश दे रहा है। अतः हमें स्वतन्त्र न्यायपालिका के न्याय पर भरोसा होना चाहिए।

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