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बच्चों की सुरक्षा और पढ़ाई जरूरी

सब जानते हैं कि कोरोना ने देश और दुनिया को हिला कर रख दिया है। कहने वाले कहते हैं कि जब अच्छी चीज के खत्म होने का समय है तो फिर ये कोरोना जैसी महामारी क्यों नहीं खत्म होगी। वक्त के साथ सबकुछ बदल जाता है।

सब जानते हैं कि कोरोना ने देश और दुनिया को हिला कर रख दिया है। कहने वाले कहते हैं कि जब अच्छी चीज के खत्म होने का समय है तो फिर ये कोरोना जैसी महामारी क्यों नहीं खत्म होगी। वक्त के साथ सबकुछ बदल जाता है। पूरी दुनिया ने विशेषकर भारत ने कोरोना का डटकर मुकाबला किया। इसकी दो लहरों का सामना किया और बड़ा नुकसान झेलकर इसको परास्त भी किया। इसलिए अगर तीसरी लहर से लड़ना है या आगे इसको आने से पहले ही परास्त करना है तो फिर हालात का सामान्य होना भी जरूरी है। क्योंकि हम जब सामान्य स्थिति में होंगे तो ज्यादा मजबूत होंगे। कोरोना को परास्त करने के लिए शारीरिक और मानसिक मजबूती दोनों ही जरूरी है। दिल्ली सरकार ने भी अब अन्य राज्यों की तरह आखिरकार एक सितंबर से स्कूल-कॉलेज और कोचिंग संस्थान खोलने का फैसला कर लिया है तो इसका दिल से स्वागत किया जाना चाहिए। मैं राजनीति से दूर रहती हूं लेकिन अगर राजनीति से जुड़े लोग अच्छा करते हैं तो उसकी प्रशंसा करने में पीछे नहीं हटती। केजरीवाल सरकार ने दो दिन पहले ही कहा है कि एक सितंबर से 9वीं से 12वीं कक्षा तक स्कूल खुलेंगे। हफ्ता-दस दिन तक देखा जायेगा कि बच्चों के स्कूलों में आने का प्रभाव कैसा रहा? इस पहले चरण के अनुभव के आधार पर ही अन्य कक्षाओं को लेकर फैसला लिया जायेगा। यह सचमुच स्वागत योग्य बात है कि केजरीवाल साहब ने यह भी कहा है कि पैरेंट्स की मंजूरी के बिना बच्चों को स्कूल आने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। यदि नौवीं से बारहवीं कक्षा तक हालात सामान्य रहते हैं तो फिर इसके बाद आगे बात बढ़ाई जायेगी। उनकी यह चरणबद्ध तरीके से स्कूल खोलने की तैयारी दरअसल दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा उस एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट का आधार है जिसमें स्कूलों को स्थितियां सामान्य होता हुआ देखकर चरणबद्ध तरीके से खोलने की सिफारिश की गयी। 
हमारा यह भी मानना है कि छोटे बच्चों की सुरक्षा बहुत जरूरी है। हम यहां स्पष्ट करना चाहते हैं कि जहां डेढ़ वर्ष से ज्यादा का इंतजार हमने स्कूलों के मामलों में किया है अब छोटे बच्चों के मामलों में भी जब हालात शत-प्रतिशत सामान्य हो तभी कोई निर्णय लिया जाना चाहिए। बचपन कभी भी घर पर बैठकर आगे की मंजिल तय नहीं कर सकता। हमने अपने बचपन को देखा है। हमारा बचपन नीले गगन के नीचे गलियों-मौहलों में आपसी सद्भावना और प्रेम में बीता है, लिहाजा कमरों में बंद करके बच्चों की मानसिकता को संकीर्ण नहीं बनाया जा सकता। यह ठीक है कि कोरोना की चुनौती के दौरान हमारे टीचर्स की मेहनत के दम पर बच्चों को ऑनलाइन से जोड़ दिया गया लेकिन मैं कई बार सोचती हूं कि जो एक कक्षा में बैठकर पढ़ाई की जाती है, शिक्षकों का एक-एक बच्चे से आमना-सामना और संवाद यह पढ़ाई का सही माध्यम है। यकीनन यह सबकुछ लौटकर आना चाहिए। भगवान ने चाहा और डाक्टरों तथा मेडिकल कर्मियों की सफलता रंग भी ला रही है परंतु जब हम देश-दुनिया से भारत के बारे में तीसरी लहर की आशंका की खबरें सुनते हैं तो फिर मन डर जाता है लेकिन सुरक्षा के साथ और नियमों के पालन के साथ अगर हम आगे बढ़ रहे हैं तो फिर इसका स्वागत किया जाना चाहिए। 
केंद्र सरकार भी इस मामले में हालात पर नजर रख रही है। आने वाले दिन इस मामले में महत्वपूर्ण हैं कि केंद्र सरकार की ओर से पहले ही बारह साल से ऊपर की उम्र वाले बच्चों को वैक्सीनेशन की बात तय हो चुकी है और यह भी कहा जा रहा है कि अक्तूबर तक इस पर काम शुरू हो जायेगा। हमारी सरकार से गुजारिश है कि यह काम खासतौर पर बच्चों का टीकाकरण जितनी जल्दी हो सके किया जाना चाहिए। हालांकि साठ करोड़ भारतीयों को वैक्सीनेशन दी जा चुकी है जो कि अच्छी बात है। भविष्य की सुरक्षा भी वैक्सीन के फार्मूले पर केंद्रित है। 
फिलहाल स्कूल खुल रहे हैं। सुरक्षा, देखभाल और शिक्षा की बुनियादी संरचना वापस होनी चाहिए और बचपन की सुरक्षा और भी जरूरी है। इसी उम्मीद के साथ अब कोरोना जैसी महामारी के बारे में यही कहेंगे कि हाथी निकल गया है पूंछ बाकी है लेकिन सुरक्षा बहुत जरूरी है। सब के लिए विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा बहुत जरूरी है।

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