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बच्चों की मौत या हत्या?

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उत्तर प्रदेश की 22 करोड़ जनता किस दरवाजे पर जाकर अपना माथा फोड़े जब उसके मुख्यमन्त्री के इलाके गोरखपुर में ही छोटे-छोटे बच्चों की यहां के नामी-गिरामी अस्पताल में सिर्फ आक्सीजन की कमी की वजह से मौत हो जाये और राज्य का स्वास्थ्य मन्त्री पूरी बेशर्मी के साथ पुराने सालों के आंकड़े गिना कर यह साबित करने की कोशिश करने लगे कि मौतें तो साल दर साल से अगस्त के महीने में होती रही हैं! ऐसी सरकार को प्रजातन्त्र में महात्मा गांधी के शब्दों में सरकार नहीं बल्कि अराजकतावादियों का जमघट ही कहा जा सकता है मगर देखिये क्या उलटी गंगा बहाई जा रही है कि अस्पताल को आक्सीजन सप्लाई करने वाले व्यापारी पर छापा मारा जा रहा है जिससे गोरखपुर के जीआरडी अस्पताल में व्याप्त भ्रष्टाचार पर पर्दा डाला जा सके। इस व्यापारी की गलती केवल इतनी थी कि वह महीनों से बकाया अपने पैसों की वसूली के लिए अस्पताल को खत पर खत लिख रहा था लेकिन सबसे दर्दनाक यह है कि पूरे उत्तर प्रदेश की सरकार सच को झूठ साबित करने पर जुट गई है और स्वास्थ्य मन्त्री सिद्धार्थनाथ सिंह कह रहे हैं कि आक्सीजन की सप्लाई रुक जाने की वजह से पिछले पांच दिनों में 63 बच्चों की मौतें नहीं हुईं बल्कि किसी और वजह से हुईं। अगर ऐसा ही है तो फिर गैस सप्लाई करने वाली फर्म पर छापा क्यों मारा गया? मगर दीगर सवाल यह भी है कि मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ 9 अगस्त को ही इसी अस्पताल का दौरा करते हैं और इन्तजामों को तसल्लीबख्श देखते हैं?

यह खुद में बहुत बड़ा सबूत है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री का प्रशासन पर कोई ध्यान नहीं है बल्कि इस बात पर ज्यादा जोर है कि 15 अगस्त का जश्न किस तरह मनाया जाता है? क्या कभी योगी सरकार ने यह सोचा है कि उत्तर प्रदेश के लोगों ने उनकी पार्टी को तीन-चौथाई बहुमत क्यों दिया? यह बहुमत जश्न मनाने के लिए नहीं बल्कि गरीब लोगों की तकलीफें दूर करने के लिए दिया गया था। जो मुख्यमन्त्री अपने इलाके के ही सरकारी अस्पताल में आक्सीजन की अविरल सप्लाई नहीं करा सका वह लोगों की तकलीफें किस तरह दूर कर सकता है। सवाल न भाजपा का है न कांग्रेस का और न किसी पुरानी सरकार का बल्कि असली सवाल उस सरकार का है जिसे लोगों ने भारी जनादेश देकर सत्तारूढ़ किया है और इस यकीन के साथ किया है कि उसका निजाम पिछली सरकारों से बेहतर होगा मगर उसी की नाक के तले दो दिन में 30 बच्चे मर जाते हैं और उसका स्वास्थ्य मन्त्री सीनाजोरी दिखा कर यहां तक बयानबाजी करता है कि अस्पताल की व्यवस्था में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं है बल्कि बच्चों की मृत्यु के कारणों की जांच कराई जा रही है।

यह गैर-संजीदगी की इन्तेहा है । ऐसे स्वास्थ्य मन्त्री को एक क्षण भी अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। उसे बर्खास्त होना ही चाहिए क्योंकि यह 63 बच्चों की मृत्यु नहीं बल्कि हत्या है जो अस्पताल के कुप्रबन्धन की वजह से हुई हैं और यह अस्पताल सरकारी है। इस मामले में अस्पताल प्रबन्धन के खिलाफ बाकायदा रिपोर्ट दर्ज करके पुलिस कार्रवाई की जानी चाहिए और पता लगाया जाना चाहिए कि किसके भ्रष्टाचार की वजह से इस तरह की आपराधिक लापरवाही हुई। क्या इस वजह से इस जघन्य ह्त्याकांड पर पर्दा डाला जा रहा है कि मरने वाले अधिसंख्य गरीब बच्चे हैं और उनके माता-पिता में इतनी ताकत नहीं है कि वे अस्पताल की निजामिया कमेटी से लड़ सकें। यदि ऐसा है तो फिर उत्तर प्रदेश के चुनावों में जनता के साथ किये गये उस वादे का क्या मतलब निकलेगा कि भाजपा की सरकार गरीबों की सरकार होगी?  पिछले तीन सालों में गोरखपुर के इस अस्पताल को सैकड़ों करोड़ रुपये की भारी वित्तीय मदद दी गई है। यह सारा पैसा कहां गायब हो गया कि अस्पताल में आक्सीजन की सप्लाई तक के लिए धन मुहैया नहीं कराया गया? वे कौन लोग हैं जो गरीबों को मिलने वाले पैसे पर मौज मार रहे हैं? इस भ्रष्टाचार को मदरसों में 15 अगस्त का जश्न मनाने का हुक्म जारी करके छिपाया नहीं जा सकता है। बेशक सभी हिन्दू-मुसलमानों को अपना स्वतन्त्रता दिवस पूरे जोश-ओ-खरोश से मनाना चाहिए मगर इससे पहले गरीबों के जीवन जीने की सुविधाओं की सुरक्षा की जानी चाहिए।

लोगों के चश्मो चिरागों को बुझाकर हम किस तरह आजादी के दिन पर जश्ने चिरागां कर सकते हैं। गरीब आदमी बड़ी उम्मीद से सरकार के बने बड़े अस्पतालों में जाता है क्योंकि उसे पता होता है कि यहां आकर उसकी देखभाल सरकार करेगी मगर जब सरकार का स्वास्थ्य मन्त्री ही अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़कर यह बताने लगे कि मौतें तो हर अगस्त के महीने में होती आयी हैं, इसमें उसकी क्या गलती तो सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि लोकतन्त्र में यह कौन सा मंजर पैदा हो रहा है जिसमें ‘रहबर’ ही पूरी बेरुखी के साथ ‘रहजनी’ कर रहा है और उलटे ‘लुटने’ वाले को इसका जिम्मेदार बता रहा है। क्या नजारा है कि गुनाहगारों से ‘आशनाई’ की जा रही है और गुनाह को ‘सदाकत’ बख्शी जा रही है। मेरी दरख्वास्त है कि पूरे मामले को राजनीतिक चश्मे से नहीं बल्कि इंसानियत के चश्मे से देखा जाये और गुनाहगार की शिनाख्त की जाये जिससे आने वाले वक्तों में कोई भी इस तरह की हिमाकत न कर सके । सरकार को सिद्ध करना होगा कि गरीबों के लहू का रंग भी लाल होता है। उनकी मौत भी ‘मौत’ होती है, कोई ‘हादसा’ नहीं। योगी को भी सिद्ध करना होगा कि वह उन्हीं गुरु गोरक्षनाथ के शिष्य हैं जिन्होंने कमजोरों की रक्षा की शपथ ली थी।

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