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चीन, पाकिस्तान और भारत

आजादी के बाद से ही भारत की विदेश नीति व रक्षा नीति किसी भी बाहरी देश के प्रभाव से मुक्त रही है और इन मुद्दों पर पूरे देश में राजनैतिक सर्वसम्मति भी रही है। अंग्रेजों की दासतां से मुक्त होते ही भारत की सरकार ने उस साम्राज्यवादी ब्रिटेन के समक्ष यह साफ कर दिया था जिसकी गुलामी में यह देश दो सौ वर्षों तक रहा था। चीन के मामले में 1949 में इसके आजाद होते ही प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने साफ कर दिया था कि ‘तिब्बत’ के मामले में भारत चीन की धींगामुश्ती स्वीकार नहीं कर सकता जिसे लेकर 1962 में चीन ने जो आक्रमण किया था उसकी प्रमुख वजह भी यही मानी गई थी। भारत उस समय गरीब मुल्क था मगर उसने तिब्बत के लोगों के अधिकारों को लेकर किसी भी प्रकार का समझौता करने से इन्कार दिया था। चीन की विस्तारवादी नीति का भारत शुरू से ही प्रखर आलोचक रहा है मगर वर्तमान सन्दर्भों में चीन ने जिस तरह पाकिस्तान के साथ गठजोड़ करके भारत के ऊपर दबाव बनाने की नीति को अपनाया हुआ है उससे उसकी असली नीयत का अन्दाजा आसानी से लगाया जा सकता है लेकिन इससे घबराने की जरा भी जरूरत नहीं है और न ही किसी तीसरे देश के आंकलन में पड़ने की जरूरत है। 

अमेरिका की खुफिया एजेंसी ने पिछले दिनों जो यह कथित रिपोर्ट दी है कि चीन-पाकिस्तान के कुत्सित गठजोड़ को देखते हुए भारत चीन को जवाब दे सकता है, पूरी तरह भारत की रक्षा नीति में हस्तक्षेप की कोशिश की जा सकती है। अमेरिका व चीन की प्रतिद्व​न्द्विता जग जाहिर है और भारत इसके बीच औजार नहीं बन सकता। अमेरिका यदि यह सोच रहा है कि वह अपनी लड़ाई भारत के कन्धे पर बन्दूक रख कर लड़ सकता है तो यह उसकी खामख्याली हो सकती है क्योंकि पूरी दुनिया जानती है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका किस तरह रचनात्मक रही है जबकि रूस पूरी दुनिया में भारत का सच्चा व परखा हुआ मित्र है। अमेरिका चीन के विरुद्ध भारत को एक पक्ष बनाना चाहता है जिससे उसके हित साध सकें। अमेरिका को दुख हो सकता है कि जिस पाकिस्तान को 1951 से ही सैनिक मदद और आर्थिक मदद दे-देकर उसने मजबूत बनाया और उसने इन हथियारों का इस्तेमाल हमेशा भारत के ​खिलाफ ही किया, वह आज चीन की गोदी में जाकर बैठ गया है परन्तु भारत के लिए यह नई बात नहीं है क्योंकि चीनी युद्ध के बाद 1963 में ही पाकिस्तान में अपने कब्जे वाले कश्मीर की पांच हजार वर्ग किलोमीटर की रणनीतिक महत्व की भूमि चीन को भेंट करके उसके साथ नया सीमा समझौता किया था। न तो भारत इतना भोला है और न ही वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी हकीकत से इतने अनभिज्ञ हैं कि चीन की असली नीयत को समझ ही न सकें।

 पाकिस्तान के घर में घुस कर बालाकोट सैनिक कार्रवाई करने का आदेश देने वाले प्रधानमन्त्री मोदी के मन्तव्य को चीन को समझना होगा। चीन भली-भांति जानता है कि आज का भारत 1962 का भारत नहीं है। विदेश मन्त्री एस. जयशंकर यदि यह कहते हैं कि चीन बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था है तो उसका मतलब केवल चीन का वर्चस्व स्वीकार करना भी सीधे-सीधे नहीं होना चाहिए क्योंकि भारत का हिन्द-प्रशान्त समुद्र क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका के साथ समझौता है जिसे क्वाड कहा जाता है परन्तु भारत यह भी जानता है कि युद्ध केवल विनाश ही लाता है अतः कूटनीति के उन सिद्धान्तों को भी समझा जाना चाहिए जिसमें दुश्मन को उसकी हैसियत का अन्दाजा मीठी भाषा में कराने का भी गुण समाहित रहता है। 

हम जानते हैं कि 2014 तक भारत-पाक सीमा पर होने वाली कार्रवाइयों में तत्कालीन सरकार के मन्त्री सीधे पाकिस्तान का नाम लेने से बचते थे। इसकी वजह यह नहीं थी कि भारत को पाकिस्तान से डर लगता था, बल्कि वजह यही थी कि दो देशों के बीच होने वाले सैनिक संघर्ष को जहां तक हो टाला जाना चाहिए। ठीक यही फार्मूला आज भारत-चीन सम्बन्धों को लेकर भी लागू होता है। कूटनीति की उपयोगिता पर यदि चर्चा की जाये तो जंग को टालने में इसका प्रयोग होता है जिससे देश के आर्थिक स्रोतों की रक्षा हो सके क्योंकि जंग के बाद भी तो केवल बातचीत की मेज पर आकर समस्या का हल ढूंढा जा सकता है। इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि सैनिक मोर्चे पर भारत अपनी कमजोरी दिखा रहा है बल्कि कूटनीति के माध्यम से वह विध्वंस को टाल रहा है। आखिरकार भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को हल करने के ​लिए उच्च स्तरीय वार्ता तन्त्र चल ही रहा है जिसका मतलब यह निकलता है कि राजनयिक प्रयासों से युद्ध की किसी भी संभावना को टालने के प्रयास हो रहे हैं मगर इसके साथ ही लद्दाख के मोर्चे पर दोनों देशों की पचास- पचास हजार फौज भी बाकायदा डटी हुई है। उस पाकिस्तान के चीन के साथ जाने का तब क्या मतलब रह जाता है जब इसका प्रधानमन्त्री खुद ही यह कबूल कर ले कि भारत के साथ चार-चार जंगे लड़ने के बाद पाकिस्तान को सिर्फ बर्बादी और मुफलिसी ही नसीब हुई। इसलिए चीन को लेकर किसी भी प्रकार की गफलत में रहने की जरूरत नहीं है कि वह अपनी सामरिक ताकत से भारत को डरा सकता है। अतः अमेरिका की पीठ पर बैठा पाकिस्तान जब भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सका तो पाकिस्तान को अपनी पीठ पर लाद कर चीन भारत का क्या बिगाड़ सकता है।