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चीन ने छेड़ा साइबर युद्ध

चीन भारत को अपना गम्भीर प्रतिद्वंद्वी मानता है। इसलिए हर कीमत पर भारत को कमजोर करने की कोशिश में है और इसके ​लिए हर तरह की जोर आजमाइश भी कर रहा है।

चीन भारत को अपना गम्भीर प्रतिद्वंद्वी मानता है। इसलिए हर कीमत पर भारत को कमजोर करने की कोशिश में है और इसके ​लिए हर तरह की जोर आजमाइश भी कर रहा है। विदेश मामलों के विश्लेषकों का मानना है कि सम्भवतः भारत और चीन के बीच भले ही युद्ध न हो लेकिन शीत युद्ध की गर्मी युद्ध का माहौल तैयार कर सकती है। भारत अब एक बड़ी आर्थिक शक्ति और सामरिक शक्ति के तौर पर उभर चुका है। तभी तो उसे लद्दाख में अपने सैनिकों को फिंगर 8 तक वापिस ले जाने को विवश होना पड़ा। गलवान घाटी की झड़प में अंततः चीन को अपने सैनिकों की मौत का सच स्वीकारना पड़ा, भले ही उसने आधा-अधूरा सच ही स्वीकार किया है।
आज की दुनिया में युद्ध का स्वरूप बदल चुका है। अब युद्ध केवल मैदानी या आकाशीय नहीं रह गए बल्कि अब धूर्त देश दूसरे देश को पछाड़ने के ​लिए इंटरनेट और कम्प्यूटर संजाल से साइबर युद्ध छेड़ रहे हैं। इस मामले में चीन पहले से ही काफी शातिर है। अमेरिका की साइबर स्पेस कम्पनी रिकार्डेड फ्यूचर की रिपोर्ट पर कोई आश्चर्य नहीं। रिपोर्ट में यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि चीन के एक साइबर ग्रुप रेड इको मुम्बई में बिजली फेल होने के लिए जिम्मेदार हो सकता है। यद्यपि अमेरिकी कम्पनी ने कोई ठोस प्रमाण तो नहीं दिए लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के जरिये यह समझाने की को​शिश की है कि चीन किस तरह भारत के लिए खतरा बन सकता है। 
पावर ग्रिड नेटवर्क का संचालन साइबर आधारित हो चुका है। जिस इंटरनेट प्रोग्राम के जरिये पावर ग्रिड को संचालन किया जाता है अगर उसमें कोई देश घुसपैठ कर ले तो वह देश में ​बिजली व्यवस्था को ठप्प कर सकता है। दुनिया भर में कोरोना फैलाने का आरोप झेल चुका चीन किसी भी हद तक जा सकता है। अब साइबर इंटेलिजेंस फर्म सायफार्मा के हवाले से आई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में कोरोना वैक्सीन बनाने वाली दो कम्पनियों सीरम इंस्टीच्यूट और भारत बायोटेक को हाल ही में चीनी हैकरों ने निशाना बनाया। सायफार्मा के अनुसर चीनी हैंकिंग ग्रुप एपीटी-10 ने भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीच्यूट के आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर में खामियों का फायदा उठाकर सेंध लगाई थी। साइबर हमले का मुख्य उद्देश्य बौद्धिक सम्पदा को निशाना बनाना और भारतीय कम्पनियों पर प्रतिस्पर्धी बढ़त हासिल करना है। सीरम इंस्टीच्यूट कई देशों को कोरोना वैक्सीन दे रहा है। एस्ट्राजेनका की वैक्सीन का उत्पादन बड़े पैमाने पर करते जा रहा है। दरअसल चीन द्वारा तैयार की गई कोरोना वैक्सीन भारतीय वैक्सीन के मुकाबले कामयाब नहीं रही, उसके काफी साइड इफैक्ट्स नजर आ रहे हैं।
पिछले वर्ष नवम्बर में माइक्रोसाफ्ट ने भारत, कनाडा, फ्रांस और अमेरिका सहित कई देशों की कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों को साइबर हमले में निशाना बनाए जाने की बात कही थी। अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और भारत सहित कई देश साइबर वार से त्रस्त हैं। भारत पर साइबर हमले कोई नए नहीं हैं। चीनी हैकरों ने पहले भी महत्वपूर्ण मंत्रालयों को निशाना बनाया है। इन हमलों का उद्देश्य संवेदनशील जानकारियां हासिल करना होता है। चीन हैकरों का स्वर्ग है। रूस और पूर्वी यूरोप के देशों की तरह हैकिंग भारी मुनाफा देने वाला खेल बन चुका है। अगला युद्ध साइबर युद्ध होगा क्योंकि अगर आप दुश्मन के नेटवर्क को भेदने और उसे अपने ढंग से चलाने में सक्षम हैं तो बाजी आपके हाथों में होगी। रूस और इस्टोनिया में कुछ वर्ष पहले जब विश्व युद्ध मैमोरियल को लेकर मतभेद हो गए थे तो रूस के सरकारी और गैर सरकारी साइबर योद्धाओं ने पहल कदमी करते हुए इस्टोनिया के इंटरनेट नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया था।
अब सवाल यह है कि अमेरिकी रिपोर्ट द्वारा आगाह किए जाने के बाद भारत खुद को साइबर हमलों से बचाने में कितना कामयाब होता है। आधुनिक युग में हमें दुश्मन को उसी हथियार से लड़ना होगा। अमेरिकी रिपोर्ट आने के बाद भारत को खुद सोच-समझ कर चलना होगा। यद्यपि भारत आईटी शक्ति कहलाता है, परन्तु ब्राडबैंड के इस्तेमाल और इंटरनेट कनैक्शन की संख्या में चीन से पीछे है। भविष्य के खतरों को भांपते हुए ऐसी व्यवस्था बनानी होगी कि कोई भी देश हमारे ऊर्जा तंत्र, रक्षा तंत्र में सेंधमारी न कर सके। दुनिया के सभी विकसित देश अपनी-अपनी साइबर सुरक्षा मजबूत करने में जुटे हुए हैं। चीन हैकर्स ने गत अक्तूबर में महज पांच दिनों के भीतर भारत के पावरग्रिड, आईटी कम्पनियों और बैंकिंग सैक्टर पर 40500 बार साइबर अटैक किया था। बेहतर यही होगा  हम अपने कम्प्यूटर नेटवर्क के ताले मजबूत करें क्युकि सारी संवेदनशील जानकारियां तो इसमें ही संग्रहित हैं।

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