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चीन की अरुणाचल पर नजरें

लद्दाख और अरुणाचल में चीन लगातार भारत को उकसाने वाली हरकतें करने से बाज नहीं आ रहा क्योंकि वह चाहता है कि उकसाने में आकर भारत कोई ऐसी कार्रवाई करे

लद्दाख और अरुणाचल में चीन लगातार भारत को उकसाने वाली हरकतें करने से बाज नहीं आ रहा क्योंकि वह चाहता है कि उकसाने में आकर भारत कोई ऐसी कार्रवाई करे, जिसका फायदा वो उठा सके। ताजा मामला भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की पिछले दिनों की गई अरुणाचल यात्रा से जुड़ा है, जिससे ड्रेगन तिलमिलाया हुआ है। उसने उपराष्ट्रपति की यात्रा पर ऐतराज जताया है। चीन का अरुणाचल के बड़े हिस्सों पर अपना दावा जताना कोई नई बात नहीं। वह पहले भी हमारे नेताओं की अरुणाचल यात्रा पर कई बार विरोध कर चुका है। जबकि भारत ने उसके दावे और आपत्तियों को यह कहकर खारिज किया है कि अरुणाचल भारत का अविभाज्य अंग है और देश का कोई भी नेता उस पर राज्य की यात्रा करने के लिए स्वतंत्र है। इस महीने की शुरूआत में ही चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ की कोशिश की थी, लेकिन भारतीय सैनिकों ने 200 के लगभग चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया था। वर्ष 2009 में मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था तो चीन ने इस पर आपत्ति की थी। फिर वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब राज्य के दौरे पर गए थे तब भी चीन को मिर्ची लगी थीं। दोनों देशों के बीच विवाद की सबसे बड़ी समस्या मैकमोहन रेखा का स्पष्ट रूप से मौजूद ना होना है और चीन इसी का फायदा उठाते हुए अपना दावा ठोंकता रहता है। चीन लगातार धमकियां देकर भारत को यह बताना चाहता है की भारत को केवल देना ही देना है चीन से कुछ लेने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। ड्रेगन दो बार अरुणाचल को लेकर सौदेबाजी कर चुका है। उसकी पेशकश थी तवांग मठ के बदले वह भारत को अक्साई चीन देगा। उसने स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आैर राजीव गांधी को भी ​रिझाने की कोशिश की थी। चीन एक बार फिर इसी सौदेबाजी को लेकर दबाव बना रहा है।
यद्यपि अरुणाचल प्रदेश एक अलग राज्य के रूप में वर्ष 1987 में ही अस्तित्व में आया। उससे पहले 1972 तक इसे नार्थ ईस्ट फ्रंटियर के नाम से जाना जाता था लेकिन 20 जनवरी, 1972 को इसे केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया और इसका नाम अरुणाचल प्रदेश कर दिया गया। उसके बाद पिछले तीन दशक में पूर्व में स्थित अनजान से लेकर राज्य के पश्चिम में स्थित तवांग तक ‘लाइन आॅफ एकचुअल कंट्रोल’ के आसपास 1126 किलोमीटर के इलाके के पास चीन की गतिविधियों के निरंतर बढ़ते रहने की बात सामने आने लगी। 1986 में भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग के पास चीनी सेना की बनाई स्थाई इमारतें देखीं तब पहली बार इस क्षेत्र में भारतीय सेना सक्रिय हुई आैर उसने हाथुंगला पर अपनी तैनाती को मजबूत कर लिया। तब चीन इस कदर बौखला गया और दोनों देशों में युद्ध की स्थिति पैदा हो गई थी। मामला तब शांत हुआ था जब तत्कालीन विदेश मंत्री नारायण दत्त तिवारी बीजिंग पहुंचे। लेकिन बाद के सालों में चीन ने बहुत आक्रामकता दिखाई। उसने​ दिवगंत घाटी में पोस्टर लगाकर उस पूरे इलाके को ही चीन के अधीन बता दिया था।
भारत-चीन सीमा विवाद पर बैठकों की लम्बी यात्रा के दौरान चीन ने अरुणाचल को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिश की। उसने अरुणाचल के लोगों को भावनात्मक स्तर पर भारत से तोड़ना चाहा। उसने स्पष्ट संदेश दिया कि अरुणाचल के लोग चीन के ही नाग​िरक हैं। उसने अरुणाचल के युवाओं को बिना वीजा चीन में प्रवेश देकर यह संदेश दिया था की जब आप चीन के ही नागरिक हैं तो फिर वीजा की क्या जरूरत है।  चीन की नजरें अरुणाचल के तवाऊं शहर में तवांग मठ पर हैं। 15वें दलाई लामा का जन्म यहीं हुआ था। तवांग मठ सबसे प्रमुख बौद्ध स्थल है। चीन तवांग को लेकर​ तिब्बत की तरह प्रमुख बौद्ध स्थलों पर मजबूत पकड़ बनाना चाहता है। 1962 के युद्ध में चीन ने तवांग मठ पर भी कब्जा कर लिया था लेकिन बाद में उसे यहां से वापिस लौटना पड़ा था। तब से ही उसकी नजरें तवांग पर अटकी हुई हैं। दरअसल अरुणाचल के लिए तवांग भारत के लिए सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। अगर भारत की पकड़ उस पर कमजोर हुई तो सामरिक रूप से हमें काफी नुक्सान हो सकता है।
चीन भी जानता है कि भारत की सैन्य ताकत अब कमजोर नहीं है। भारत पहले से कहीं अधिक मजबूत है। अब सवाल यह है कि अगर चीन अरुणाचल पर कब्जा करना चाहता था तो फिर1962 की लड़ाई में वो इससे पीछे क्यों हट गया? हलाकि 62 युद्ध के समय तो भारत काफी कमजोर था। हालांकि बाद में उसने अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत का इलाका कहना शुरू कर दिया। चीन यह भी जानता है कि अरुणाचल के लोग कभी उसके समर्थन में नहीं खड़े हुए। चीन ने भारत के वास्तविक नियंत्रण सीमा के 4.5 किलोमीटर अंदर एक गांव भी बसा लिया है। इसके जवाब में भारत की तरफ से भी सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया जा रहा है। बातें बहुत कड़वी हैं, मैं यहां आर्थिक, वाणिज्य या साफ्टवेयर, हार्डवेयर की बात नहीं करना चाहता। जिस धूर्त्तता और चतुराई के साथ भारत के साथ व्यापार बढ़ाया और भारतीय बाजारों का फायदा उठाया उसको समझने की जरूरत है। ड्रेगन को जवाब उसी की भाषा में देना होगा। भारत को अपनी सामरिक शक्ति को और बढ़ाना होगा ताकि हम किसी भी साजिश का मुंह तोड़ जवाब दे सकें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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