प्रधानमन्त्री गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार अब दीपावली और छठ पूजा तक के लिए नवम्बर महीने तक कर दिया जायेगा। इसके तहत गरीब परिवारों को प्रति माह प्रति व्यक्ति पांच किलो गेहूं या चावल व प्रति परिवार एक किलो चना दिया जायेगा। राष्ट्र के नाम सम्बोधन में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज यह घोषणा की। हालांकि प्रधानमन्त्री चाहते तो वह चीन के मामले पर उसकी सेनाओं द्वारा लद्दाख में भारतीय क्षेत्र में किये गये अतिक्रमण की खबरों से भी धुंध छांट सकते थे जिसकी अपेक्षा भारतवासियों को बहुत ज्यादा थी मगर दोनों देशों के उच्च सैनिक अफसरों के बीच आज चुशूल (लद्दाख) में चल रही वार्ता के चलते कदाचित संशय की स्थिति बनी रही हो। इसके बावजूद प्रधानमन्त्री चाहते तो राष्ट्र को सुरक्षा मुद्दे पर स्पष्ट दिशा दे सकते थे। जाहिर है कि यह उच्च स्तरीय विचार-विमर्श कूटनीतिक व सामरिक स्तर का फैसला था। इस मुद्दे पर देश की आम जनता की प्रधानमन्त्री से अपेक्षाएं बहुत बड़ी हैं जिसे सरकार नजरअन्दाज नहीं कर सकती, लेकिन कल ही सरकार ने चीन के 59 मोबाइल एपों पर प्रतिबन्ध लगा कर साफ कर दिया है कि लद्दाख में चीनी सेनाओं की हरकत नागंवार ही नहीं बल्कि असहनीय है।
सूचना क्रान्ति के इस दौर में इंटरनेट व स्मार्ट मोबाइल फोन प्रत्यक्षतः किसी दूसरे देश की मुखबिरी कर सकते हैं। इनमें एप की भूमिका अहम हो सकती है और इससे किसी भी देश के लोगों का डाटा कब्जाया जा सकता है जिसके विश्लेषण से उस देश की सामाजिक व आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया जा सकता है। इसके बावजूद ऐसे कदम सांकेतिक ज्यादा माने जाते हैं, परन्तु इनसे यह तो आभास मिलता ही है कि सरकार चीन को न केवल सामरिक मोर्चे पर खतरा मान रही है बल्कि सामाजिक मोर्चे पर भी दुश्मन मानती है। चीन ने हमारे सामाजिक जीवन में किस हद तक घुसपैठ कर ली है, यह उसका भी प्रमाण है। यह इस बात का भी सबूत है कि किसी देश को भीतर से कमजोर करने के लिए दूसरा देश किस तरह सिलसिलेवार ढंग से उसके समाज की बुनावट को प्रभावित करता है।
इस सन्दर्भ में मुझे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री विसंट चर्चिल का वह कथन याद आता है जो उन्होंने अमेरिका के बारे में कहा था। अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बम फैंके जाने पर चर्चिल ने एक सवाल के जवाब में कहा था ‘‘हम अमेरिका को बहुत बुद्धिमान मानते थे मगर उसने जापान पर बम फैंक कर उसे तबाह करना चाहा। ऐसा करने की उसे जरूरत नहीं थी। अमेरिका यदि भारत से कुछ फिरकापरस्त जापान में बसा देता तो वह खुद ही तबाह हो जाता। ये फिरकापरस्त जापान के समाज में भारत की तरह ही जातिवाद फैला कर उसे तबाह कर देते।’’ अतः किसी भी देश के समाज में घुसपैठ करने के क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं इसकी तरफ चर्चिल ने बहुत बेबाकी के साथ इशारा किया था।
चीन के सन्दर्भ में स्पष्ट है कि वह आर्थिक तौर पर ही भारत के लोगों की अपने ऊपर निर्भरता नहीं बढ़ा रहा है बल्कि सामाजिक तौर पर भी इसका विस्तार कर देना चाहता है। इस मायने में चीनी एप पर प्रतिबन्ध कारगर माना जायेगा किन्तु यह समस्या का निदान नहीं है। समस्या का निदान सामरिक व कूटनीतिक स्तर पर ही होगा क्योंकि वह भारत की नियन्त्रण रेखा में चार स्थानों पर घुसपैठ किये बैठा है। उसे उसकी हद में फैंकना भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। मोबाइल एपों पर प्रतिबन्ध लगा कर हम उसकी सामाजिक क्षेत्र में घुसपैठ रोक सकते हैं परन्तु आर्थिक मोर्चे पर चीन की बढ़त लगातार जिस तरीके से भारत में होती रही है उसे एक झटके में रोकना इसलिए असंभव है क्योंकि विश्व व्यापार संगठन के नियम इसमें आड़े आते हैं जिसके भारत व चीन दोनों ही सदस्य हैं।
अतः सामरिक मोर्चे पर ही हमें चीन से इस तरह निपटना होगा कि वह हमारी भूमि में घुसने की जुर्रत बार-बार न करे। इसका हल कूटनीतिक मोर्चे के रास्ते से निकाल कर उसे उसकी हैसियत में लाना होगा। इस मोर्चे पर फ्रांस का समर्थन भारत को मिला है। रक्षा मन्त्री राजनाथ सिंह से भारत यात्रा पर आई हुई फ्रांस की रक्षा मन्त्री ने अपनी बातचीत में चीन के मुद्दे पर भारत को समर्थन देने की प्रारम्भिक घोषणा की है। जिससे यह साफ होता है कि भारत का पक्ष वजनदार है।
मूल प्रश्न यह है कि चीन की हठधर्मिता को तोड़ा जाये और इस तरह तोड़ा जाये जिससे वह बार-बार अतिक्रमण करने की हिमाकत न करे। क्या यह मजाक है कि पिछले वर्ष ही चीन ने 76 बार नियन्त्रण रेखा का अतिक्रमण किया और अब वह बाकायदा गलवान घाटी में घुसा हुआ है और पेगोंग-सो झील में अतिक्रमण करके हेलीपैड बना रहा है तथा दौलतबेग ओल्डी के इलाके में भी पैर पसारे हुए है। उस पर संजीदा बात यह है कि वह भारत के आर्थिक जगत से लेकर सामाजिक क्षेत्र तक में भी घुसपैठ कर चुका है। इसका निदान तो निकालना ही होगा।