लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

चीनी सैनिकों की पोजीशन?

भारत के लोग राष्ट्रीय सुरक्षा और देश की सीमाओं की सुरक्षा को लेकर स्वतन्त्रता के समय से ही बहुत अधिक संवेदनशील रहे हैं।

भारत के लोग राष्ट्रीय सुरक्षा और देश की  सीमाओं की सुरक्षा को लेकर स्वतन्त्रता के समय से ही बहुत अधिक संवेदनशील रहे हैं। अतः भारत-चीन की सीमा पर क्या हो रहा है? इस प्रश्न का उत्तर संसद का सत्र शुरू होने तक टाला नहीं जा सकता। राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर आज की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ही सबसे ज्यादा उग्र और भावुक रही है और पूर्व में कांग्रेस की सरकारों को इस मुद्दे पर कठघरे में खड़ा करने का हर संभव प्रयास करती रही है। अतः स्वाभाविक तौर पर आज की विपक्षी पार्टी कांग्रेस यदि उसकी भाषा बोल रही है तो इसे राजनैतिक लोकतन्त्र के लोकाचार के रूप में ही देखा जायेगा। लद्दाख की गलवान नदी घाटी और पेंगांग सो झील के इलाके में चीनी सेना का भारतीय सीमा के भीतर घुस आना प्रत्येक भारतवासी को परेशान कर रहा है मगर इस मामले में भारत की सैनिक सामर्थ्य को कम करके आंकना भारी भूल होगी परन्तु कूटनीतिक मोर्चे पर यह भारत की कमजोरी का प्रतीक है। चीन की नीयत के बारे में भारतीय सेना भली-भां​ति परिचित है, इसी वजह से वह इन दोनों सीमा क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण कर रही है जिससे किसी भी अप्रिय वारदात को टाला जा सके, परन्तु कूटनीतिक मोर्चे पर दोनों देशों के बीच जो वार्ता तन्त्र पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा से काम कर रहा है उसका परिणाम क्या निकला है। केवल सीमा समस्या सुलझाने के लिए ही दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय तन्त्र स्थापित है जिसमें भारत की तरफ से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीन की तरफ से इसी कद के मन्त्री भाग लेते हैं।
इस कार्यदल की बीस से अधिक बैठकें हो चुकी हैं मगर अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। नये विदेश मन्त्री एस. जयशंकर के आने के बाद से दोनों देशों के राज प्रमुखों के बीच भी औपचारिक व अनौपचारिक वार्ताएं हो चुकी हैं परन्तु चीन की हठधर्मिता ज्यों की त्यों जारी है। पिछले बीस सालों में एेसा पहली बार हो रहा है कि भारतीय सीमा के भीतर चीनी सेनाएं लगभग एक महीने से जमी पड़ी हैं। चीन के साथ हमने कई समझौते ​किए हैं जो इस बात का प्रमाण हैं कि दोनों देश एक-दूसरे की भौगोलिक अखंडता का सम्मान करेंगे। इसके बावजूद चीन कभी अरुणाचल में तो कभी लद्दाख में तो कभी उत्तराखंड में सैनिक व कूटनीतिक बर-जोरी दिखाता रहता है। यह सनद रहना चाहिए कि मनमोहन सरकार के पहले कार्यकाल में जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश के लिए प्रधानमन्त्री द्वारा विकास पैकेज दिये जाने पर आपत्ति की थी और अरुणाचल के लोगों को अलग प्रकार का वीजा दिये जाने का फैसला किया था तो विपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण अडवानी ने लोकसभा में कहा था कि कश्मीर की तरह ही भारत की संसद में यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया जाना चाहिए तो सत्ता पक्ष की ओर से तब सदन के नेता श्री प्रणव मुखर्जी ने दो टूक जवाब दिया था कि क्या भारत की संसद को अपने ही किसी राज्य के बारे में अपना भाग होने का प्रस्ताव पारित करना पड़ेगा!
भारत के संविधान में भारत की भौगोलिक सीमाएं नियत हैं और वास्तविकता यह है कि भारत-चीन के बीच कोई अधिकृत सीमा रेखा नहीं है क्योंकि चीन अंग्रेजों द्वारा खींची गई मैकमोहन रेखा को इसके उद्गम काल से ही स्वीकार नहीं करता है। अतः मोटे तौर पर दोनों देशों के बीच यह सहमति है कि सीमा क्षेत्र के जिस इलाके पर जिस देश का प्रशासन रहा है वह उसी का समझा जाये। श्री मुखर्जी जैसे स्टेट्समैन (राजनेता) ने बहुत दूर की कौड़ी फेंकी थी, क्योंकि 1950 में जब चीन ने तिब्बत को कब्जाया था तो पं. नेहरू ने तिब्बत से लगे पूरे नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) इलाके में भारतीय प्रशासन को बहुत चुस्त- दुरुस्त कर दिया था और 1947 तक अक्साई चीन का इलाका उस लद्दाख में आता था जो जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा था। इतिहास तो यह है कि इससे लगते चीनी प्रान्त शिनजियांग  में कश्मीर के महाराजा गुलाब सिंह ने 1860 के करीब  शहीदुल्ला किला (जिसे शाई दुल्ला कहा जाता है) बनवाया था जहां से महाराजा की फौज पूरे अक्साई चीन इलाके की रखवाली करती थी परन्तु 1892 तक आते यह स्थिति बदल गई थी और चीन ने इसे शिनजियांग प्रान्त के साथ अपने कब्जे में ले लिया था मगर अक्साई चीन तभी से लद्दाख का हिस्सा रहा जो अब पाक अधिकृत कश्मीर में है मगर 1963 में पाकिस्तान के फौजी शासक जनरल अयूब ने कारोकोरम दर्रे से लगते पूरे इलाके को चीन को तोहफे में दे दिया। अतः श्री प्रणव मुखर्जी ने कूटनीति के माध्यम से चीन को उसके ही घर में घेरने की पूरी व्यूह रचना कर डाली थी।
लोकतन्त्र में सरकार एक सतत् प्रक्रिया होती है और विदेशी सम्बन्धों के मामले में हर अगली सरकार अपने से पिछली सरकार द्वारा किये गये वादों को निभाती है क्योंकि ये समझौते दो सरकारों या दो प्रधानमन्त्रियों अथवा दो व्यक्तियों के बीच नहीं बल्कि दो देशों के बीच होते हैं। अतः मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में जब  सलमान खुर्शीद 2012 से 2014 तक विदेश मन्त्री रहे तो उस दौरान एक बार उत्तराखंड की सीमा पार करके चीनी सैनिकों ने हमारे इलाके में अतिक्रमण करके तम्बू आदि गाड़ लिये तो संसद में हंगामा भी हुआ। सलमान खुर्शीद ने बहुत शान्ति के साथ बताया कि हमारी सीमा के भीतर उन्होंने कुछ तम्बू आदि गाड़ लिये थे तो हमने भी उधर जाकर कुछ  टिन आदि से निर्माण कर लिया है। नतीजा यह हुआ कि चीनी सैनिक अपनी तरफ चले गये और भारतीय सैनिक अपने इलाके में आ गये। राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में कांग्रेस, कम्युनिस्ट या भाजपा का सवाल नहीं होता बल्कि देश का सवाल होता है। चीन की हठधर्मिता का सम्बन्ध कूटनीति से ज्यादा है क्योंकि सैनिक संघर्ष का अर्थ है भारत के विशाल बाजार से हाथ धो लेना और अपनी अर्थव्यवस्था को धक्का देना जिसे चीन कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। अतः चीन के साथ हमारी असली लड़ाई कूटनीति के मोर्चे पर ही हो रही है।  हमारी सीमाओं का अतिक्रमण करके वह केवल अपनी धौंस में ही हमें लेना चाहता है। इसका तोड़ तो  सलमान खुर्शीद की तरह जनाब एस. जयशंकर ही निकालेंगे और रक्षामन्त्री राजनाथ सिंह से सलाह-मशविरा करके किसी नतीजे पर पहुंचेंगे। विदेश और रक्षा मन्त्रालय दोनों एक-दूसरे के कोटिपूरक होते हैं , खास तौर पर पड़ोसी देशों के सन्दर्भ में परन्तु राजनाथ सिंह को भी देशवासियों को यह तो बताना पड़ेगा कि सीमा पर चीनी सैनिकों की हरकत कैसी और कहां है, मतलब उनकी पोजीशन क्या है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

19 + 13 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।