लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव

राज्यों में स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण को लेकर विवाद पैदा होते रहे हैं।

राज्यों में स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण को लेकर विवाद पैदा होते रहे हैं। दरअसल आरक्षण कोटे की सीटों को तय करने के लिए  राज्य सरकारों को नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है। अतीत में स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर महाराष्ट्र सरकार को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। मध्य प्रदेेश और कर्नाटक को भी इस मुद्दे ने काफी परेशान किया था। उत्तर प्रदेश सरकार के लिए यह राहत की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण के साथ चुनाव कराने की अनुमति दे दी है और राज्य चुनाव आयोग को इस संबंध में अधिसूचना जारी करने का निर्देश भी दे दिया गया है। अब उत्तर प्रदेश में निकाय चुनावों का शोर शुरू हो जाएगा और सभी राजनीतिक दल इसमें पूरे दमखम के साथ जुट जाएंगे। राज्य में विपक्षी दल सपा, बसपा और जाति आधारित राजनीति करने वाले छोटे-छोटे दल ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर योगी सरकार और भाजपा को ​निशाने पर लिए हुए थे। अब उनके तरकश से यह मुद्दा खत्म हाे गया है। दूसरी ओर भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान को लेकर ओबीसी के अपमान का मुद्दा उछाला हुआ है। 
भाजपा ओबीसी अपमान के मुद्दे को चुनावी लाभ में बदलना चाहती है। स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा को इस मुद्दे का लाभ मिलता दिखाई दे रहा है। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पिछले साल दिसम्बर में शहरी ​स्थानीय निकाय चुनावों पर योगी सरकार की मसौदा अधिसूचना को रद्द कर दिया था और ओबीसी के लिए आरक्षण के बिना चुनाव कराने का आदेश दिया था। अदालत ने कहा था कि राज्य सरकार स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण के लिए  सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारत ‘ट्रिपल टैस्ट’ औपचारिकता को पूरा करने में विफल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 4 मार्च, 2021 को अपने एक फैसले में विकास किशन राव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में ट्रिपल टैस्ट को रेखांकित किया था। ट्रिपल टैस्ट में तीन शर्तें रखी गई थीं।
राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और प्रभावों की समकालीन कठोर अनुभवजन्य जांच करने के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना करना, आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्थानीय निकायवार प्रावधान किए जाने के लिए  आवश्यक आरक्षण के अनुपात को नि​र्दिष्ट करना, किसी भी मामले में ऐसा आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कुल सीटों के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष को एक राजनीति हथियार मिल गया था और उन्होंने आरोप लगाने शुरू कर दिए थे कि योगी सरकार पिछड़ी जातियों की विरोधी है और भाजपा अब दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी। लगभग सभी विपक्षी दलों में पिछड़ी जातियों का हितैषी बनने की होड़ शुरू हो गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल 28 दिसम्बर, 2022 को पांच सदस्यीय आयोग का गठन किया था। ​जिसके बाद 75 जिलों में​ पिछड़ी जाति के लोगों का सर्वे किया गया। इस रैपिड सर्वे में पिछड़ी जाति के आरक्षण को लेकर पूरी जानकारी दी गई। इस दौरान उत्तर प्रदेश चुनाव में भी जाति को लेकर दोबारा से सर्वे किया था। इस मामले में आयोग ने इसी वर्ष 7 मार्च को अपनी रिपोर्ट दी थी। इसी ​िरपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया था। इससे पहले निकाय चुनाव को लेकर पिछड़ों का आरक्षण तय करने के ​लिए गठित उ.प्र. राज्य समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग ने निकायवार ओबीसी की आबादी की राजनीतिक स्थिति के आकलन के आधार पर आरक्षण की सिफारिश की थी। इसके लिए 1995 के बाद हुए निकायाें के चुनाव परिणामों को आधार बनाया गया। प्रदेश के सभी निकायों के परीक्षण के बाद आयोग ने 20 से 27 प्रतिशत की रेंज में अलग-अलग निकायों के ​िलए अलग-अलग आरक्षण देने की सिफारिश की। 
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य ओबीसी आयोग की​ रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और राज्य में शहरी निकाय चुनाव कराने की अनुमति प्रदान कर दी। उत्तर प्रदेश में अब 760 नगर निकायों के चुनाव होने हैं। इसमें मेयर, नगर पालिका, नगर पंचायत अध्यक्ष और सभासद की सीटें शामिल हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले ही कहते रहे हैं कि निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ ही होंगे। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सीटों के आरक्षण में बड़ा उल्टफेर तय माना जा रहा है। इसमें मेयर से लेकर अध्यक्ष पद की सीटों पर बदलाव देखने के लिए मिल सकता है। बदले समीकरणों में कई सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित होनी तय हैं। ऐसे में इन सीटों पर दावेदारी कर रहे सामान्य जाति के उम्मीदवारों को निराशा हाथ लग सकती है। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने ओबीसी आयोग के काम करने के तरीके पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है लेकिन चुनावों की अधिसूचना जारी होते ही सभी अन्य बातें गौण हो जाएंगी। इतना​ निश्चित है कि निकाय चुनाव काफी दिलचस्प होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 − 1 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।