”एक दिन दरिन्दे की नजर छोरी पर पड़ी,
खूब भागी लेकिन सब व्यर्थ हो गया,
अचानक इज्जत आबरू सब खो गया,
छोरी की इज्जत के टुकड़े-टुकड़े कर दिए,
जीवन में नये जख्म पैदा कर दिए,
मानो उस मासूम चिडिय़ा के पंख कतर दिए,
मानवता का पल-पल अपमान होगा,
अब कैसे नारी में आत्मसम्मान होगा,
छोरी बस चीखते रह गई,
मुझे जीने दो, मैं जीना चाहती हूं,
मुझे जीने दो, मैं खिलना चाहती हूं।”
जिनेन्द्र पारख की पंक्तियां उस बालिका का दर्द हैं जो हवस के भूखे भेडिय़े का शिकार बनी। हिमालय की शिवालिक की पहाडिय़ों की तराई में बसे चण्डीगढ़ शहर को डिजाइन और निर्माण के कारण समूचे विश्व में भारत के पहले नियोजित शहर के रूप में जाना जाता है। यहां हिन्दू देवी चण्डी को समर्पित एक प्राचीन मन्दिर है और शहर का नाम भी चण्डीगढ़ इसीलिए रखा गया था। आधुनिक शिल्पकला के वैभव से सम्पन्न इस शहर में बसने का सपना पंजाब, हरियाणा, हिमाचल के अधिकतर युवाओं में देखा जाता है। शहर के लोगों को सभ्य माना जाता है। वे प्रकृति प्रेमी और कला के दीवाने हैं। दुनिया में चण्डीगढ़ को अपनी सुन्दरता, सफाई और हरियाली के कारण सिटी ब्यूटीफुल कहा जाता है। सभ्य माने गए शहर में पिछले कुछ अर्से से असभ्य घटनाएं हो रही हैं। सिटी ब्यूटीफुल के खिताब पर घिनौनी वारदातों से दाग लग रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस समारोह से घर लौट रही आठवीं कक्षा की छात्रा से दिनदहाड़े सैक्टर-23 के चिल्ड्रन ट्रैफिक पार्क में बलात्कार की घटना ने फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह कैसी आजादी है? एक तरफ लोग आजादी और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जश्न मना रहे थे, नेता लोग ध्वजारोहण कर रहे थे, दूसरी तरफ पार्क में बच्ची की अस्मत लुट रही थी। सार्वजनिक अवकाश होने के कारण सड़कों पर आवाजाही भी कम थी और पार्क भी सुनसान था। इससे पूर्व स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर चण्डीगढ़ के सैक्टर-36 में हिसार की रहने वाली युवती को अगवा करने का प्रयास किया गया। इससे पहले वर्णिका कुंडू छेड़छाड़ प्रकरण को लेकर चण्डीगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश में गुस्सा है। कई जगह आक्रोश फूटा भी। वर्णिका कुंडू ने जिस साहस के साथ परिस्थितियों का सामना कर आरोपियों को जेल के भीतर पहुंचाया, इसके लिए उसके जुझारूपन की प्रशंसा करनी पड़ेगी। अगर वह अपनी आवाज बुलन्द नहीं करती तो वारदात दब जाती। शर्मसार कर देने वाली बात यह है कि जहां बच्ची के साथ रेप हुआ, उसके पास ही सैक्टर-17 में जोर-शोर से स्वतंत्रता दिवस की परेड हुई थी। जानकारी मिलने के बाद एसएसपी समेत सभी पुलिस वाले पार्क में पहुंच गए परन्तु क्या फायदा, अब खंगालते रहो सीसीटीवी फुटेज।
वर्णिका कुंडू मामले में विकास बराला और उसके दोस्त की गिरफ्तारी के बाद पुलिस भी कुछ दिन मुस्तैद रही लेकिन बाद में फिर सब कुछ सामान्य हो गया। वर्णिका कुंडू मामले के बाद जहां ऐसी आवाजें उठीं कि लड़कियों को रात में बाहर नहीं निकलना चाहिए तो सिस्टम पर भी सवाल उठे। चण्डीगढ़ तो महिलाओं के लिए सुरक्षित माना जाता था लेकिन स्कूली बालिका से बलात्कार तो दिन के उजाले में हुआ। सिस्टम में बैठे लोग इतने लाचार हो चुके हैं कि कोई भी उनकी लाचारी का लाभ उठाकर किसी बच्ची को नोच डाले। एक आईएएस अधिकारी, जिसने व्यवस्था में कई साल गुजारे, वह व्यवस्था के सामने खड़ा हो सकता है। क्या स्कूली बालिका का पिता व्यवस्था के विरुद्ध खड़े होने का साहस कर सकेगा? यह सवाल फिर सामने है। नौकरशाही पिछले दशकों से पूरी तरह सड़ चुकी है, उसकी दीवारें ढहने लगी हैं।
घटनाओं की दरिन्दगी समझने के लिए उपमाएं खोजने की जरूरत नहीं। ये हमारे ही बीच के लोग हैं जिनकी तुलना जानवरों से की जा सकती है। 12 साल की बालिका से बलात्कार को अपराधी भी जस्टीफाई नहीं कर सकता। लड़की वयस्क होती तो बहुत सी बातें हवा में उछाली जातीं और मीडिया उसे लपक लेता। क्या सभ्य माने गए चण्डीगढ़ के कुछ लोग मानसिक रूप से बीमार हो चुके हैं। क्या उन्हें बड़े इलाज की जरूरत है। ऐसा लगता है कि इन्सानों के समाज में हमारे आसपास कोई इन्सान नहीं, कुछ और ही रह रहे हैं। आखिर बच्चियां कहां से निकलें, जहां वह सुरक्षित रहें क्योंकि हर चौराहे पर, हर सड़क पर, गली के नुक्कड़ पर भेडिय़े खड़े हैं जो झपट कर उन्हें नोच लेना चाहते हैं। जब सिस्टम ही लाचार हो तो क्या किया जाए!