चुनाव के दौरान मुठभेड़ें

चुनाव के दौरान मुठभेड़ें

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जम्मू-कश्मीर विधानसभा के तीसरे चरण के मतदान से पहले कुलगाम और कठुआ में चल रही मुठभेड़ों में एक पुलिसकर्मी की शहादत और एसएसपी समेत 6 जवानों के घायल होने तथा मुठभेड़ों में दो आतंकियों के मारे जाने की खबरों से साफ है कि सुरक्षाबलों के तमाम दावों के बावजूद राज्य में आतंकवाद की जड़ें पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पा रही हैं। चुनावों के दौरान कड़े सुरक्षा प्रबंधों के बावजूद आतंकवादी घात लगाकर सुरक्षा बलों के काफिलों पर हमला कर देते हैं। इस तरह पिछले 10 वर्षों में सेना के जवान, फौजी अफसर और आम नागरिक मारे जा चुके हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि सुरक्षा बलों ने आतंक पर लगाम लगाने के लिए कड़े कदम उठाये हैं लेकिन जम्मू संभाग में आतंकी हिंसा की बढ़ती घटनाएं चिंता का ​िवषय हैं। पुलगाम और कठुआ के बिलावर इलाके में जहां कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की रैली प्रस्तावित थी उसके कुछ ही दूरी पर मुठभेड़ शुरू हुई। मुठभेड़ के चलते प्रियंका गांधी के हैलीकाप्टर को उतरने की इजाजत नहीं दी गई इसलिए उनकी सभा नहीं हो पाई।
इजराइली हमले में ​िहज​बुल्ला प्रमुख नसरल्ला और उनकी बेटी की मौत पर जम्मू-कश्मीर में प्रदर्शन किए गए। बडगाम की सड़कों पर महिलाओं और बच्चों समेत बड़ी संख्या में लोग हिजबुल्ला चीफ की मौत पर विरोध-प्रदर्शन में शामिल हुए। श्रीनगर के पुराने शहर आैर राज्य के कई इलाकों में भी ऐसे विरोध-प्रदर्शन हुए। नसरल्ला की मौत पर पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने उसे शहीद करार देते हुए रविवार को होने वाली अपनी सभी चुनावी रैलियां रद्द कर दी। एक आतंकी सरगना का म​िहमा मंडन जम्मू-कश्मीर की फिजाओं में फिर से जहर घोलने का ही काम करेगा। महबूबा मुफ्ती के बयान कट्टरपंथी ताकतों का ​िफर से ध्रुवीकरण कर सकता है। जम्मू-कश्मीर इस मामले में पहले ही काफी संवेदनशील है। पहले दो चरणों के चुनाव में ​िजस तरह से कश्मीरी आवाम ने बढ़-चढ़कर मतदान किया है उससे पाकिस्तान में बैठे आतंकी सरगना परेशान हो उठे हैं। ऐसी खुफिया रिपोर्ट पहले ही आ चुकी है कि आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ऐसे युवाओं की पहचान कर रहा है जिन्हें आतंकी संगठन से जुड़ने के ​िलए प्रे​रित किया जा सके। ऐसे युवाओं को ढंूढने के बाद आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देेने के ​िलए उन्हें हथियार, गोला-बारूद और विस्फोटक पहुंचाए जा रहे हैं। आतंकवादियों ने घाटी में सुरक्षा बलों के ताबड़तोड़ एक्शन के बाद अपना ध्यान जम्मू क्षेत्र में लगा दिया है। उन्होंने अपनी रणनीति बदलकर सुरक्षा बलों का ध्यान भटकाने का प्रयास किया है।
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद दावा किया जाता रहा है कि आतंकी कुछ ही इलाकों में सिमट गए हैं लेकिन अब उन इलाकों में भी दहशतगर्दों की मौजूदगी दर्ज होने लगी है जहां पहले प्रायः शांति हुआ करती थी। सरकार का दावा है कि आतंकियों को वित्तीय मदद पहुंचाने वालों पर शिकंजा कसा जा चुका है। सड़क के रास्ते पाकिस्तान से होने वाली तिजारत पहले ही रोक दी गई थी जिससे सीमा पार से आने वाले हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति पर रोक लगने का दावा किया जाता है। सीमा पार से घुसपैठ की कोशिशें भी काफी हद तक नाकाम कर दी जाती हैं। फिर भी घाटी में दहशतगर्दों के पास साजोसामान और वित्तीय मदद पहुंचाई जा रही है और वे लगातार सक्रिय हैं तो इसकी क्या वजह है, जानने का प्रयास होना ही चाहिए।
आतंकियों के पास दूरबीन से लैस एम-4 कार्बाइन, चीनी स्टील कोर बुलेट और अन्य आधु​िनकतम हथियार पहुंच रहे हैं। यह वहीं हथियार हैं जो ​अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा छोड़े गये हैं। यही हथियार पा​िकस्तान के रास्ते जम्मू-कश्मीर में पहुंच रहे हैं। चीन पाकिस्तान को हथियार देता है इससे स्पष्ट है कि आतंकी घटनाओं का पाकिस्तान से कनैक्शन है। सुरक्षा बलों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में मौजूदा आतंकी या तो पूर्व पाकिस्तानी सेना के नियमित सैनिक हो सकते हैं या फिर ये गुरिल्ला वार में प्रशिक्षित आतंकवादी हैं। हम घने जंगलों में अत्याधुनिक हथियारों से लैस युद्ध-प्रशिक्षित आतंकवादियों से लड़ रहे हैं। एम-4 कार्बाइन को 1980 के दशक में अमेरिका में एम-16 ए-2 असॉल्ट राइफल के सॉर्ट वर्जन के रूप में डेवलप किया गया था। यह अमेरिकी सेना का प्राइमरी इन्फेंट्री वेपन और सर्विस राइफल थी। उन्होंने कहा कि चीनी स्टील कोर गोला-बारूद एक कारतूस है। इसमें एक स्टील कोर होता है जो धातु के जैकेट या कोटिंग से घिरा होता है, जिसमें क्षमता होती है कि वो किसी भी चीज को भेद दे।
लश्कर के आतंकी फिर से सक्रिय हो रहे हैं। आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए स्थानीय लोगों का भरोसा जीतना जरूरी उपाय माना जा सकता है। मगर वास्तविक्ता तो यह है कि आतंकियों को स्थानीय स्तर पर भी सहयोग मिल रहा है।​ विरोध-प्रदर्शनों के दौरान उग्र स्थानीय युवाओं की पहचान की जाती है। फिर उन्हें आतंकवादी बना दिया जाता है। यह भी सच है कि पिछले 10 वर्षों के दौरान प्रशासन का स्थानीय लोगों से संवाद बन ही नहीं पाया। अब जबकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया जारी है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य में बनने वाली नई सरकार कश्मीरियों से सीधा संवाद कायम करेगी और उनका भरोसा हासिल करने का प्रयास करेगी। यह तभी संभव होगा जब नई सरकार बहुमत हासिल कर दृढ़ता से काम करें और लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़े।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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