फ्रांसीसी कम्पनी दासोल्ट से खरीदे जाने वाले 36 लड़ाकू विमानों के सौदे की भारत के लेखा महानियन्त्रक की लेखा-जोखा रिपोर्ट मोदी सरकार के कार्यकाल में संसद के आखिरी सत्र के आखिरी दिन जिस तरह रखी गई है, उसका होने वाले लोकसभा चुनावों में कितना शोर रहेगा, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा मगर इतना निश्चित है कि इस मुद्दे पर सरकार ने विपक्ष विशेष रूप से कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी को सटीक उत्तर देने का प्रयास किया है। लेखा महानियन्त्रक ने अपनी रिपोर्ट के सबसे अंतिम भाग में लिखा है कि 36 लड़ाकू विमानों की खरीद पिछली मनमोहन सरकार द्वारा इन्हीं विमानों के खरीद मूल्य से लगभग 2.86 प्रतिशत कम पड़ी मगर लेखा महानियन्त्रक ने मनमोहन सरकार द्वारा कुल 126 विमानों को खरीदने की प्रक्रिया के दौरान तय किये गये प्रति विमान मूल्य की कीमत को मोदी सरकार द्वारा खरीदे जाने वाले कुल 36 विमानों की कीमत से तुलना का आधार क्या पैमाना बना कर किया है, इसका स्पष्ट तार्किक उल्लेख करने से रिपोर्ट बच रही है। इसके बावजूद लेखा महानियन्त्रक ने अपनी जिम्मेदारी इस तरह निभाने की कोशिश की है जिससे इस मामले से संशय के बादल हट सकें।
पूरा मसला इस वजह से ही खड़ा हुआ क्योंकि मनमोहन सरकार ने 2014 तक के अपने कार्यकाल के दौरान कुल 126 लड़ाकू राफेल विमानों को खरीदने की प्रक्रिया पूरी नहीं की जिसमें से केवल 18 विमान ही तैयार हालत में लेकर शेष 108 विमान भारत में ही सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लि. के सहयोग से बनाये जाने थे। इसके लिए दासोल्ट कम्पनी उसे टैक्नोलोजी का हस्तांतरण करती और भारत भविष्य में आधुनिकतम लड़ाकू विमानों का उत्पादन अपने बूते पर ही करने में सक्षम हो पाता।
लेखा महानियन्त्रक ने अपनी पेश ताजा रिपोर्ट में इस मुद्दे को कहीं से भी नहीं छुआ है और इसका लेखा-जोखा अलग से दूसरी रिपोर्ट में करने की अपेक्षा की जा रही है। अतः राफेल प्रकरण पर ताजा रिपोर्ट को राफेल सौदे का प्रथम चरण कहा जा सकता है जिसमें विमान के मूल्य और खरीदारी प्रक्रिया की समीक्षा की गई है। इस रिपोर्ट ने मोदी सरकार को क्लीन चिट देते हुए वायुसेना को भी निशाने पर लेते हुए कहा है कि इसने भी अपनी जरूरतों को यथा समय वस्तुनिष्ठ रूप से उल्लिखित करने में मुस्तैदी नहीं दिखाई और बार-बार परिवर्तन किया जिसकी वजह से खरीद प्रक्रिया के दौरान तकनीकी व मूल्य आकलन में प्रतियोगी आधार पर दिक्कतें आयीं।
संभवतः यह आधार उसने पुराने सौदे की शर्तों को तोड़कर सीधे 36 तैयार विमानों को खरीदने का बनाया है। इसमें असली सवाल यह आता है कि क्या अप्रैल 2015 में जब स्वयं श्री नरेन्द्र मोदी ने नये सौदे की घोषणा पेरिस यात्रा के दौरान की थी तो 2008 में मनमोहन सरकार द्वारा 126 विमानों की खरीद के लिए चलाई गई प्रक्रिया के तहत निश्चित विमानों के मूल्य मंे दासोल्ट ने किसी प्रकार की वृद्धि करने के संकेत दिये थे। जाहिर है कि 36 विमानों का सौदा सितम्बर 2016 में हुआ और इस दौरान खरीदारी के लिए जरूरी सारी औपचारिकताएं पूरी की गईं मसलन केन्द्रीय मन्त्रिमंडल से लेकर सुरक्षा समिति व रक्षा खरीद समिति की मंजूरी आदि जबकि विमानों के तकनीकी मूल्यांकन का कार्य मनमोहन सरकार के दौरान ही पूरा हो चुका था तो घपला कहां और कैसे हुआ? स्पष्ट है कि इस मुद्दे पर जमकर राजनीति हो रही है और दोनों ही पक्ष (नरेन्द्र मोदी व राहुल गांधी) अपनी-अपनी दलीलें पेश कर रहे हैं मगर लेखा महानियन्त्रक को इस राजनीति से कोई मतलब नहीं हो सकता और उनहें अपना कार्य संविधान के प्रति जवाबदेह रहते हुए ही पूरा करना था, जो उन्होंने किया भी है। बेशक संसदीय लोकतन्त्र में संसद से ऊपर कोई नहीं होता है क्योंकि इसके पास संविधान के तहत ही सुविचारित सुनिश्चित प्रक्रिया अपनाने के बाद राष्ट्रपति के विरुद्ध तक महाभियोग चलाने का अधिकार रहता है।
संसद के इस अधिकार को कहीं भी चुनौती नहीं दी जा सकती और संसद को यह अधिकार कोई और नहीं बल्कि इस देश का आम आदमी ही अपने एक वोट का अधिकार प्रयोग करके देता है क्योंकि वही अपनी मनपसन्द की राजनैतिक सरकार बनाता है। यही वजह है कि राफेल मुद्दा लगातार आम जनता के बीच अवधारणा निर्मित करने का जरिया बना हुआ है। इसी के चलते कभी सरकार का पलड़ा भारी हो जाता है, तो कभी विपक्ष का मगर लेखा महानियन्त्रक की रिपोर्ट इस प्रकार की किसी भी कवायद से ऊपर मानी जाती है। बेशक इसमें फिलहाल हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लि. का जिक्र तक नहीं है, मगर मोदी सरकार को मूल्य के मामले में यह क्लीन चिट तो उसी प्रकार दे रही है जिस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने इसी सौदे पर दायर एक याचिका में दी थी। हालांकि तब तक लेखा महानियन्त्रक की रिपोर्ट संसद में पेश नहीं हुई थी और सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि वह विमान की कीमत के विवाद में नहीं जा रहा है क्योंकि यह कार्य लेखा महानियन्त्रक का है जिनकी रिपोर्ट की तसदीक संसद की लोकलेखा समिति करती है लेकिन अब तो लेखा महानियन्त्रक ने भी मोदी को क्लीन चिट दे दी है तो रहस्य क्या बचा है।