लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

प्राणों के लिए चाहिए स्वच्छ प्राण वायु

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के शुरूआती चरण में देश के पर्यावरण पर काफी सकारात्मक असर पड़ा था। गंगा और यमुना निर्मल हो गई थीं। आसमान भी स्वच्छ और नीला दिखाई दे रहा था। 

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के शुरूआती चरण में देश के पर्यावरण पर काफी सकारात्मक असर पड़ा था। गंगा और यमुना निर्मल हो गई थीं। आसमान भी स्वच्छ और नीला दिखाई दे रहा था। घनी आबादी वाले पंजाब के जालंधर शहर से भी हिमालय की पहाड़ियां नजर आने लगी थीं। लॉकडाउन के दौरान लोगों काे सांस लेने के लिए शुद्ध हवा मिली। ऐसी शुद्ध हवा महानगरों में तो मिलती ही नहीं थी। ऐसा लगता था कि प्रकृति ने अपना संतुलन फिर से कायम कर लिया है। लॉकडाउन पर्यावरण के ​लिए वरदान साबित हो गया था। नैनीताल स्थित नैनी झील प्रदूषण मुक्त हो गई थी। पानी इतना साफ हो गया था कि काफी गहराई तक मछली की हलचल देखी जा सकती थी। पर्यावरणविद् प्रकृति को  देख कर आनंदित हो रहे थे। लोग कहने लगे थे-
‘‘लॉकडाउन ने प्रदूषण को दी मात
स्वच्छ हवा-नीला आसमान जीत रहा है दिल।’’
भारत के शहरों में वायु की गुणवत्ता में भी लगातार सुधार हो रहा था। देश के कुल शहरों में से 103 में अच्छी वायु गुणवत्ता दर्ज की गई। पिछले वर्ष देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर में अचानक से जहरीली धुंध की चादर छा गई थी। इस दौरान प्रदूषण भी काफी बढ़ गया था, यहां तक कि वायु गुणवत्ता भी बेहद गम्भीर आपात स्थिति तक पहुंच गई थी। यहां प्रदूषण और जहरीली हवा के चलते स्कूल बंद करने पड़े थे। कई फ्लाइटें भी डायवर्ट करनी पड़ी थीं।
लॉकडाउन के अनलॉक होते ही प्रदूषण सूचकांक फिर से खतरे की ओर बढ़ने लगा है क्योंकि भारत पहले ही उन देशों की सूची में है जो वायु प्रदूषण के अलावा जल और भूमि के प्रदूषण से भी सर्वाधिक ग्रस्त है। इसी माह के पहले हफ्ते के बाद दिल्ली के कई क्षेत्रों में एयर क्वालिटी इंडेक्स को देखा गया जहां हवा की गुणवत्ता सौ से डेढ़ सौ के बीच रही, जो इसके संवेदनशील होने का प्रमाण देता है। इसी तरह लखनऊ, मुम्बई और दक्षिण भारत में भी हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो रही है। मुम्बई के वर्ली क्षेत्र में एयर क्वालिटी इंडेक्स 824 तक पहुंच गया था। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि अब हवा की गुणवत्ता तेजी से खराब होगी।
अब अगले महीने शीत ऋतु की शुरूआत हो जाएगी और खरीफ की फसल की कटाई के बाद खेतों में पराली जलाए जाने का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा। रबी की फसल के लिए खेत तैयार किए जाते हैं और खेतों में पराली को साफ किया जाता है। ठंड के मौसम में आमतौर पर प्रदूषण बढ़ जाता है। उत्तर भारत के राज्यों को प्रदूषण कम करने के उपायों पर अभी से काम करना होगा। ​किसानों को खेतों में पराली जलाने से रोकना होगा। इस संबंध में किसानों और आमजन को जागरूक बनाया जाना चाहिए कि उत्तर भारत की हवा में खतरनाक रसायनों और धूल की मात्रा सबसे अधिक है। ऐसी स्थिति में कोरोना वायरस और ज्यादा फैल सकता है। इससे संक्रमण का एक और दौर शुरू हो सकता है। राज्य सरकारें खेतों को रबी की फसल की बुवाई के लिए तैयार करने के लिए​ किसानों को नवीनतम प्रौद्योगिकी वाली मशीनें उपलब्ध कराएं या फिर किसानों को सबसिडी दें। किसानों की समस्या यह है कि मशीनों के किराये बहुत ज्यादा हैं और श्रम बहुत महंगा है। मजदूरों से खेत तैयार कराने में काफी समय भी लगता है। प्रवासी मजदूरों की अभी भी कमी है। राज्य सरकारें चाहें तो किसानों को मुआवजा भी दे सकती हैं।
अब एक और खतरा सामने दिखाई दे रहा है। कोरोना की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान वाहन, उद्योगों और निर्माण गतिविधियों के साथ सारे कामकाज ठप्प रहे लेकिन कोरोना काल के दौरान प्लास्टिक उत्पादों का इस्तेमाल बढ़ गया। कोरोना काल में महामारी से बचने के लिए प्लास्टिक के दस्ताने, चश्मे, फेस शील्ड धड़ाधड़ा बनाए गए। होम डिलीवरी का चलन बढ़ने से पैकिंग में भी प्लास्टिक का इस्तेमाल होने लगा। प्लास्टिक कचरा भी प्रदूषण का बड़ा कारण है। पीपीई किट भी प्लास्टिक से बनाई जा रही है। लॉकडाउन खुलने के बाद लोग लापरवाही बरतने लगे हैं। सड़कों के किनारे मास्क, पीपीई किट, दस्ताने इत्यादि फैंक रहे हैं, जो मानव जीवन के लिए खतरनाक है। देश भर में जमा हो रहे प्लास्टिक कचरे से निपटना भी बड़ी चुनौती है। प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग के मामले में भारत के पास ठोस प्रबंधन है ही नहीं। प्लास्टिक के अलावा मेडिकल कचरा भी जमा हो रहा है। अगर लोगों ने स्वयं प्रदूषण नियंत्रण उपायों को नहीं अपनाया तो हालात भयंकर हो सकते हैं।
कोरोना महामारी से पहले भारत को प्लास्टिक मुक्त बनाने का अभियान चला रखा था लेकिन प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ने से पर्यावरण काे काफी खतरा पैदा हो गया। समुद्रों और नदियों में जितना प्लास्टिक और इस्तेमाल किये गए मास्क पहुंच चुके हैं उन्हें नष्ट होने में वर्षों लग जाएंगे। आगे फेस्टीवल सीजन आ रहा है। प्रकृति की रक्षा करना हमारा धर्म होना चाहिए। हर नागरिक को अपनी और दूसरों की जान की रक्षा के लिए जिम्मेदारीपूर्ण आचरण करना होगा। अगले तीन-चार माह काफी खतरनाक हैं इसलिए बचाव का हर ढंग अपनाया जाना ही चाहिए। मानव के प्राणों की रक्षा के लिए स्वच्छ प्राण वायु की जरूरत होती है। अगर स्वच्छ वायु नहीं ​मिली तो भावी पीढ़ी के फेफड़े कमजोर हो जाएंगे। स्वच्छ प्राण वायु कैसे मिलेगी, इसके लिए सभी को एकजुट होकर काम करना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 + 1 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।