कोयला ऐसा खनिज पदार्थ है जिसने बड़ों-बड़ों को अर्श से फर्श तक पटका है। सरकारें आती-जाती रहीं लेकिन कोयला राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के लिए सोना ही साबित होता रहा। पुरानी कहावत है कोयले की दलाली में मुंह काला। कोयले की आग में सरकारें भी झुलसती रहीं। कोयला घोटाले की आंच मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक पहुंचती रही है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोडा की कहानी तो बहुत दिलचस्प रही। उन्हें भी सीबीआई की विशेष अदालत ने चर्चित कोयला घोटाले में सजा सुनाई थी। एक आदिवासी मजदूर के बेटे मधु कोडा का राजनीति में आने और शिखर तक पहुंचने का सफर ऐसी सपनीली दुनिया से होकर गुजरा जिस पर पहली नजर में लोगों को यकीन ही नहीं होता था। एक मजदूर से विधायक बनना, पहली बार में मंत्री फिर मात्र 35 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी सम्भालना। जिस शख्स का बचपन घोर गरीबी में बीता हो, उनके पिता एक आदिवासी किसान थे। मधु कोडा जल्द से जल्द एक अमीर आदमी बनना चाहता था। उसने कुछ दिन कोयला खदानों और इस्पात उद्योग में काम करने के दौरान वहां मौजूद भ्रष्टाचार और अकूत दौलत को काफी नजदीक से देखा था। मुख्यमंत्री बनते ही कोल ब्लाक आवंटन में घोटाला कर दिया। राजनीतिज्ञ और नौकरशाह आपस में मिल गए थे। मधु कोडा पर 5 हजार करोड़ के घोटाले का आरोप लगा और उन्हें अदालत ने सजा सुना दी थी। देश में जितने भी घोटाले हुए उनमें राजनीतिज्ञ, नौकरशाहों तथा माफिया की साठगांठ से हुए। अटल जी की सरकार के वक्त कोयला घोटाला, पैट्रोल पम्प आवंटन घोटाला और विनिवेश घोटाला संसद में गूंजते रहे तो मनमोहन सिंह सरकार में स्पैक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला और हैलीकाप्टर खरीद में घोटाला संसद में उछले। कोयले के आवरण में सड़ांध पनप चुकी थी। कुछ सड़ांध से बच कर निकल गए और कुछ अभी भी फंसे हुए हैं। पूर्व कोयला राज्यमंत्री संतोष बगरोडिया भी इसकी जद में आए थे। पूर्व की सरकारों की नीतियों और कार्यक्रमों में पारदर्शिता का अभाव रहा। इसी कारण भ्रष्टाचार काफी ऊपर तक बढ़ गया। यह स्थिति क्यों आई? प्रश्नचिन्ह बिखरे पड़े हैं। ऐसा नहीं है कि इन प्रश्नों का उत्तर नहीं है। पूरी की पूरी व्यवस्था गड्डमड्ड हो चुकी थी। जनसेवा के नाम पर ऊंचे पद पाने की लालसा में कई वर्षों तक पार्टी के आला नेताओं के इर्दगिर्द चक्कर काटते लोगों को जब भी मौका मिला, वे रात ही रात में बाजी मारने से नहीं चूके।
अब दिल्ली की राउज एवेन्यू की एक विशेष अदालत ने कोयला घोटाले से जुड़े एक मामले में पूर्व केन्द्रीय कोयला राज्यमंत्री दिलीप रे को दोषी करार दिया है। अदालत ने कोयला मंत्रालय के दो वरिष्ठ अफसरों को भी दोषी करार दिया है। यह मामला भी 1999 में झारखंड कोयला ब्लाक के आवंटन में अनियमितता से जुड़ा है। मूलरूप से भुवनेश्वर के रहने वाले दलीप रे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कोयला राज्यमंत्री थे। उन पर झारखंड के गिरिडीह में ब्रह्मडीह कोयला ब्लाक आवंटन में अनियमितता से जुड़े मामले में धोखेबाजी से एक कम्पनी को आवंटन किए जाने के आरोप लगे। 1998 में एक कम्पनी ने कोयला ब्लाक आवंटन के लिए आवेदन दिया, परन्तु कोल इंडिया ने मंत्रालय को सूचित किया जिस जगह पर खनन के लिए आवेदन किया गया है, वहां काफी खतरा है, क्योंकि वहां पूरा क्षेत्र पानी में डूबा हुआ है।
फाइल अफसरों के पास सरकती रही। अफसरों ने भी यू-टर्न ले लिया और अंततः कोयला ब्लाक कम्पनी को आवंटित कर दिया गया। ब्लाक आवंटन के बाद भी कम्पनी को खनन की अनुमति नहीं दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद खनन किया गया। दिलीप रे और अफसरों ने कानून के दायरे से बाहर जाकर काम किया और अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से नहीं किया गया। राष्ट्रीय संसाधनों का सदुपयोग किया जाना चाहिए। केन्द्र में मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद कोल ब्लाकों के आवंटन के लिए पारदर्शी व्यवस्था लागू की। जिससे सरकार को राजस्व ही मिला।
सरकारें जनआकांक्षाओं की कसौटी पर खरी तभी उतरती हैं जब पूर्व के अनुभवों से सबक लेकर नई नीतियां लागू की जाएं। इस दिशा में मोदी सरकार की सराहना करनी होगी कि अब तक किसी घोटाले का शोर सुनाई नहीं दिया। सरकार ने भ्रष्टाचार के छिद्र बंद करने के लिए काफी काम किया है। घोटालों का क्या है जहां व्यवस्था में छिद्र बंद नहीं होते, वहां संसाधनों की लूट मच जाती है। कोयले को छोड़िये इस देश में मिट्टी के तेल में भी घोटाला होता रहा है। देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए यह जरूरी है कि भ्रष्टाचारियों को सजा मिले और कानून का पालन हो लेकिन राजनीतिक दलों को भी अपना आचरण सुधारने के लिए बहुत कुछ करना होगा। राजनीति में ऐसे लोगों को ही आना चाहिए जो राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हों और उनके लिए निजी हित कोई अर्थ नहीं रखते हों। इसके लिए राष्ट्रव्यापी अभियान की जरूरत है।