महाराष्ट्र देश का आधुनिक औद्योगिक ऐसा राज्य माना जाता है जिसकी सामाजिक विरासत बहुत समृद्ध व वैज्ञानिक तेवरों वाली रही है। इसी राज्य से सामाजिक न्याय का सूत्रपात भी पूरे देश में तब हुआ जब समाज सामन्ती मानसिकता में इस कदर जकड़ा हुआ था कि दलितों को कथित सवर्ण या अभिजात्य कहा जाने वाला समाज खुलकर सांस लेने या पानी पीने की इजाजत भी नहीं देता था और उनके साथ पशुओं से भी बदतर व्यवहार किया करता था। इन वर्गों की शिक्षा की बात तो दूर रही बल्कि इस समाज के मेधावी छात्र डा. भीमराव अम्बेडकर को विद्यालय में अन्य छात्रों के साथ बैठ कर शिक्षा प्राप्त करने की छूट भी नहीं थी परन्तु यह राज्य मध्यकालीन समय में भी आगे देखने में विश्वास रखता था जिसकी वजह से इस राज्य के महानायक छत्रपति शिवाजी महाराज ‘कुनबी’ या ‘पिछड़े वर्ग’ के राजा थे। मगर यह अजीब संयोग है कि छत्रपति शिवाजी महाराज की भारत के सन्दर्भ में महत्ता और औरंगजेब के शासन के दौरान उनके ‘स्वराज्य’ के आह्वान की प्रासंगिकता को पहचानने वाले पहले व्यक्ति समाजवादी चिन्तक व नेता ‘डा. राम मनोहर लोहिया’ थे जो स्वतन्त्र भारत में स्वयं में सामाजिक न्याय के पुरोधा माने जाते थे।
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान छत्रपति शिवाजी को 1936 तक एक छापामार लुटेरा राजा लिखा जाता था। जर्मनी से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब डा. लोहिया भारत लौटे और उन्होंने यहां की शिक्षा व्यवस्था पर नजर डाली तो छत्रपति शिवाजी के बारे में तफसील से पढ़ने पर उन्होंने अंग्रेज सरकार के सामने विरोध दर्ज कराया कि शिवाजी महाराज कोई विद्रोही छापामार जागीरदार या राजा नहीं बल्कि स्वराज्य की लड़ाई लड़ने वाले जनता के महानायक थे। वह आम जनता के लोकप्रिय राजा थे और राजा बनने के जातिगत ताने-बाने को तोड़ कर जनता के नायक बने थे। इसी के बाद वह पूरे देश में छत्रपति शिवाजी महाराज के रूप में प्रतिष्ठापित हुए और स्वतन्त्र भारत में पाठ्य पुस्तकों में उन्हें स्वराज्य का मसीहा माना गया। उनकी औरंगजेब से लड़ाई इसलिए नहीं थी कि वह मुसलमान था बल्कि इसलिए थी कि वह मराठों को स्वयं सत्ता करने के अधिकार से वंचित करना चाहता था। वैसे तो छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में भी स्थानीय मुसलमान सिपाही थे मगर वे पहले महाराष्ट्र के थे और मुसलमान बाद में।
सवाल उठना लाजिमी है कि शिवाजी महाराज के इस स्वरूप की खोज डा. लोहिया को ही क्यों करनी पड़ी जबकि हिन्दू महासभा भी इस राज्य में काफी सक्रिय थी? इस सवाल का उत्तर खोजना किसी पत्रकार का काम नहीं है बल्कि इतिहासकारों का काम है। अतः वे इस बारे में प्रकाश डालें परन्तु आज का ज्वलन्त सवाल महाराष्ट्र के सन्दर्भ में यह है कि इसके अहमदनगर, कोल्हापुर, पुणे, संभाजी नगर (औरंगाबाद) जैसे शहरों में मोबाइल फोन पर भेजे जाने वाले सन्देशों व सोशल मीडिया पोस्टों पर औरंगजेब या टीपू सुल्तान के बारे में लिखी गई बातों पर हिन्दू-मुस्लिम समाज में आपस में तनाव फैल रहा है। इसका क्या मतलब निकाला जा सकता है? दोनों सम्प्रदायों के बीच दुश्मनी पैदा होने से क्या किसी को लाभ भी हो सकता है? एेसे दंगे या तनावों से अर्थव्यवस्था का भारी नुक्सान होता है और स्थानीय स्तर पर तो गरीब आदमी के गुजारा चलाना पूरी तरह मुश्किल हो जाता है वहीं सम्पन्न समझे जाने वाले लोगों का जीवन भी दुष्कर हो जाता है। जब कोई व्यक्ति औरंगजेब की तारीफ में कोई कसीदा काढ़ने का प्रयास करता है तो वह स्वयं अपना ही अपमान करता है फिर चाहे वह किसी भी मजहब का मानने वाला हो क्योंकि औरंगजेब अपनी प्रजा के सरोकारों से बेखबर रह कर सिर्फ अपना मजहबी शासन आगे बढ़ाना चाहता था।
इसी वजह से इतिहासकारों ने उसे कट्टरपंथी भी कहा और उसे अन्य मुगल शासकों से अलग रखा। उसके बाद ही मुगल शासन ढेर होता चला गया। बादशाह के रूप में उसका पहला धर्म अपनी प्रजा की सेवा थी मगर वह अपने मजहब की पैरवी को ही अपना धर्म मानता रहा परन्तु वर्तमान में उसके नाम पर आपस में लड़ना सिवाय जहालत के दूसरा काम नहीं हो सकता। यह बात भी समझने वाली है कि हिन्दोस्तानी मुसलमानों को औरंगजेब के कार्यों के लिए जिम्मेदार मानना भी सिवाय जहालत के दूसरा काम नहीं है। मगर राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता श्री शरद पवार ने एक बहुत गंभीर सवाल यह खड़ा किया है कि महाराष्ट्र की वर्तमान शिन्दे सरकार स्वयं एेसी साम्प्रादायिक हिंसा को बढ़ावा दे रही है। श्री पवार देश के फिलहाल सबसे वरिष्ठतम राजनीतिज्ञ हैं और महाराष्ट्र के ही हैं अतः उनका यह कहना मायने रखता है कि यदि मोबाइल मैसेज संभाजी नगर में चलता है तो पुणे में दंगे क्यों हो जाते हैं? साथ ही हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अहमदनगर की 1580 से 1590 के लगभग शासिका रहीं ‘चांदबीबी’ का नाम भारत की वीरांगनाओं में आता है। वह महाराष्ट्र की रानी लक्ष्मी बाई की तरह देखी जाती हैं। उन्होंने भी मुगल सम्राट अकबर से अपने राज की रक्षा के लिए जंग की थी और उसकी आधीनता स्वीकार नहीं की थी लेकिन ये सब इतिहास की बातें हैं और सजग कौमें कभी भी पिछले वक्तों में हुए अन्याय के लिए अपने वक्तों की नस्लों को कुसूरवार नहीं ठहराती हैं। वरना हमारे सामने पाकिस्तान की नजीर है जिसकी बुनियाद ही नफरत पर पड़ी और आज वह खुद पूरी दुनिया की नफरत का शिकार हो रहा है। साम्प्रदायिक सौहार्द भारत की ताकत रहा है। इसके टूटने से भारत ही कमजोर होता है। औरंगजेब किसी का नायक नहीं हो सकता और शिवाजी पूरे भारत के नायक रहेंगे, यह तथ्य हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए।