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जनसंख्या को लेकर आशंकाएं

भारत में जनसंख्या वृद्धि का मुकाबला करने के लिए जिस तरह के उपाय कुछ राज्य सरकारें कर रही हैं उन्हें न तो तर्कसंगत कहा जा सकता है और न ही संवैधानिक कसौटी पर खरा उतारा जा सकता है।

भारत में जनसंख्या वृद्धि का मुकाबला करने के लिए  जिस तरह के उपाय कुछ राज्य सरकारें कर रही हैं उन्हें न तो तर्कसंगत कहा जा सकता है और न ही संवैधानिक कसौटी पर खरा उतारा जा सकता है। बेशक जनसंख्या वृद्धि​ वर्तमान में एक चुनौती है मगर यह एेसी प्राकृतिक प्रक्रिया है जो बदलते समय के अनुसार परिवर्तित भी होती रहती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण चीन है। इसकी जनसंख्या पूरे विश्व में आज सर्वाधिक है परन्तु इसके बावजूद इसने हाल ही में अपने देश के दम्पतियों को दो से अधिक तीन बच्चे करने की अनुमति दी है। चीन एक कम्युनिस्ट व सर्वसत्तावादी देश है जिसमें शासन का हस्तक्षेप नागरिकों के जीवन के हर पहलू में रहता है और सरकार ही लोगों की जीवनशैली तक तय करती है। जबकि भारत एक एेसा लोकतन्त्र है जिसमें हर स्तर पर लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार या शासन काम करता है। इस शासन का कार्य जन अपेक्षाएं पूरी करना होता है जबकि सर्वसत्तावादी शासन में लोग सरकार की अपेक्षाओं को पूरा करते हैं। इस बुनियादी फर्क को हमें समझना चाहिए और तब कोई भी नीति तैयार करनी चाहिए।
सर्वसत्तावादी व्यवस्था में सरकार के अनुरूप न चलने पर नागरिक को सजा दी जाती है। मगर चीन में ही यह नीति सफल नहीं हो सकी। 1980 से पहले इस देश में केवल एक बच्चा रखने की अनुमति थी जिसके पालन न करने पर दम्पति को सजा दी जाती थी और उसे सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से महरूम कर दिया जाता था। मगर बाद में चीन को इसमें परिवर्तन करना पड़ा और पांच साल पहले दो बच्चों की अनुमति देनी पड़ी और अब इसने तीसरे बच्चे की भी अनुमति प्रदान कर दी है। जाहिर है  कि चीन किसी भी क्षेत्र में भारत के लिए न तो कोई आदर्श हो सकता है और न ही उसकी नीतियों का भारत में अनुसरण किया जा सकता है। चीन ने अपनी जनसंख्या नीति इसलिए बदली है क्योंकि उसकी सामान्य प्रजनन दर में लगातार गिरावट हो रही थी। भारत में कमोबेश यही स्थिति होनी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत की जनसंख्या 2050 तक पूरे सर्वोच्च स्थान पर होगी मगर उसके बाद से गिरनी इस तरह शुरू हो जायेगी कि 2100 तक पहुंचते-पहुंचते इसकी सामान्य प्रजनन दर मात्र 1.3 रह जायेगी।
 इसका मतलब यह निकलता है कि हर चौथे दम्पति के घर में ही दो बच्चे होंगे। अधिकाधिक परिवारों में एक ही बच्चा होगा। अतः हम जनसंख्या विस्फोट को लेकर जो डर दिखाते रहते हैं वह 2050 के बाद स्वतः ही ढलना शुरू हो जायेगा। इसका कारण पूर्णतः वैज्ञानिक है मगर सम्बन्ध सामाजिक व शैक्षिक स्थितियों से भी है। धीरे-धीरे समाज में शिक्षा के प्रति जो जागरूकता आ रही है उससे आम व्यक्ति की जीवन शैली पर असर  पड़ना शुरू होगा। अतः असम सरकार के मुख्यमन्त्री हेमन्त विश्व सरमा का एक विशेष धर्म के अनुयायियों को यह सलाह देना कि वे परिवार नियोजन की बेहतर तकनीक अपनायें, समाज के एक वर्ग में हीन भावना पैदा करने के समान ही माना जायेगा क्योंकि दूसरे धर्म के कम पढे़-लिखे तबके के लोगों की हालत भी बेहतर नहीं है। हम जनसंख्या को धर्म के चश्मे से नहीं देख सकते हैं।  असम सरकार ने कहा है कि वह दो से अधिक सन्तान वाले परिवारों को समाज कल्याण की योजनाओं का लाभ नहीं देगी, पूरी तरह भेदभाव वाला कदम होगा जिसकी इजाजत भारत का संविधान भी नहीं देता है।  
असम सरकार ने 2017 में एेसी नीति बनाई थी जिसका पालन जनवरी 2021 से होना था। इस नीति अनुसार दो से अधिक बच्चे रखने वाले लोगों को सरकारी नौकरी नहीं दी जायेगी और जो सरकारी नौकर इनका पालन नहीं करेंगे उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। मगर इसी के समानान्तर हम देख रहे हैं कुछ राज्य सरकारें स्थानीय पंचायत आदि के चुनाव लड़ने को लेकर दो बच्चों के नियम काे लागू कर रही हैं। कुछ तो न्यूनतम शिक्षा हाई स्कूल को भी एेसे चुनावों के प्रत्याशियों के लिए लागू करना चाहती है। एेसी नीति मूलतः संविधान विरोधी खास कर नागरिकों के समान अधिकारों के मूल सिद्धान्त के विरुद्ध है। किसी भी व्यक्ति के कम या ज्यादा बच्चे होने से अथवा कम पढ़ा-लिखा होने से उसकी चुनाव लड़ने की योग्यता से क्या और कैसा मतलब हो सकता है? चुनाव में उसकी व्यक्तिगत छवि व प्रतिष्ठा ही काम करती है। मगर गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व हरियाणा राज्यों में एेसी व्यवस्था लागू है। यह पूरी तरह पलायनवादी सोच है जिसमें हकीकत का सामना करने की ताकत नहीं है। इस मामले में उत्तर प्रदेश ने आधुनिक दृष्टि का परिचय दिया है और एेसे किसी नियम को लागू नहीं किया है। सरकारी नीतियों की लोकतन्त्र में विश्वसनीयता तभी होती है जब वह समूचे समाज पर एक समान रूप से लागू होती है। जनसंख्या का चित्र हमारे सामने है और इसके वैज्ञानिक अवयव हमें बता रहे हैं कि इस सदी के पूरा होने पर भारत में बच्चों की किल्लत हो सकती है तो हमें जनता को बांटने वाले नियमों से बचना चाहिए। चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम अशिक्षा और अंधविश्वास ही जनसंख्या के बढ़ने का मूल कारण अभी तक रहा है इसके हटते ही 2050 के बाद से अंधेरा खुद-ब-खुद छंटना शुरू हो जायेगा। चीन की स्थिति हमारे सामने है। इसलिए हमें डर कर नहीं हौसले के साथ भारत के विकास में इस जनसंख्या का सदुपयोग करना है। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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