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‘ईवीएम’ से ‘आरपीएम’ का द्वन्द

भारत की चुनाव प्रणाली इस देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था की वह आधारशिला है जिस पर पूरे प्रशासन तन्त्र की इमारत खड़ी हुई है।

भारत की चुनाव प्रणाली इस देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था की वह आधारशिला है जिस पर पूरे प्रशासन तन्त्र की इमारत खड़ी हुई है। इस चुनाव प्रणाली में संशोधन व सुधार की स्वतन्त्र भारत में बार-बार जरूरत भी महस्सू होती रही है और मांग भी उठती रही है मगर इस तरफ राजनैतिक दलों ने संजीदगी नहीं दिखाई है। चुनाव प्रणाली की बुनियाद मतदाता और मतदान होता है। जबकि चुनावों के लिए चुनाव आयोग द्वारा की जाने वाली पूरी व्यवस्था पूरी प्रणाली होती है। इसमें चुनाव प्रचार से लेकर परिणाम घोषित होने तक की गतिविधियां शामिल होती हैं। ये सारी गतिविधियां मतदाता द्वारा अपने एक वोट के संवैधानिक अधिकार का उपयोग पूरी स्वतन्त्रता व निडरता के साथ बिना लालच या भय के करने से जुड़ी रहती हैं। मतदाता द्वारा वोट दिये जाने की क्रिया इस पूरी सीढ़ी का पहला पायदान होती है। अतः बहुत जरूरी है कि पहले पायदान पर रखा हुआ कदम पूरी तरह बेखौफ और किसी भी प्रकार की आशंका से र​हित हो। यह कदम मतदाता द्वारा ही उठाया जाता है और वह मतदान केन्द्रों तक जाकर अपने वोट का इस्तेमाल करके आता है। वह चुनाव में खड़े हुए विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों में से किसी एक को अपना मत देकर अपना प्रतिनिधि चुनता है और फिर इनके माध्यम से उसकी मनपसन्द सरकार बनती है जो पूरी शासन व्यवस्था चलाती है। अतः मतदान के स्तर पर ही यदि मतदाता के मन में अपने दिये जा रहे वोट के प्रति किसी भी प्रकार की हल्की सी भी आशंका रहती है तो पूरी लोकतान्त्रिक प्रणाली की विश्वसनीयता पर आंच आने से नहीं रोका जा सकता।
 मतदान के लिए पिछले दो दशकों से जिन ‘ईवीएम’ मशीनों का उपयोग हो रहा है उनके खरेपन के बारे में विपक्षी राजनैतिक दल पिछले दो दशकों से ही सवाल उठाते आ रहे हैं और दलील दे रहे हैं कि फिर से पुरानी ‘बैलेट पेपर’ प्रणाली पर लौटा जाना चाहिए। मगर केन्द्र में जिस दल की भी सरकार होती है वह ईवीएम मशीनों की पैरोकारी करने में लग जाती है जबकि मूल रूप से यह मामला सरकार का नहीं बल्कि चुनाव आयोग का है। क्योंकि चुनाव आयोग भारतीय संविधान के अन्तर्गत देश में चुनाव सम्पन्न कराने वाली स्वतन्त्र व स्वायत्त संस्था है जो अपने अधिकार सीधे संविधान से लेकर अपने कार्यों का निष्पादन करती है। बेशक भारत में चुनाव पर चुनाव हो रहे हैं मगर विपक्षी दलों की यह मांग बदस्तूर जा रही है कि ईवीएम मशीनों की जगह बैलेट बक्से रखे जाने चाहिए जिनमें मतदाता चुनाव में मतदान के समय दिये गये बैलेट पर अपने मनपसन्द प्रत्याशी के चुनाव चिन्ह के सामने अपनी मुहर लगा कर उसे बैलेट बक्से में डालें।
 एक तरफ यह विवाद चल ही रहा था कि चुनाव आयोग ने इस वर्ष जनवरी महीने में यह पेशकश कर दी कि वह भारत में ही एक जिले से दूसरे जिले या एक राज्य से दूसरे राज्य में रहने वाले विभिन्न चुनाव क्षेत्रों के मतदाताओं के लिए ‘रिमोट वोटिंग मशीन’ लाने पर विचार कर रहा है जिससे देश के किसी भी हिस्से में रहने वाला मतदाता किसी दूसरे हिस्से में स्थित अपने चुनाव क्षेत्र के प्रत्याशी को अपने प्रवास स्थान से ही वोट डाल सके। बेशक यह टैक्नालोजी उन्नयन व नवोनयन का दौर है मगर कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिन्हे टैक्नोलोजी से नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है। मतदाता व मत का रिश्ता एेसा ही होता है। इसे हम माता-पिता व सन्तान के रिश्ते की तरह समझ सकते हैं जो बहुत पवित्र, शुद्ध और शुचितापूर्ण होता है। किसी भी प्रत्याशी को दिया गया मत किसी मतदाता द्वारा पैदा किया गया उत्पाद होता है जिसके हर अंश पर उत्पादक अर्थात मतदाता का ही एकाधिकार या पेटेंट होता है। एेसा मैं नहीं बल्कि भारत का संविधान भी कहता है। संविधान में उल्लिखित है कि वोट या मत की शुचिता व सत्यता के लिए जरूरी है कि वोट व वोटर के बीच किसी भी रूप या प्रकार में कोई तीसरी ताकत भौतिक यह अदृश्य तरीके से बीच में न हो। ऐसा केवल बैलेट पेपर व मतदाता के बीच में ही संभव है क्योंकि बैलेट पेपरों की गिनती किये जाते समय मतदाता द्वारा लगाये निशान को कोई नहीं बदल सकता जबकि ईवीएम मशीन में वोट डालने के बाद मतदाता की पसन्द का फैसला मशीन पर निर्भर करता है। मशीन एक तीसरी शक्ति के रूप मे मतदाता व मत के बीच आ जाती है।  अभी इस मुद्दे पर राजनैतिक दल चुनाव आयोग से उलझे हुए ही थे कि इसने एक नया शगूफा रिमोट वोटिंग मशीन का इस नाम पर छोड़ दिया कि इससे मतदान का प्रतिशत बढ़ने में आसानी होगी और ज्यादा से ज्यादा मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे जबकि चुनाव आयोग अभी तक मतदाताओं की इस समस्या का निदान नहीं कर सका है कि वोटर कार्ड रहने व अन्य पहचान रहते उनके नाम मतदाता सूचियों से गायब हो जाते हैं और बड़ी संख्या में लोग वोट डालने से महरूम रह जाते हैं। चुनाव आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ समिति के सदस्य प्रोफेसर रजत मूना का कहना है कि आयोग ने रिमोट वोटिंग मशीन के विकास के काम को राजनैतिक दलों की ठंडी प्रतिक्रिया के चलते बीच में ही नहीं छोड़ दिया है और इस पर प्रगति हो रही है। सवाल यह है कि मतदान प्रणाली को लेकर हमारी मूल सोच क्या है? राजनैतिक दल इस महत्वपूर्ण सवाल पर उलझते रहते हैं और कहते रहते हैं कि जब ईवीएम मशीनों से हो रहे मतदान से विपक्षी दलों के प्रत्याशी भी जीत रहे हैं तो शक की गुंजाइश कहा रह जाती है। सवाल यह है ही नहीं बल्कि सवाल यह है कि क्या मतदाता को पक्का यकीन रहता है कि ईवीएम मशीन में बटन दबा कर अपना वोट जो देकर आते हैं क्या उसमे हेर- फेर न होने पर उन्हें पक्का यकीन है? लोकतन्त्र तभी पाकीजा, सत्य, शुचिता व शुद्धता पूर्ण होगा जब मतदाता को यह पूर्ण विश्वास होगा कि उसके मत और प्रत्याशी के बीच में कोई भी तीसरी शक्ति प्रथ्यक्ष या परोक्ष रूप से नहीं आ सकती। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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